मैरिटल रेप अपराध है या नहीं, दिल्ली हाई कोर्ट में फंसा पेंच, सुप्रीम कोर्ट जाएगा केस
मैरिटल रेप पर बहस चल रही है कि इसे अपराध माना जाए या न माना जाए? अब इसे लेकर दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला आया है। हाईकोर्ट ने जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी हरिशंकर की डिविजन बेंच ने इस पर स्प्लिट वर्डिक्ट यानी दोनों जजों ने अलग-अलग फैसला दिया।
मैरिटल रेप यानी शादी के बाद पति द्वारा पत्नी से जबरन संबंध बनाया जाना। लंबे समय से मैरिटल रेप पर बहस चल रही है कि इसे अपराध माना जाए या न माना जाए? अब इसे लेकर दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला आया है। हाईकोर्ट ने जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी हरिशंकर की डिविजन बेंच ने इस पर स्प्लिट वर्डिक्ट यानी दोनों जजों ने अलग-अलग फैसला दिया। जस्टिस राजीव शकधर ने अपने फैसले में कहा कि मेरिटल रेप को रेप न मानना असंवैधानिक है। साथ ही उन्होंने आईपीसी की धारा 375 के सेक्शन दो को हटाने की बात कही। वहीं जस्टिस हरिशंकर जस्टिस शकधर के फैसले से असहमत दिखे। इस मामले में 393 पन्नों का खंडित फैसला सुनाया।
दोनों जज असहमत दिखे
न्यायमूर्ति शकधर ने निर्णय सुनाते हुए कहा, ‘‘जहां तक मेरी बात है, तो विवादित प्रावधान--धारा 375 का अपवाद दो-- संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता), 15 (धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध), 19 (1) (ए) (वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन हैं और इसलिए इन्हें समाप्त किया जाता है।’’ न्यायमूर्ति शकधर ने कहा कि उनकी घोषणा निर्णय सुनाए जाने की तारीख से प्रभावी होगी। जबकि न्यायमूर्ति शंकर ने कहा, ‘‘मैं अपने विद्वान भाई से सहमत नहीं हो पा रहा हूं। उन्होंने कहा कि ये प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14, 19 (1) (ए) और 21 का उल्लंघन नहीं करते। उन्होंने कहा कि अदालतें लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित विधायिका के दृष्टिकोण के स्थान पर अपने व्यक्तिपरक निर्णय को प्रतिस्थापित नहीं कर सकतीं और यह अपवाद आसानी से समझ में आने वाले संबंधित अंतर पर आधारित है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा इन प्रावधानों को दी गई चुनौती को बरकरार नहीं रखा जा सकता।
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जस्टिस हरिशंकर ने धारा 375 के सेक्शन 2 को असंवैधानिक नहीं माना। हालांकि दोनों जजों ने याचिकाकर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट में अपील के लिए हरी झंडी दे दी है। बता दें कि मैरिटल रेप के खिलाफ कोर्ट में याचिका अलग-अलग एनजीओ, आरआईटी फाउंडेशन, ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वुमन्स एसोसिएशन और दो अलग व्यक्तियों ने दायर की थी। कोर्ट ने इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता रबैका जॉन और राजशेखर राव को अम्यूकस क्यूरी नियुक्त किया था। दोनों ने अपवाद को समाप्त करने के पक्ष में तर्क दिया था।
क्या है आईपीसी की धारा 375
आपको बता दें कि आईपीसी की धारा 375 बलात्कार को परिभाषित करती है। जिसके मुताबिक किसी महिला के साथ उसकी सहमति के बिना संबंध बनाना, उसे धमकाकर, धोखे में रखकर, नशे की हालात में सेक्स के लिए राजी करना या किसी नाबालिग से संबंध बनाना रेप के दायरे में आएगा। हालांकि इसका अपवाद 2 कहता है कि पति द्वारा पत्नी के साथ संबंध बनाना रेप के दायरे में नहीं आएगा। इसी अपवाद को हटाने की मांग लंबे समय से हो रही थी।
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