भीम आर्मी वाले चंद्रशेखर का TIME100 ने माना लोहा, पर घर में अब भी पहचान से दूर

Bhima Army Chandrasekhar
अंकित सिंह । Feb 19 2021 2:06PM

अमेरिका में यह फार्म भरना रिण को खत्म करने का प्रभावी तरीका है लेकिन इसमें बहुत ज्यादा कानूनी लागत आती है और दस्तावेजों को तैयार करना बहुत अधिक पेचीदा होता है।

भविष्य के उभरते हुए 100 नेताओं की सूची में एक भारतीय कार्यकर्ता और पांच भारतीय मूल के व्यक्तियों ने जगह बनाई है। खास बात यह है कि इस सूची को टाइम मैगजीन ने जारी किया है। बुधवार को जारी की गई 2021 टाइम 100 नेक्स्ट दुनिया की 100 सबसे प्रतिभाशाली लोगों की टाइम 100 श्रृंखला का विस्तार है। इसमें 100 उभरते हुए नेताओं को शामिल किया गया है जो भविष्य को नए तरह से गढ़ रहे हैं। इनमें ट्विटर की शीर्ष वकील विजया गड्डे और ब्रिटेन के वित्त मंत्री ऋषि सुनक शामिल है। टाइम 100 के संपादकीय निदेशक डैन मैकसाई ने कहा कि इस सूची में हर वह लोग शामिल हैं जो इतिहास बनाने के लिए तैयार है। असल में कई पहले ही इतिहास बना चुके हैं। इस सूची में भारतीय मूल की अन्य हस्तियों में इंस्टाकार्ट की संस्थापक और सीआईओ अपूर्वा मेहता और गैर-लाभकारी गेट अस पीपीआई की कार्यकारी निदेशक शिखा गुप्ता और गैर लाभकारी अपसोल्व के रोहन पवुलुरी शामिल हैं। 

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इस सूची की सबसे खास बात यह है कि इसमें भारत के दलित नेता और भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद भी शामिल हैं। टाइम मैगजीन ने चंद्रशेखर आजाद के बारे में कहा गया है कि वह दलित समुदाय को शिक्षा के जरिए गरीबी से निकालने में मदद करने के लिए स्कूल चलाते हैं और आक्रमक भी हैं। मैगजीन ने आजाद के बारे में यह भी लिखा है कि वह जाति आधारित हिंसा के शिकार लोगों की रक्षा के लिए काम करते हैं और भेदभाव के खिलाफ उत्तेजक प्रदर्शनों का हिस्सा बनते हैं। आपको बता दें कि हाल में ही आजाद और उनकी भीम आर्मी ने हाथरस में 19 वर्षीय दलित युवती के साथ घटित मामले में एक अभियान चलाया था। भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद उस समय भी उस प्रदर्शन का सक्रिय हिस्सा थे जब देश में सीएए के खिलाफ आंदोलन चल रहा था। इसके अलावा चंद्रशेखर आजाद की तरफ से 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़ने के संकेत दिए गए थे। इसके लिए बकायदा उन्होंने रैली भी कर डाली थी। लेकिन बाद में मामला खत्म हो गया। चंद्रशेखर आजाद जितना कांग्रेस और प्रियंका गांधी के करीबी माने जाते हैं उतना ही दलितों की राजनीति करने वाली मायावती से दूर हैं।

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भले ही चंद्रशेखर आजाद भीम आर्मी के नाम से अपना राजनीतिक मंच तैयार कर चुके हैं लेकिन अभी भी वह मुख्यधारा की राजनीति से दूर है। टाइम मैगजीन उनकी प्रतिभा की लोहा भले ही मान रही हो लेकिन यह भी सच है कि वह अपने घर में ही अपनी पहचान बनाने के लिए फिलहाल जूझ रहे हैं। 2022 के यूपी चुनाव में उन्हें बहुत ज्यादा उम्मीदें हैं। पर सवाल यही है कि जनता उन्हें कितना अपना पाती है। मैगजीन में ऋषि सुनक की भी जमकर तारीफ की है। सुनक के बारे में कहा गया है कि वह जल्द ही कोविड-19 महामारी के प्रति ब्रिटिश सरकार की प्रतिक्रिया का उदारवादी चेहरा बन गए और उन लोगों के लिए राहत के उपायों को मंजूरी दी जिनकी नौकरी वायरस के कारण प्रभावित हुई।  “टाइम“ में 34 वर्षीय मेहता के बारे में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के शुरुआती दिनों में “इंस्टाकार्ट“को बेतहाशा ऑर्डर मिले क्योंकि धनी लोगों ने सेवा कर्मियों को अपने लिए राशन खरीदने में मदद करने के मकसद से एक साथ काफी खरीदारी की। “ इंस्टाकार्ट“ ने अपने कर्मियों के साथ जिस तरह का बर्ताव किया उसे लेकर उसकी आलोचना भी हुई। 

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मेहता ने “टाइम“ में लिखे लेख में कहा, “ भविष्य में स्मार्टफोन सुपर मार्केट होगा। हम उसके सह-निर्माण में मदद करने जा रहे हैं।“ “टाइम“ में 46 वर्षीय गड्डे को ट्विटर की सबसे शक्तिशाली अधिकारियों में से एक बताया है जिन्होंने सीईओ जैक डोर्सी को बताया था कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का ट्विटर अकाउंटकैपिटल (संसद भवन) पर छह जनवरी को हुए हमले के बाद निलंबित कर दिया गया है। पत्रिका में कहा गया है, “ट्विटर पर अब भी गलत जानकारी और उत्पीड़न होता है जबकि गड्डे का प्रभाव कंपनी को धीरे-धीरे उस ओर ले जा रहा है जो कहता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं बल्कि वह कई मानवाधिकारों में से एक है जिन्हें एक-दूसरे के परिपेक्ष्य में देखा जाना चाहिए।“ “टाइम“ ने कहा कि गुप्ता और उनकी टीम ने ऐसे समय में स्वास्थ्य कर्मियों के लिए व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए कदम उठाए जब व्हाइट हाउस से “नेतृत्व शून्यता“ थी। 25 वर्षीय पवुलुरी निशुल्क ऑनलाइन “टूल“ के संस्थापक हैं जो उपयोगकर्ताओं को खुद से दिवालियापन फार्म भरने में मदद करता है। अमेरिका में यह फार्म भरना रिण को खत्म करने का प्रभावी तरीका है लेकिन इसमें बहुत ज्यादा कानूनी लागत आती है और दस्तावेजों को तैयार करना बहुत अधिक पेचीदा होता है।

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