राजद्रोह कानून पर क्या है सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश, किस राजनीतिक दल ने दी इस फैसले पर क्या प्रतिक्रिया, जानें पूरी जानकारी

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प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने व्यवस्था दी कि प्राथमिकी दर्ज कराने के अलावा, देशभर में राजद्रोह संबंधी कानून के तहत चल रही जांचों, लंबित मुकदमों और सभी कार्यवाहियों पर भी रोक रहेगी।

उच्चतम न्यायालय ने देशभर में राजद्रोह के मामलों में सभी कार्यवाहियों पर बुधवार को तब तक के लिए रोक लगा दी, जब तक कोई ‘उचित’ सरकारी मंच इसका पुन: अध्ययन नहीं कर लेता। शीर्ष अदालत ने केंद्र एवं राज्यों को निर्देश दिया कि राजद्रोह के आरोप में कोई नई प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाए। प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने व्यवस्था दी कि प्राथमिकी दर्ज कराने के अलावा, देशभर में राजद्रोह संबंधी कानून के तहत चल रही जांचों, लंबित मुकदमों और सभी कार्यवाहियों पर भी रोक रहेगी। शीर्ष अदालत ने मामले को जुलाई के तीसरे सप्ताह के लिए सूचीबद्ध किया और कहा कि उसके सभी निर्देश तब तक लागू रहेंगे। पीठ ने कहा कि देश में नागरिक स्वतंत्रता के हितों और नागरिकों के हितों को राज्य के हितों के साथ संतुलित करने की जरूरत है।

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पीठ ने कहा, ‘‘यह अदालत एक तरफ देश के सुरक्षा हितों और अखंडता से अवगत है, तो दूसरी तरफ उसे नागरिक स्वतंत्रताओं और नागरिकों का भी ध्यान है। दोनों के बीच संतुलन की जरूरत है जो कठिन काम है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘याचिकाकर्ताओं का पक्ष है कि कानून का यह प्रावधान संविधान की रचना से पहले का है और इसका दुरुपयोग किया जा रहा है।’’ राजद्रोह में भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के तहत अधिकतम सजा उम्रकैद का प्रावधान है। इसे देश की स्वतंत्रता के 57 साल पहले तथा आईपीसी बनने के लगभग 30 साल बाद, 1890 में दंड संहिता में शामिल किया गया था। आजादी से पहले के कालखंड में बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ प्रावधान का इस्तेमाल किया गया। पिछले कुछ सालों में इस तरह के मामले बढ़े हैं। महाराष्ट्र से सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा, लेखिका अरुंधति रॉय, छात्र कार्यकर्ता उमर खालिद और पत्रकार सिद्दीक कप्पन समेत अन्य पर इस प्रावधान के तहत आरोप दर्ज किये गये। प्रधान न्यायाधीश रमण ने आदेश लिखते हुए अटॉर्नी जनरल द्वारा पहले हनुमान चालीसा पाठ करने के मामले जैसे विषयों में इस प्रावधान के दुरुपयोग के उदाहरण दिये जाने का संदर्भ दिया। केंद्र की चिंताओं का संज्ञान लेते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह) की कठोरता मौजूदा सामाजिक परिवेश के अनुरूप नहीं है’’। उसने कहा, ‘‘हम अपेक्षा करते हैं कि इस प्रावधान का पुन: अध्ययन पूरा होने तक सरकारों द्वारा कानून के उक्त प्रावधान का उपयोग जारी नहीं रखना उचित होगा।’’ शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी प्रभावित पक्ष को संबंधित अदालतों में जाने की स्वतंत्रता है और अदालतों से अनुरोध है कि मौजूदा आदेश पर विचार करते हुए राहत की अर्जियों पर विचार करें।

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आदेश में केंद्र के हलफनामे का जिक्र किया गया जिसमें स्वीकार किया गया है कि कानून पर विविध विचार हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नागरिक स्वतंत्रताओं के संरक्षण तथा मानवाधिकारों के सम्मान की वकालत करने का भी हवाला दिया गया है। पीठ ने कहा, ‘‘उपरोक्त के मद्देनजर, यह स्पष्ट है कि भारत सरकार इस अदालत द्वारा व्यक्त की गयी प्रथमदृष्टया राय से सहमत है। इस दृष्टि से भारत सरकार कानून के उक्त प्रावधान पर पुनर्विचार कर सकती है।’’ शीर्ष अदालत के आदेश में कहा गया कि कुछ याचिकाकर्ताओं को दिया गया अंतरिम स्थगनादेश अगले आदेश तक जारी रहेगा। उसने कहा, ‘‘आईपीसी की धारा 124ए के तहत तय आरोपों के संबंध में सभी लंबित मुकदमों, अपीलों और कार्यवाहियों पर रोक रहेगी। अन्य धाराओं के संबंध में निर्णय लिया जा सकता है, यदि अदालतों की राय है कि आरोपी के साथ पक्षपात नहीं होगा।’’ पुलिस अधीक्षक (एसपी) रैंक के अधिकारी को राजद्रोह के आरोप में दर्ज प्राथमिकियों की निगरानी करने की जिम्मेदारी देने के केंद्र के सुझाव पर पीठ सहमत नहीं हुई। केंद्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने यह भी कहा कि राजद्रोह के आरोप में प्राथमिकी दर्ज करना बंद नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह प्रावधान एक संज्ञेय अपराध से संबंधित है और 1962 में एक संविधान पीठ ने इसे बरकरार रखा था। केंद्र ने राजद्रोह के लंबित मामलों के संबंध में न्यायालय को सुझाव दिया कि इस प्रकार के मामलों में जमानत याचिकाओं पर शीघ्रता से सुनवाई की जा सकती है, क्योंकि सरकार हर मामले की गंभीरता से अवगत नहीं हैं और ये आतंकवाद, धन शोधन जैसे पहलुओं से जुड़े हो सकते हैं।

