Shaurya Path: Israel-Lebanon भिड़ंत, Finland, India-Bhutan, India-China, Combined Commanders Conference 2023 पर Brigadier (R) DS Tripathi से बातचीत

Brigadier DS Tripathi
Prabhasakshi

चीन की ओर से अरुणाचल प्रदेश के कुछ स्थानों के नाम और उनके अधीनस्थ प्रशासनिक जिलों की श्रेणी सूचीबद्ध की गई है। चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने भारत की आलोचना पर प्रतिक्रिया देते हुए बीजिंग में संवाददाता सम्मेलन में दावा किया कि ‘जंगनान’ चीनी क्षेत्र का हिस्सा है।

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह अरुणाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों के नाम बदलने के चीनी प्रयास की, भूटान नरेश की भारत यात्रा की, फिनलैंड के नाटो का सदस्य बनने की और कम्बांइड कमांडर्स कांफ्रेंस के मुद्दे पर बातचीत की गयी। इन सब मुद्दों पर बातचीत के लिए हमारे साथ हमेशा की तरह मौजूद रहे ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) श्री डीएस त्रिपाठी जी।

प्रश्न-1. अरुणाचल प्रदेश की कुछ जगहों के नाम चीन ने अपने हिसाब से रख दिये हैं। जिसका भारत ने विरोध किया है। इसके अलावा चीन ने पुतिन की नई विदेश नीति का समर्थन करते हुए कहा है कि वह रूस और भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए तैयार है। यह सब क्या दर्शाता है?

उत्तर- भारत ने अरुणाचल प्रदेश के कुछ स्थानों का चीन द्वारा पुन: नामकरण करने को सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि यह राज्य भारत का अभिन्न और अटूट हिस्सा है और ‘गढ़े’ गए नाम रखने से यह हकीकत बदल नहीं जायेगी। भारत की यह प्रतिक्रिया ऐसे समय में आई है, जब हाल में चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने अरुणाचल प्रदेश के लिए 11 स्थानों के मानकीकृत नाम जारी किए थे। चीन इस क्षेत्र को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताकर इस पर अपना दावा करता है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इसे सिरे से खारिज करते कहा कि ‘मनगढंत’ नाम रखने से हकीकत बदल नहीं जायेगी। चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने अरुणाचल प्रदेश के लिए 11 स्थानों के मानकीकृत नाम जारी किए, जिसे वह स्टेट काउंसिल, चीन की कैबिनेट द्वारा जारी भौगोलिक नामों पर नियमों के अनुसार तिब्बत का दक्षिणी भाग ज़ंगनान बताता है। चीन की सरकार द्वारा संचालित ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने अपनी एक खबर में कहा कि मंत्रालय ने 11 स्थानों के आधिकारिक नाम जारी किए, जिनमें दो भूमि क्षेत्रों, दो आवासीय क्षेत्रों, पांच पर्वत चोटियों और दो नदियों सहित उनके सटीक निर्देशांक भी दिए गए हैं। इसके अलावा, स्थानों के नाम और उनके अधीनस्थ प्रशासनिक जिलों की श्रेणी सूचीबद्ध की गई है। चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने भारत की आलोचना पर प्रतिक्रिया देते हुए बीजिंग में संवाददाता सम्मेलन में दावा किया कि ‘जंगनान’ चीनी क्षेत्र का हिस्सा है।

चीनी मंत्रालय द्वारा अरुणाचल प्रदेश के लिए जारी मानकीकृत भौगोलिक नामों की यह तीसरी सूची है। अरुणाचल में छह स्थानों के मानकीकृत नामों की पहली सूची 2017 में जारी की गई थी, और 15 स्थानों की दूसरी सूची 2021 में जारी की गई थी। चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के कुछ स्थानों का पुन: नामकरण ऐसे समय में किया है, जब पूर्वी लद्दाख में मई 2020 में दोनों देशों के बीच शुरू गतिरोध अभी तक समाप्त नहीं हुआ है। पिछले महीने ही विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर स्थिति अभी भी काफी गंभीर बनी हुई है, जो कई स्थानों पर दोनों देशों की सीमा पर सैनिकों की काफी करीब तैनाती के कारण भी है। हालांकि, विदेश मंत्री ने यह भी कहा था कि सीमा पर कई स्थानों पर पीछे हटने की प्रक्रिया में प्रगति हुई है। भारत का कहना है कि सीमा क्षेत्रों में शांति स्थापित हुए बिना चीन के साथ संबंध सामान्य नहीं हो सकते हैं।

