Shaurya Path: सीमा विवाद को जटिल क्यों बता रहा है China? दबाव बनाने का प्रयास हो रहा है या समाधान का नया रास्ता ढूँढ़ रहा है ड्रैगन?

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देखा जाये तो भारत-चीन सीमा विवाद का समाधान तत्काल संभव नहीं दिखता, क्योंकि यह केवल भू-राजनीति नहीं, बल्कि राष्ट्रहित, अस्मिता और क्षेत्रीय रणनीति से भी जुड़ा है। दोनों देशों को चाहिए कि वे पुराने समझौतों का सम्मान करते हुए विश्वास-निर्माण के उपायों को प्राथमिकता दें।

हाल ही में चीन ने एक बड़ा बयान देते हुए कहा है कि भारत के साथ उसका सीमा विवाद "जटिल" और "संवेदनशील" है। यह बयान ऐसे समय आया है जब दोनों देशों के बीच सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर संवाद की प्रक्रिया जारी है, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई ठोस प्रगति अब तक नहीं दिखी है। चीन के इस बयान से एक बार फिर यह स्पष्ट हो गया है कि सीमा विवाद केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि रणनीतिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक जटिलताओं से भी जुड़ा हुआ है।

सीमा विवाद की पृष्ठभूमि पर गौर करें तो आपको बता दें कि भारत और चीन के बीच लगभग 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) है, जिसे लेकर दोनों देशों की अवधारणाएँ भिन्न हैं। 1962 के युद्ध के बाद से यह मुद्दा अधर में है। इस सीमा के तीन मुख्य क्षेत्र हैं— पश्चिमी सेक्टर (लद्दाख), मध्य सेक्टर (उत्तराखंड और हिमाचल) और पूर्वी सेक्टर (अरुणाचल प्रदेश)। चीन अरुणाचल प्रदेश को “दक्षिण तिब्बत” कहता है, जबकि यह भारत का अभिन्न राज्य है।

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चीन का हालिया बयान से मिले संकेत की बात करें तो आपको बता दें कि चीनी विदेश मंत्रालय द्वारा "सीमा मुद्दे की जटिलता" को स्वीकार करना यह दर्शाता है कि बीजिंग अब इसे एक लंबे समय तक चलने वाली चुनौती के रूप में देख रहा है। यह बयान कूटनीतिक रूप से संतुलित तो है, लेकिन इसका उद्देश्य संभवतः भारत पर यह दबाव बनाना भी हो सकता है कि वह सीमित समाधान की ओर बढ़े, यानी चीन के हिसाब से कोई समझौता किया जाये।

हम आपको याद दिला दें कि 2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प ने भारत-चीन संबंधों में बड़ी तल्खी पैदा की। इस घटना के बाद भारत ने आर्थिक, सामरिक और कूटनीतिक स्तर पर चीन के प्रति रुख को सख्त किया। सीमा पर सैन्य तैनाती बढ़ाई गई, चीन के कई ऐप्स पर प्रतिबंध लगाए गए और ‘वोकल फॉर लोकल’ जैसे अभियानों के ज़रिए चीन पर निर्भरता कम करने की पहल की गई।

हालांकि संबंध सुधारने के प्रयास भी जारी हैं और पिछले चार वर्षों में दोनों देशों के बीच दर्जनों दौर की सैन्य और कूटनीतिक वार्ताएं हो चुकी हैं। कुछ क्षेत्रों से सेनाओं की वापसी हुई भी है, लेकिन कई स्थानों पर अब भी गतिरोध बना हुआ है, विशेषकर डेपसांग और डेमचोक जैसे संवेदनशील इलाकों में। उधर, भारत की ओर से लगातार यह कहा गया है कि जब तक सीमाओं पर शांति नहीं होगी, तब तक द्विपक्षीय संबंध सामान्य नहीं हो सकते। भारत स्पष्ट कर चुका है कि सीमा का यथास्थिति में बदलाव उसे स्वीकार नहीं है और एकतरफा प्रयासों को वह मान्यता नहीं देगा।

अब सवाल उठता है कि आगे की राह क्या है? देखा जाये तो सीमा विवाद का समाधान तत्काल संभव नहीं दिखता, क्योंकि यह केवल भू-राजनीति नहीं, बल्कि राष्ट्रहित, अस्मिता और क्षेत्रीय रणनीति से भी जुड़ा है। दोनों देशों को चाहिए कि वे पुराने समझौतों का सम्मान करते हुए विश्वास-निर्माण के उपायों को प्राथमिकता दें। "लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल" की स्पष्ट व्याख्या और निगरानी प्रणाली को मजबूत करना भी समाधान की दिशा में एक कदम हो सकता है। कुल मिलाकर देखें तो चीन द्वारा सीमा विवाद को ‘जटिल’ कहना एक यथार्थ स्वीकार्यता है। यह विवाद जितना पुराना है, उतना ही संवेदनशील भी। इसलिए समाधान तुरंत निकलने की उम्मीद करना बेमानी है।

हम आपको यह भी बता दें कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 26 जून को चिंगदाओ में अपने चीनी समकक्ष दोंग जून के साथ बैठक में प्रस्ताव दिया था कि भारत और चीन को सीमाओं पर तनाव कम करने तथा सरहदों के निर्धारण की मौजूदा व्यवस्था को पुनर्जीवित करने से संबंधित कदम उठाकर एक सुव्यवस्थित रूपरेखा के तहत “जटिल मुद्दों” को सुलझाना चाहिए। राजनाथ सिंह की टिप्पणी को लेकर चीन की प्रतिक्रिया पूछे जाने पर विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा, ‘‘मैं आपको बता सकती हूं कि चीन और भारत ने सीमा से जुड़े विषय पर विशेष प्रतिनिधि तंत्र की स्थापना की है तथा चीन-भारत सीमा संबंधी मुद्दों के समाधान के लिए राजनीतिक मापदंडों एवं मार्गदर्शक सिद्धांतों पर सहमति बनाई है।" उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों के बीच विभिन्न स्तरों पर कूटनीतिक और सैन्य संचार तंत्र हैं। निंग ने कहा, "चीन भारत के साथ सरहदों के निर्धारण और सीमा प्रबंधन सहित अन्य मुद्दों पर संवाद बनाए रखने, सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और स्थिरता बनाए रखने तथा सीमा पार आदान-प्रदान एवं सहयोग को बढ़ावा देने के लिए तैयार है।"

विशेष प्रतिनिधि स्तर की 23 दौर की वार्ता के बावजूद सीमा मुद्दे को सुलझाने में हो रही देरी के बारे में पूछे जाने पर निंग ने कहा, "सीमा का सवाल जटिल है और इसे सुलझाने में समय लगता है।" उन्होंने कहा, "सकारात्मक पक्ष यह है कि दोनों देशों ने पहले ही गहन संवाद के लिए विभिन्न स्तर पर तंत्र स्थापित कर लिए हैं। हमें उम्मीद है कि भारत चीन के साथ इसी दिशा में काम करेगा, प्रासंगिक मुद्दों पर संवाद जारी रखेगा और सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और स्थिरता बनाए रखेगा।" हम आपको यह भी बता दें कि विशेष प्रतिनिधियों के रूप में 23वीं बैठक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच पिछले साल दिसंबर में हुई थी। 2020 में भारत-चीन सीमा क्षेत्रों के पश्चिमी क्षेत्र में टकराव के बाद विशेष प्रतिनिधियों की यह पहली बैठक थी।

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