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विधि अधिकारी ने कहा था, ‘‘ अंतत: लंबित मामले न्यायिक मंच के समक्ष हैं और हमें अदालतों पर भरोसा करने की जरूरत है। ’’ उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र से कहा था कि राजद्रोह के संबंध में औपनिवेशिक युग के कानून पर किसी उपयुक्त मंच द्वारा पुनर्विचार किए जाने तक नागरिकों के हितों की सुरक्षा के मुद्दे पर 24 घंटे के भीतर वह अपने विचार स्पष्ट करे। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार देश में 2015 से 2020 के बीच राजद्रोह के 356 मामले दर्ज किये गये और 548 लोगों को गिरफ्तार किया गया। हालांकि छह साल की इस अवधि में राजद्रोह के सात मामलों में गिरफ्तार केवल 12 लोगों को दोषी करार दिया गया। शीर्ष अदालत ने 1962 में राजद्रोह कानून की वैधता को बरकरार रखा था और इसका दायरा सीमित करने का प्रयास किया था ताकि इसका दुरुपयोग नहीं हो। शीर्ष अदालत राजद्रोह संबंधी कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।

मोदी सरकार की दलील दिखावटी: वाम दल

वाम दलों ने बुधवार को मांग की कि उच्चतम न्यायालय को राजद्रोह कानून को पूरी तरह निष्प्रभावी कर देना चाहिए और सरकार द्वारा इसकी समीक्षा किये जाने का इंतजार नहीं करना चाहिए। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने यहां प्रेस ब्रीफिंग में कहा, ‘‘माकपा ने हमेशा राजद्रोह कानून का विरोध किया है और इसे अंग्रेजों द्वारा हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के दमन के लिए लाया गया दोषपूर्ण कानून कहा है। स्वतंत्र भारत में कानून की किताबों में इसकी कोई जगह नहीं है। अच्छी बात है कि न्यायालय ने आदेश दिया है कि इस प्रावधान पर रोक रहेगी। मोदी सरकार की यह दलील दिखावटी है कि वह मामलों की समीक्षा करेगी क्योंकि वह 2014 से सभी विरोधियों का उत्पीड़न करने के लिए राजद्रोह कानून का पूरी तरह दुरुपयोग कर रही है।

तृणमूल कांग्रेस ने राजद्रोह कानून पर न्यायालय के निर्णय का स्वागत किया

तृणमूल कांग्रेस ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय द्वारा राजद्रोह कानून के तहत सभी कार्यवाहियों पर रोक लगाने का स्वागत किया और कहा कि इस “दमनकारी कानून” को निरस्त कर देना चाहिए।  तृणमूल के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुखेंदु शेखर राय ने ट्वीट किया, “उच्चतम न्यायालय ने पुनः एक ऐतिहासिक भूमिका निभाई है। न्यायालय ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के तहत सभी लंबित मामलों, अपील और कार्यवाही पर रोक लगाई जाती है और जब तक पुनः परीक्षण नहीं कर लिया जाता तब तक इस प्रावधान का प्रयोग नहीं किया जाएगा। स्वागत योग्य निर्णय।” 

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भाजपा ने सरकार के खिलाफ आवाज दबाने के लिए राजद्रोह कानून का इस्तेमाल किया: संजय सिंह

आम आदमी पार्टी (आप) के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने राजद्रोह कानून पर रोक लगाने के उच्चतम न्यायालय के बुधवार के फैसले का स्वागत किया और आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इसका इस्तेमाल अपनी सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को दबाने के लिए कर रही है। आप के प्रवक्ता सिंह ने दावा किया कि उत्तर प्रदेश में उनके खिलाफ राजद्रोह कानून का ‘दुरुपयोग’ किया गया। उच्चतम न्यायालय ने देशभर में राजद्रोह के मामलों में सभी कार्यवाहियों पर बुधवार को रोक लगा दी और केंद्र एवं राज्यों को निर्देश दिया कि जब तक सरकार का एक ‘‘उचित मंच’’ औपनिवेशिक युग के कानून पर फिर से गौर नहीं कर लेता, तब तक राजद्रोह के आरोप में कोई नयी प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाए। 

न्यायालय ने राजद्रोह कानून पर रोक लगाई, रीजीजू ने ‘लक्ष्मण रेखा’ की बात कही

 उच्चतम न्यायालय ने राजद्रोह के मामलों में सभी कार्यवाहियों पर बुधवार को रोक लगा दी जिसके बाद केंद्रीय विधि मंत्री किरेन रीजीजू ने कार्यपालिका और न्यायपालिका समेत विभिन्न संस्थानों के लिए ‘लक्ष्मण रेखा’ की बात कही और कहा कि किसी को इसे पार नहीं करना चाहिए। शीर्ष अदालत के निर्देश जारी करने के कुछ ही समय बाद संवाददाताओं के सवालों का जवाब देते हुए कानून मंत्री ने कहा, ‘‘हम एक दूसरे का सम्मान करते हैं। अदालत को सरकार, विधायिका का सम्मान करना चाहिए। इसी तरह सरकार को भी अदालत का सम्मान करना चाहिए। हमारी स्पष्ट सीमाएं हैं और उस ‘लक्ष्मण रेखा’ को किसी को पार नहीं करना चाहिए।’’ 

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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