Bhartendu Harishchandra Birth Anniversary: आधुनिक हिंदी के पितामह कहे जाते हैं भारतेंदु हरिश्चंद्र, जानिए रोचक बातें

Bhartendu Harishchandra
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आधुनिक हिंदी के पितामह कहे जाने वाले महान साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र 09 सितंबर को जन्म हुआ था। भारतेंदु ने गद्य, काव्य, नाटक, अनुवाद, निबंध और पत्रकारिता में उन्होंने जो लिखा-किया, वह कालजयी हुआ।

आज ही के दिन यानी की 09 सितंबर को आधुनिक हिंदी के पितामह कहे जाने वाले महान साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म हुआ था। उन्होंने सिर्फ 34 साल की उम्र तक में इतना लिखा और इतना काम कर गए कि उनके समय को 'भारतेंदु युग' कहा जाता है। भारतेंदु ने गद्य, काव्य, नाटक, अनुवाद, निबंध और पत्रकारिता में उन्होंने जो लिखा-किया, वह कालजयी हुआ। आज हम सभी जो हिंदी बोलते और लिखते हैं, वह भारतेंदु की ही देन है। भारतेंदु हरिश्चंद्र को आधुनिक हिंदी का जनक माना जाता है। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर भारतेंदु हरिश्चंद्र के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और परिवार

काशी के संपन्न वैश्य परिवार में 09 सितंबर 1850 को भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम गोपालचंद्र था, जोकि एक अच्छे कवि थे। जब भारतेंदु 5 साल के थे तो उनकी मां का निधन हो गया और जब 10 वर्ष के हुए, तो पिता की मृत्यु हो गई। हरिश्चन्द्र काव्य-प्रतिभा अपने पिता से विरासत में मिली थी। भारतेंदु ने महज 5 साल की उम्र में अपने पिता को दोहा बनाकर सुनाया था। उन्होंने संस्कृत, मराठी, बंगला, गुजराती, अंग्रेजी, पंजाबी और उर्दू भाषाएं भी सीख लीं।

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खड़ी बोली का विकास

बता दें कि भारतेंदु हरिश्चंद्र के समय अंग्रेजी हुकूमत का बोलबाला था। अंग्रेजी का वर्चस्व बढ़ रहा था और राजकाज और संभ्रांत वर्ग की भाषा फारसी थी। इस दौरान तक उर्दू भी चलन में आ गई थी। वहीं साहित्य में ब्रजभाषा का बोलबाला था। इस समय में भारतेंदु ने न सिर्फ खड़ी बोली का विकास किया, बल्कि साहित्य में नवीन आधुनिक चेतना का समावेश किया। उन्होंने साहित्य को आम जन से जोड़ा। भारतेंदु के गद्य की भाषा सरल और व्यवहारिक है और उन्होंने कुशलतापूर्वक मुहावरों का प्रयोग किया है।

जब भारतेंदु हरिश्चंद्र का अविर्भाव हुआ था, उस समय देश गुलाम था और भारतीय लोगों में विदेशी सभ्यता के प्रति आकर्षण था। इस दौरान लोग अंग्रेजी पढ़ना और समझना गर्व की बात समझते थे। हिंदी के प्रति लोगों में आकर्षण काफी कम था, ऐसे में भारतेंदु ने अपनी लेखनी की धार को अंग्रेजी हुकूमत की ओर मोड़ दिया। वहीं लोगों में खुद की भाषा के प्रति भी आकर्षण पैदा करने का काम किया था।

भारतेंदु हरिश्चंद्र ने 'सत्य हरिश्चन्द्र', 'श्री चंद्रावली', 'भारत दुर्दशा', 'वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति', 'विषस्य विषमौषधम्', 'प्रेमजोगिनी', 'नीलदेवी', 'अंधेर नगरी' और 'सती प्रताप' जैसे विभिन्न विधाओं में नाटक लिखे। भारतेंदु का 'अंधेर नगरी' नाटक व्यवस्था पर तंज कसता है और आज भी चर्चित है।

मृत्यु

भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदी साहित्य को एक से बढ़कर एक अद्भुत रचनाएं लिखीं। वहीं बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी भारतेन्दु हरिश्चचन्द्र का 06 जनवरी 1885 को 34 साल की उम्र में निधन हो गया था।

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