वहीं, अमेरिका ने कहा है कि वह अरुणाचल प्रदेश को भारत के अभिन्न अंग के रूप में मान्यता देता है और क्षेत्रीय दावों के तहत स्थानीय इलाकों का नाम बदलने के किसी भी एकतरफा प्रयास का कड़ा विरोध करता है। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरिन ज्यां-पियरे ने कहा है कि अमेरिका उस क्षेत्र (अरुणाचल प्रदेश) को लंबे समय से (भारत के अभिन्न अंग के रूप में) मान्यता देता रहा है। हम इलाकों का नाम बदलकर क्षेत्रीय दावों को आगे बढ़ाने के किसी भी एकतरफा प्रयास का कड़ा विरोध करते हैं।

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वहीं जहां तक चीन के भारत और रूस के साथ संबंधों की बात है तो चीन ने रूस की नई विदेश नीति अवधारणा पर सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि बीजिंग, मॉस्को और नई दिल्ली “उल्लेखनीय प्रभाव” के साथ उभरती “प्रमुख शक्तियां” हैं तथा वह जटिल परिवर्तनों के मद्देनजर उनके साथ संबंध बढ़ाने और दुनिया को “सकारात्मक संकेत” भेजने के लिए तैयार है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने गत शुक्रवार को नई विदेश नीति अवधारणा पर हस्ताक्षर किए, जिसमें कहा गया है कि चीन और भारत के साथ संबंधों को मजबूत एवं गहरा करना रूस के लिए एक कूटनीतिक प्राथमिकता है। पुतिन द्वारा अनुमोदित एक अद्यतन विदेश नीति सिद्धांत के अनुसार, रूस यूरेशिया में भारत के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी और व्यापार संबंधों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करेगा तथा अमित्र देशों और उनके गठबंधनों के विनाशकारी कार्यों का प्रतिरोध सुनिश्चित करेगा। 

प्रश्न-2. भूटान नरेश की भारत यात्रा को कितना सार्थक मानते हैं आप? क्या उनकी इस यात्रा से चीन के कुटिल मंसूबे विफल हो पाएंगे?

