अदालत ने ज्ञानवापी पर क्यों सुरक्षित रखा फैसला? क्या है ऑर्डर 7 रूल 11 जिस पर मुस्लिम पक्ष पहले चाहता है सुनवाई?

Gyanvapi
creative common
अभिनय आकाश । May 23 2022 3:59PM

मुस्लिम पक्ष की तरफ से कोर्ट में आवेदन दिया गया कि हिंदू पक्ष की ओर से दायर वाद सुनवाई के लायक ही नहीं है, क्योंकि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के चलते ऐसे मुकदमे कोर्ट में दायर नहीं किये जा सकते हैं। इस क़ानून के मुताबिक देश में किसी धार्मिक स्थल का स्वरूप वही रहेगा, जो 15 अगस्त 1947 को था।

ज्ञानवापी मस्जिद विवाज मामले में आज वाराणसी के जिला कोर्ट के समक्ष सुनवाई हुई। दोनों तरफ की दलीलें सुनकर कोर्ट की तरफ से फैसला सुरक्षित रख लिया गया है। जिला जज की अदालत की तरफ से अपना आदेश इस आधार पर सुरक्षित रखा गया है कि विवाद की आगे की सुनवाई प्रक्रिया क्या हो। यानी कोर्ट को अब ये तय करना है कि आगे की सुनवाई सीपीसी के ऑर्डर 7 रूल 11 पर ही सीमित रहे या फिर कमीशन की रिपोर्ट और सीपीसी के 7/11 पर साथ-साथ सुनवाई हो। दरअसल, वादी पक्ष की तरफ से जिला जज की कोर्ट से सर्वे के दौरान एकट्ठा किए गए साक्ष्यों पर पहले गौर करने की अपील की गई। वहीं इससे ठीक उलट मुस्लिम पक्ष की ओर से सिविल शूट के सस्टेनेबिलिटी पर ही सुनवाई कराना चाहती थी। जिस पर कोर्ट की तरफ से कल की तारीख तय की गई है। ऐसे में इस विश्लेषण में आपको हम सरल भाषा में बताएंगे कि  ऑर्डर VII, रूल 11 क्या है, क्यों मुस्लिम पक्ष इसके तहत ही पहले सुनवाई चाहता है और अब वाराणसी जिला न्यायालय के समक्ष क्या विकल्प सामने हैं। 

इसे भी पढ़ें: ज्ञानवापी मस्जिद विवाद: 1936 के मुकदमे में ब्रिटिश काल की सरकार के रुख का जिक्र किया गया

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

सबसे पहले आपको मामले का थोड़ा बैकग्राउंड बता देंते हैं जिससे आगे की चीजें समझने में आसानी हो। वाराणसी के कोर्ट में पांच महिलाओं ने एक याचिका दायर करके कोर्ट से ऋंगार गौरी मंदिर में रोज पूजा करने की अनुमति दिए जाने की अपील की थी। कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ परिसर में श्रृंगार गौरी मंदिर और दूसरे देवी-देवताओं के मंदिरों की स्थिति को लेकर कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करके सर्वे करने का निर्देश दिया गया। इसी दौरान मुस्लिम पक्ष मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट चली गई। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद जिला जज को पूरा केस ट्रांसफर कर दिया। इसके साथ ही 20 मई को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से वाराणसी के जिला न्यायाधीश को निर्देश दिया कि वह मेरिट के आधार पर मामले को आगे बढ़ाने से पहले सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश VII, नियम 11 के तहत दायर ज्ञानवापी मस्जिद के मुकदमे की स्वीकार्यता पर फैसला करें। 

ऑर्डर 7 रूल 11 क्या है?

सबसे पहले आपको ऑर्डर VII रूल 11 क्या है ये वादी प्रतिवादी पक्ष को दो काल्पनिक नाम महेश और अब्दुल के नाम से समझेंगे। मान लीजिए महेश ने अब्दुल के खिलाफ कोई सिविल मुकदमा दाखिल किया। उसमें अगर अब्दुल को लगता है कि महेश ने जो मुकदमा किया है वो निराधार है, ये बनता ही नहीं है। कानूनी तौर पर ये मुकदमा नहीं चल सकता है। किसी कानून के खिलाफ है, महेश के द्वारा दाखिल किया गया मुकदमा। तो अब्दुल ऑर्डर VII रूल 11 के तहत सिविल जज जो मामले को सुन रहे हैं। उनको एक आवेदन देकर ये बताता है कि ये मामला आपको नहीं सुनना चाहिए। क्योंकि ये निराधार है और इसका कोई कानूनी आधार नहीं है। या तो ये मौजूदा कोई कानून है उसके खिलाफ है। 

इसे भी पढ़ें: ज्ञानवापी प्रकरण पर वाराणसी कोर्ट में 45 मिनट तक हुई सुनवाई, मंगलवार को आएगा फैसला

मुस्लिम पक्ष का क्या कहना है 

मुस्लिम पक्ष की तरफ से कोर्ट में आवेदन दिया गया कि हिंदू पक्ष की ओर से दायर वाद सुनवाई के लायक ही नहीं है, क्योंकि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के चलते ऐसे मुकदमे कोर्ट में दायर नहीं किये जा सकते हैं। इस क़ानून के मुताबिक देश में किसी धार्मिक स्थल का स्वरूप वही रहेगा, जो 15 अगस्त 1947 को था। इसे बदला नहीं जा सकता। यानी मेंटेबल्टि पर प्राथमिकता के आधार पर जिला जज सुनेंगे की क्या वाकई मुस्लिम पक्ष कह रहा है कि ये सुनवाई होनी ही नहीं चाहिए थी। 

मुकदमा खारिज होने का आधार

नियम 7 में ऐसे कई उदाहरण दिए गए हैं जिनमें वादपत्र को खारिज किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, जब वाद में कार्रवाई के कारण का खुलासा नहीं किया जाता है, जहां मुकदमा कानून आदि द्वारा वर्जित प्रतीत होता है। या फिर उसने दावे का उचित मूल्यांकन न किया हो या उसके मुताबिक कोर्ट फीस न चुकाई गई हो। इसके अलावा जो एक महत्वपूर्ण आधार है वो है कि कोई कानून उस मुकदमे को दायर करने से रोकता हो। 

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़