तीन तलाक: अदालत मित्र के तौर पर सहायता देंगे खुर्शीद

[email protected] । May 3 2017 2:41PM

उच्चतम न्यायालय ने खुर्शीद को ‘तीन तलाक’ की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली अनेक याचिकाओं की सुनवाई में अदालत मित्र के तौर पर सहायता देने को आज मंजूरी दी।

उच्चतम न्यायालय ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद को मुसलमानो में प्रचलित ‘तीन तलाक’, ‘निकाह हलाला’ और बहुविवाह जैसी प्रथाओं की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली अनेक याचिकाओं की सुनवाई में न्याय मित्र के तौर पर शीर्ष अदालत की सहायता करने की आज अनुमति दे दी। प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की तीन सदस्यीय पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता खुर्शीद को इस मामले में लिखित में अपना पक्ष दाखिल करने की भी मंजूरी प्रदान कर दी है।

कांग्रेस नेता ने न्यायालय से कहा कि इस मामले में लिखित में अपना पक्ष रखने का समय पहले ही समाप्त हो चुका है और वह इस मामले में लिखित में कुछ तथ्य दाखिल करना चाहते हैं। इस पर पीठ ने कहा, ‘‘हम इसे रिकॉर्ड पर लेंगे। यह कोई मुद्दा नहीं है।’’ ग्रीष्मावकाश के दौरान 11 मई से पांच न्यायाधीशों की सदस्यता वाली संविधान पीठ ‘तीन तलाक’, ‘निकाह हलाला’ और बहुविवाह जैसी प्रथाओं को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। केन्द्र ने 11 अप्रैल को शीर्ष अदालत में नयी दलीलें दाखिल की थीं जिसमें उसने कहा था कि इस तरह की प्रथाएं मुसलिम समुदाय की महिलाओं की गरिमा और उनके सामाजिक स्तर पर प्रभाव डाल रहीं है और उन्हें संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों से वंचित कर रही हैं।

सरकार ने अपने पहले के रुख को दोहराते हुए कहा कि ये प्रथाएं मुसलिम महिलाओं को न सिर्फ अपने समुदाय के पुरुषों की तुलना में बल्कि दूसरे समुदाय की महिलाओं की तुलना में भी ‘‘असमान और असुरक्षित’’ बनाती हैं। उच्चतम न्यायालय ने 30 मार्च को अपनी टिप्पणी में कहा था कि ‘तीन तलाक’, ‘निकाह हलाला’ और बहुविवाह ‘‘भावनओं’’ से जुड़े अहम मुद्दे हैं। सरकार ने इन्हें असंवैधानिक घोषित करने की मांग करते हुए कहा था कि मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड में छह दशकों से बदलाव नहीं हुए हैं और मुसलिम महिलाएं अचानक तलाक के डर से बेहद सहमी रहती हैं।

मुसलिम समुदाय की प्रभावशाली संस्था ऑल इंडियन मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इन मुद्दों पर न्यायालय द्वारा इस मामले का निर्णय किये जाने यह कहते हुए विरोध किया कि ये प्रथाएं पवित्र कुरान से आईं हैं और न्याय क्षेत्र के बाहर हैं। गौरतलब है कि मुसलिम महिलाओं ने ‘तीन तलाक’ को चुनौती दी हैं जहां पति आमतौर पर तीन बार तलाक बोल कर निकल लेते हैं और कई बार तो तलाक फोन पर या मैसेज पर ही भेज दिया जाता है। केन्द्र ने पिछले वर्ष सात अक्तूबर को शीर्ष न्यायालय में इन प्रथाओं का विरोध किया था और लैंगिग समानता तथा धर्मनिपेक्षता जैसे आधारों पर इन पर दोबारा ध्यान देने की आवश्यकता पर जोर दिया था।

We're now on WhatsApp. Click to join.

Tags

    All the updates here:

    अन्य न्यूज़