उत्तर- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भूटान नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक के साथ दोनों देशों के राष्ट्रीय हितों से जुड़े मुद्दों सहित द्विपक्षीय संबंधों के सम्पूर्ण आयामों पर विस्तृत चर्चा की और समय की कसौटी पर खरा उतरे अपने रिश्तों को विस्तार देने के लिए पांच सूत्री व्यापक खाका पेश किया। प्रधानमंत्री मोदी और भूटान नरेश वांगचुक के बीच यह वार्ता ऐसे समय में हुई जब डोकलाम विवाद पर भूटान के प्रधानमंत्री लोते शेरिंग की हाल की कुछ टिप्पणियों को कुछ लोग इस पड़ोसी देश के चीन के करीब जाने के रूप में देख रहे हैं। विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने इस बैठक के बारे में कहा था कि भारत और भूटान सुरक्षा से जुड़े विषयों पर करीबी सम्पर्क में बने हुए हैं। क्वात्रा ने बताया था कि भूटान नरेश की भारत यात्रा विविध क्षेत्रों में हमारे सहयोग को और व्यापक बनाने का खाका तैयार करती है। बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी और भूटान नरेश ने अपने-अपने राष्ट्रीय हितों से जुड़े मुद्दों सहित द्विपक्षीय संबंधों के सम्पूर्ण आयामों पर चर्चा की। वैसे भी अभूतपूर्व और अनोखे संबंधों के बीच भारत और भूटान के बीच समय की कसौटी पर खरा उतरा सुरक्षा सहयोग ढांचा है और इसके तहत दोनों देश दीर्घकालिक परंपरा के अनुरूप सुरक्षा सहित साझा हितों से जुड़े मुद्दों पर करीबी परामर्श करते हैं। भारत उन सभी विषयों पर करीबी नजर रखता है जिनका सुरक्षा हितों पर प्रभाव पड़ सकता है। जहां तक हाल के बयान का संदर्भ है, भारत और भूटान परस्पर साझा हितों से जुड़े विषयों पर करीबी सम्पर्क रखते हैं जिसमें सुरक्षा हित शामिल हैं और इस मुद्दे (डोकलाम) पर हम अपने पुराने रूख को दोहराते हैं। हमें यह भी देखना चाहिए कि इस बैठक के बाद प्रधानमंत्री ने क्या कहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ट्वीट में भूटान नरेश के साथ अपने संबंधों को गर्मजोशी भरा बताया। उन्होंने कहा कि हमारी बातचीत गर्मजोशी भरी और सार्थक रही। विदेश सचिव ने कहा कि पांच बिंदुओं के आधार पर संबंधों को विस्तार देने की रूपरेखा चिन्हित की गई। इसमें पहला आर्थिक और विकास गठजोड़ रहा जिसमें भूटान की इस वर्ष शुरू होने वाली 13वीं पंचवर्षीय योजना शामिल है। भारत के सहयोग में भूटान में सुधार प्रक्रिया के लिए वित्तीय सहायता शामिल है। दूसरा विषय कारोबार, सम्पर्क और निवेश सहयोग का रहा। इसमें सम्पर्क आधारभूत ढांचा, रेल सम्पर्क, वायु सम्पर्क और जल मार्ग सम्पर्क पर चर्चा शामिल है। तीसरा मुद्दा दोनों देशों के बीच दीर्घकालिक और टिकाऊ कारोबार की सुविधा का शामिल है। चौथा विषय ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग और पांचवां क्षेत्र अंतरिक्ष और ‘स्टार्टअप’ का शामिल है। इसके अलावा कोकराझार (असम) और गेलेफू (भूटान) के बीच प्रस्तावित रेल लिंक को गति प्रदान की जायेगी और यह दोनों देशों के बीच पहला रेल लिंक होगा। दोनों पक्ष भारत-भूटान सीमा पर जयगांव के पास पहली समन्वित चेक पोस्ट स्थापित करने की संभावना पर विचार कर रहे हैं। भारत की तरफ से भूटान को कृषि उत्पाद का निर्यात तंत्र तैयार करने में मदद की जाएगी। दोनों पक्षों ने चुखा जल विद्युत परियोजना के शुल्क के संशोधन पर भी चर्चा की। भारत ने कहा है कि हम संकोश जल विद्युत परियोजना सहित अन्य जल विद्युत परियोजना को अंतिम रूप देने के लिए प्रयास तेज करेंगे। डोकलाम विवाद पर हालांकि शेरिंग की हाल की टिप्पणियों के बीच भूटान ने भी कहा है कि सीमा विवाद पर उसके रुख में कोई बदलाव नहीं आया है।

