Jallikattu: विवादों में रहता है तमिलनाडु का यह पारंपरिक खेल, सुप्रीम कोर्ट ने लगाया था बैन, जानें इसके बारे में

Jallikattu
ANI
अंकित सिंह । Jan 17 2023 11:33AM

तमिलनाडु के लोग इसे अपनी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा मानते हैं। इसे तमिलनाडु का गौरव भी कहा जाता है। दावा किया जाता है कि यह खेल करीब 2500 साल पुराना है। यह तमिल के दो शब्द जली और कटु से मिलकर बना है।

जल्लीकट्टू नाम तो काफी सुना होगा। अगर इसके बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं है तो हम आपको बताते हैं। दरअसल, यह एक अजीबोगरीब खेल है जिसे दक्षिण भारत के तमिलनाडु में खेला जाता है। इसे पोंगल के दिन खेला जाता है। तमिलनाडु के लोग इसे अपनी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा मानते हैं। इसे तमिलनाडु का गौरव भी कहा जाता है। दावा किया जाता है कि यह खेल करीब 2500 साल पुराना है। यह तमिल के दो शब्द जली और कटु से मिलकर बना है। जली का अर्थ है सिक्के की थैली और कट्टू का अर्थ बैल का सिंग होता है। 

कैसे खेला जाता है

जल्लीकट्टू के पहले दिन तीन बैलों को छोड़ा जाता है। यह वह बैल होते हैं जो गांव की शान के रूप में दूर-दूर तक प्रचलित होते हैं। यह गांव के बूढ़े बैल भी होते हैं। इन्हें कोई नहीं पकड़ता है। इस दौरान बैलों की सिंगों पर सिक्कों की थैली बांध दी जाती है और फिर उन बैलों को भड़काकर भीड़ के बीच छोड़ दिया जाता है। जो व्यक्ति इन पैरों पर काबू कर लेता है और उनके सिंधु पर बांधे गए सिक्कों की थैली को ले आता है, उसे इनाम दिया जाता है। इस खेल के अलग-अलग नियम भी होते हैं। यह ऐसी परंपरा है जो योद्धाओं के बीच खूब लोकप्रिय हुआ था। कहा तो यह भी जाता है कि जो योद्धा बैलों पर काबू कर लेते थे, उनको महिलाएं अपने पति के रूप में स्वीकार करती थीं। 

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यह है नियम

जल्लीकट्टू को मुख्यतः तीन प्रारूप में खेला जाता है। पहला है मंजू विराट्टू। इस प्रारूप में खिलाड़ियों को एक निश्चित समय और दूरी के भीतर ही बालों पर काबू करना होता है। दूसरा है वेलि विराट्टू। इस प्रारूप में बैलों के सिंह पर सिक्कों की थैली बांधकर उन्हें खुले मैदान में छोड़ दिया जाता है। इस दौरान प्रतिस्पर्धिओं को उन बलों पर काबू करना होता है। वाटम मंजूविराट्टू तीसरा प्रारूप है जिसमें बैलों को लंबी रस्सी से बांध दिया जाता है और खिलाड़ी को उन पर काबू करना होता है। हालांकि, सभी प्रारूप में पहले बालों को भड़काया और उकसाया जाता है। 

बैलों के चयन की प्रक्रिया

इस खेल में उन बैलों को शामिल किया जाता है जो तंदुरुस्त होते हैं। मंदिरों के बैलों को इसके लिए खास तौर पर तैयार किया जाता है क्योंकि मंदिरों के इन बलों को मवेशियों का मुखिया भी माना जाता है। भीड़ में एक-एक करके बैलों को छोड़ा जाता है। फिर उन बैलों पर लोग सवार होने की कोशिश करते हैं। जो बैल आसानी से पकड़ में आ जाते हैं, उन्हें कमजोर माना जाता है और घरेलू कामों के लिए रख लिया जाता है। जो पकड़ में नहीं आते हैं उन्हें मजबूत माना जाता है। बलशाली बैलों को बेहतर नस्ल के प्रजनन के लिए भी आवश्यक माना जाता है। 

विवाद का कारण 

हालांकि, एक बात यह भी है कि इस खेल में केवल इंसान को ही नहीं बल्कि बैलों को भी कई तरह के दर्द से गुजरना पड़ता है। इस खेल में हर साल कई दुखद घटनाएं सुनने को भी मिलती है। यही कारण है कि जलीकट्टू पर समय-समय पर प्रतिबंध लगाने की मांग होती रही है। दवा तो यह भी किया जाता है कि बैल को इस खेल में भड़काने के लिए पूछ को मरोड़ा जाता था। आंखों में मिर्ची पाउडर तक डाल दिए जाते थे। साथ ही साथ यह भी कहा जाता था कि कई बार बैलों को शराब पिलाई जाती थी। 

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मद्रास हाई कोर्ट में साल 2006 में इस खेल को बंद करने के लिए याचिका डाली गई थी। इसके बाद 2009 में इस खेल को लेकर नियम बनाए गए थे। नए नियम के मुताबिक इसके वीडियोग्राफी और लोगों की सुरक्षा के लिए आयोजन स्थल पर डॉक्टर की मौजूदगी जरूरी होती थी। इस नियम से खेल में होने वाली दुर्घटनाओं में कमी जरूर आई। लेकिन पशु कल्याण के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग करते रहे। बाद में यह केस सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा। 

सुप्रीम कोर्ट का प्रतिबंध

सुप्रीम कोर्ट ने इस खेल के ऊपर 2014 में पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। 2015 में इस खेल का आयोजन नहीं हुआ। लेकिन इस खेल के समर्थन की मांग लगातार जारी रही। इस खेल को वापस शुरू किए जाने की मांग तेज होती जा रही थी। लोग हिंसा पर भी उतर आए थे। लोगों की नाराजगी को देखते हुए सरकारों ने इस खेल को फिर से मंजूरी दे दी। 

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