Prabhasakshi Exclusive: PM Modi ने कहा था- खून और पानी साथ-साथ नहीं बह सकते, क्या इसीलिए पाक का पानी बंद करेगा भारत?

ब्रिगेडियर सेवानिवृत्त श्री डीएस त्रिपाठी ने कहा कि जब यह संधि हुई थी तब पाकिस्तान को इसका ज्यादा लाभ दिया गया जबकि जम्मू-कश्मीर को उसका हक नहीं मिल रहा है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा में यह प्रस्ताव लाया भी जा चुका है कि इस भेदभाव वाली संधि को रद्द किया जाये।
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में ब्रिगेडियर सेवानिवृत्त श्री डीएस त्रिपाठी से हमने सिंधु जल संधि को लेकर भारत की ओर से पाकिस्तान को भेजे गये नोटिस के बारे में बातचीत की और पूछा कि क्यों भारत ने सिंधु जल संधि में संशोधन के लिए पाकिस्तान को नोटिस भेजा है? हमने यह भी जाना कि क्या पाकिस्तान का पानी बंद करने की तैयारी है? हमने उन्हें याद दिलाया कि उरी हमले के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा भी था कि खून और पानी साथ-साथ नहीं बह सकते।
इसके जवाब में ब्रिगेडियर सेवानिवृत्त श्री डीएस त्रिपाठी ने कहा कि भारत ने सितंबर 1960 की सिंधु जल संधि की समीक्षा और उसमें संशोधन के लिए पाकिस्तान को नोटिस भेजा है। उन्होंने कहा कि दरअसल पाकिस्तान को पहली बार यह नोटिस छह दशक पुरानी इस संधि को लागू करने से जुड़े विवाद निपटारा तंत्र के अनुपालन को लेकर अपने रुख पर अड़े रहने के कारण भेजा गया है। उन्होंने कहा कि यह नोटिस इसलिए भेजा गया है ताकि 19 सितंबर 1960 को किये गए इस समझौते में बदलाव को लेकर प्रक्रिया शुरू की जा सके। ब्रिगेडियर सेवानिवृत्त श्री डीएस त्रिपाठी ने कहा कि संधि की समीक्षा और उसमें संशोधन के लिये भारत का नोटिस विवाद समाधान तंत्र तक ही सीमित नहीं है और पिछले 62 साल के अनुभवों के आधार पर संधि के विभिन्न अन्य प्रावधानों पर भी चर्चा हो सकती है।
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उन्होंने कहा कि इस संधि के मुताबिक पूर्वी नदियों का पानी, कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो भारत बिना रोकटोक के इस्तेमाल कर सकता है। भारत से जुड़े प्रावधानों के तहत रावी, सतलुज और ब्यास नदियों के पानी का इस्तेमाल परिवहन, बिजली और कृषि के लिए करने का अधिकार भारत को दिया गया। ब्रिगेडियर सेवानिवृत्त श्री डीएस त्रिपाठी ने कहा कि भारत द्वारा पाकिस्तान को यह नोटिस किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं से जुड़े मुद्दे पर मतभेद के समाधान को लेकर पड़ोसी देश के अपने रुख पर अड़े रहने के मद्देनजर भेजा गया है। यह नोटिस सिंधु जल संधि के अनुच्छेद 12 (3) के प्रावधानों के तहत भेजा गया है।
उन्होंने कहा कि जब यह संधि हुई थी तब पाकिस्तान को इसका ज्यादा लाभ दिया गया जबकि जम्मू-कश्मीर को उसका हक नहीं मिल रहा है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा में यह प्रस्ताव लाया भी जा चुका है कि इस भेदभाव वाली संधि को रद्द किया जाये। उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि पाकिस्तान को सबक भी सिखाया जाये और इस संधि का लाभ दोनों पक्षों को बराबर तरीके से मिले।
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