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को दिल्ली हवाई अड्डे पर भूटान नरेश की अगवानी की थी। यह भूटान नरेश की इस यात्रा को नयी दिल्ली द्वारा दिए गए महत्व को दर्शाता है। जयशंकर ने सोमवार शाम को भूटान नरेश से मुलाकात की थी और कहा था कि भूटान के भविष्य और भारत के साथ अनूठी साझेदारी को मजबूत करने के लिए नरेश के दृष्टिकोण की सराहना की जाती है। भूटान भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण देश है और पिछले कुछ वर्षों में दोनों पक्षों के बीच रक्षा और सुरक्षा संबंधों में महत्वपूर्ण विस्तार हुआ है। वर्ष 2017 में डोकलाम में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच 73 दिनों तक चले टकराव की पृष्ठभूमि में पिछले कुछ वर्षों में दोनों देशों के बीच रणनीतिक संबंधों में तेजी देखी गई है। डोकलाम पठार को भारत के सामरिक हित के लिहाज से एक महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जाता है। डोकलाम ट्राई-जंक्शन पर 2017 में गतिरोध तब शुरू हुआ था जब चीन ने उस क्षेत्र में सड़क का विस्तार करने की कोशिश की थी, जिसके बारे में भूटान ने दावा किया था कि वह उसका है। भारत ने निर्माण का कड़ा विरोध किया था क्योंकि इससे उसके समग्र सुरक्षा हित प्रभावित होते। भारत-चीन के बीच गतिरोध कई दौर की बातचीत के बाद सुलझा। अक्टूबर 2021 में, भूटान और चीन ने अपने सीमा विवाद को हल करने के लिए बातचीत में तेजी लाने के लिए ‘‘तीन-चरणीय कार्ययोजना’’ को लेकर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। भूटान चीन के साथ 400 किलोमीटर से अधिक लंबी सीमा साझा करता है और दोनों देशों ने विवाद को हल करने के लिए सीमा वार्ता के 24 से अधिक दौर आयोजित किए हैं। जहां तक हालिया विवाद की बात है तो वह तब शुरू हुआ जब हाल ही में एक साक्षात्कार में भूटान के प्रधानमंत्री ने कहा था कि डोकलाम में सीमा विवाद को सुलझाने में चीन की भी बराबर की भूमिका है। वैसे भारत लगातार भूटान का शीर्ष व्यापारिक भागीदार रहा है और भूटान में निवेश का प्रमुख स्रोत बना हुआ है।

प्रश्न-3. फिनलैंड के नाटो का सदस्य बनने के बाद अब क्षेत्र में क्या रणनीतिक बदलाव आ सकते हैं?

उत्तर- भू-राजनीति की दुनिया में, महान शक्तियां अपने नियम बनाती, तोड़ती और उनसे खेलती हैं। छोटे राज्यों को बड़े पैमाने पर दुनिया के साथ तालमेल बिठाना पड़ता है, जिसे अकसर दूसरों द्वारा निर्धारित किया जाता है। यही कारण है कि फ़िनलैंड, जो केवल 55 लाख लोगों का देश है और यूरोप में एक तटस्थ देश के रूप में दशकों से विख्यात है, का नाटो में शामिल होने का फैसला इतना महत्वपूर्ण है। यह इस बात को रेखांकित करता है कि कैसे यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने वैश्विक वास्तविकताओं को विचलित कर दिया है। बढ़-चढ़कर बताई जाने वाली "नियम-आधारित व्यवस्था" जिसे अमेरिका और उसके नाटो सहयोगियों ने दुनिया को चलाने का सबसे अच्छा तरीका बताया है, वह बदल रहा है- यह कुछ को आकर्षित कर रहा है, लेकिन फिर भी कुछ राष्ट्रों को इस क्लब में शामिल होने को लेकर संदेह है। इस बीच, रूस और चीन वैश्विक मामलों पर अमेरिका और पश्चिम के आधिपत्य पर विवाद कर रहे हैं और एक ऐसी प्रणाली की तलाश कर रहे हैं जिसमें शक्ति को क्षेत्रीय रूप से वितरित किया जाए, मॉस्को और बीजिंग के साथ जो वे दुनिया के अपने हिस्सों के रूप में देखते हैं। दुनिया भर के छोटे राष्ट्र यह हिसाब लगा रहे हैं कि वे दुनिया के इस नए विभाजन में कैसे फिट होते हैं।

फ़िनलैंड एक ऐसा ही देश है और उसने एक नाटकीय चुनाव किया है। सदियों से वह अपने विशाल पड़ोसी: जारशाही रूस, फिर सोवियत संघ और आज व्लादिमीर पुतिन के रूस के साथ अपने हितों को तौलता रहा है। शीत युद्ध के वर्षों के दौरान, फिनलैंड ने रूस के साथ सह-अस्तित्व के लिए तटस्थता का रास्ता अपनाया। निकटवर्ती महान शक्ति से निपटने के इस तरीके को फिनलैंड की विशिष्ट नीति के रूप में जाना जाता था। एक साल पहले यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के साथ, हेलसिंकी में निर्णयकर्ताओं ने इस नीति के ताबूत में अंतिम कीलें ठोंक दी हैं। पुतिन के लिए चिंता यह है कि यह नीति मॉडल न केवल फिनलैंड के लिए खत्म की गई है; यह यूक्रेन में संघर्ष के संभावित समाधान के रूप में भी खत्म हो गई है। अतीत अब प्रस्तावना के रूप में नहीं है

ज़ारवादी साम्राज्य के भीतर सौ से अधिक वर्षों के बाद, फ़िनलैंड ने 1917 में अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की। अगले लगभग 20 वर्षों के लिए यह सोवियत संघ के बगल में एक सोवियत विरोधी चौकी बन गया। सोवियत तानाशाह जोसेफ स्टालिन ने फिनलैंड को साम्यवादी राज्य के दुश्मनों के प्रवेश द्वार के रूप में देखा। उनके दिमाग में, फ़िनलैंड एक अस्तित्वगत ख़तरा था- जैसा कि आज पुतिन यूक्रेन को देखते हैं। 1939 के जर्मन-सोवियत समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद पूर्वी पोलैंड और बाल्टिक राज्यों- एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया पर कब्जा करने के बाद, स्टालिन ने फिनलैंड से गंभीर क्षेत्रीय रियायतों की मांग की। परिणामी युद्ध ने देखा कि फिन्स ने अपने पूर्वी प्रांतों को खो दिया, लेकिन वे अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने में कामयाब रहे- हां उन्हें इसकी कुछ कीमत जरूर चुकानी पड़ी। शीत युद्ध के दौरान घरेलू मामलों में अपने लोकतांत्रिक राज्य और पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को बनाए रखने की कीमत फिनलैंड की विशिष्ट नीति थी। तटस्थता के लिए अनुकूलित मॉडल के माध्यम से, फिनलैंड आधी शताब्दी से अधिक समय तक मास्को को समझाने में सक्षम था कि यह कोई खतरा नहीं बल्कि एक वफादार व्यापारिक भागीदार था।

1991 में सोवियत संघ के पतन के साथ, फिन्स के बीच फिनलैंड की इस विशिष्ट नीति के बारे में संदेह बढ़ गया। उन्होंने बहस की कि क्या उन्हें पश्चिमी गठबंधन में शामिल होने पर विचार करना चाहिए। लेकिन यह 2022 में यूक्रेन पर पुतिन का आक्रमण था जिसने तराजू को तोड़ दिया और अंत में हेलसिंकी को आश्वस्त किया कि नाटो का सदस्य बनकर इसकी सुरक्षा को बढ़ाया जाएगा।

पिछले 30 वर्षों से, स्वतंत्र यूक्रेन को पुतिन के लिए एक समस्या के रूप में देखा गया था, जो पश्चिम की ओर इसके झुकाव से डरते थे। इसी तरह, पिछले साल आक्रमण से पहले भी, रूस यूक्रेन के लिए एक समस्या था, कीव में अधिकारियों को पूर्व से प्रभुत्व का डर था। वर्तमान युद्ध से पहले, स्वतंत्रता और तटस्थता के फिनिश मॉडल को यूक्रेन के नाटो में शामिल होने या रूसी नेतृत्व वाले रणनीतिक गठबंधन, सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन के करीब आने के व्यवहार्य विकल्प के रूप में देखा गया था। विदेश नीति में पूरी तरह से स्वतंत्र रूप से कार्य करने के अपने अधिकार से समझौता करके अपनी संप्रभुता को संरक्षित करने का फिनलैंड का अनुभव पूर्व सोवियत राज्यों के लिए एक व्यवहार्य मॉडल हो सकता है, कुछ पर्यवेक्षकों ने ऐसी राय जताई है विशेष रूप से यूक्रेन के संबंध में। अमेरिका की पहल पर, पश्चिम ने अनमने भाव से यूक्रेन को नाटो सदस्यता का वादा किया, जो रूस को कतई मंजूर नहीं था। और यूरोपीय संघ ने यूक्रेन को घनिष्ठ आर्थिक और राजनीतिक संबंधों की पेशकश की, जिससे मास्को में भय पैदा हुआ कि यह नाटो की ओर पहला कदम था। 2014 में क्रीमिया पर रूसी कब्जे के बाद, यूक्रेनियन और भी तेजी से पश्चिम की ओर मुड़े और नाटो सदस्यता के पश्चिमी वादों को गंभीरता से लेने लगे।

नाटो में फ़िनलैंड का प्रवेश फ़िनलैंड के विशिष्ट मॉडल के संभावित अंत को चिह्नित करता है। यहाँ तक कि फ़िनलैंड ने भी इसे त्याग दिया है; तटस्थ स्वीडन अब पश्चिमी गठबंधन में शामिल होने के लिए उत्सुक है; और अन्य देश, यहां तक कि स्विटज़रलैंड भी, एक ध्रुवीकृत दुनिया में गुटनिरपेक्षता की प्रभावकारिता पर सवाल उठा रहे हैं। इसके स्थान पर, हमारे पास पूर्वी यूरोप का "नाटोफिकेशन" है- कुछ ऐसा जिसे पुतिन ने अनजाने में तेज कर दिया और जो पुतिन के रूस को कम मिलनसार पड़ोसियों के साथ छोड़ देता है। इस बीच, फिनलैंड और स्वीडन जैसे देशों के पास कम विकल्प बचे हैं।

प्रश्न-4. इजराइल और लेबनान आपस में क्यों भिड़ गये हैं। इस विवाद की आखिर जड़ क्या है?

उत्तर- अभी दुनिया रूस यूक्रेन युद्ध को देख ही रही थी कि अब इजराइल और लेबनान भी आपस में भिड़ गये हैं। दरअसल पूर्वी यरुशलम स्थित अल-अक्सा मस्जिद में हिंसक कार्रवाई की पृष्ठभूमि में हालात खराब हो गये हैं। यरुशलम में बुधवार को लगातार दूसरी रात हिंसा जारी रही, जब फलस्तीनियों ने ‘ओल्ड सिटी’ के संवेदनशील परिसर में स्थित अल-अक्सा मस्जिद में स्वयं को बंद कर लिया और इजराइली पुलिस ने उन्हें हटाने के लिए बल प्रयोग किया। वैसे फलस्तीन के सवाल पर हमारी स्थिति स्पष्ट और सुसंगत रही है। भारत सरकार दो-राज्य समाधान प्राप्त करने के लिए इजराइल और फलस्तीनियों के बीच सीधी बातचीत को फिर से शुरू करने के सभी प्रयासों का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है। 

इजराइल से जो मीडिया रिपोर्ट सामने आ रही हैं वह दर्शा रही हैं कि इजराइल पर दक्षिणी लेबनान से दर्जनों रॉकेट दागे गए थे। बताया जा रहा है कि 34 रॉकेट इजराइली सीमा की ओर दागे गए थे, जिनमें से 5 इजराइल में आकर गिरे। बाकी रॉकेट आयरन डोम ने गिरा दिए। इससे सवाल यह भी उठा है कि क्या इजराइल की आयरन डोम तकनीक अब सही परिणाम नहीं दे पा रही है? वैसे देखा जाये तो 2006 के युद्ध के बाद से लेबनान की ओर से दागे गए रॉकेटों की यह सबसे बड़ी संख्या है। 2006 की जंग के दौरान भी इजराइल में हजारों रॉकेट लॉन्च किए गए थे। इसके अलावा अगस्त 2021 में हिजबुल्लाह ने उत्तरी इजराइल में 19 रॉकेट दागे थे। 

प्रश्न-5. हाल ही में कम्बांइड कमांडर्स कांफ्रेंस सम्पन्न हुई। इस बार इस बैठक में क्या मुद्दे उठे और सरकार की तरफ से चिंताओं का क्या समाधान किया गया?

उत्तर- यह सालाना ऐसी बैठक होती है जिसमें तीनों सेनाओं के अध्यक्ष समेत तमाम वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहते हैं। प्रधानमंत्री को सारी तैयारियों, चुनौतियों और कमियों का विवरण दिया जाता है और रक्षा मंत्री अपनी तैयारियों का खाका पेश करते हैं। तीनों सेनाओं के समन्वय को बेहतर बनाने के लिहाज से भी यह बैठक काफी महत्वपूर्ण होती है। इस समय जो वैश्विक परिदृश्य है उस पर भी इस बैठक में गौर किया गया होगा और आने वाली चुनौतियों से निबटने की तैयारियों को अंतिम रूप दिया गया होगा।

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