Bipin Chandra Pal Death Anniversary: बिपिन चंद्र पाल को कहा जाता था क्रांतिकारी विचारों का जनक

Bipin Chandra Pal
Prabhasakshi

बिपिन चंद्र पाल एक भारतीय क्रांतिकारी, शिक्षक, पत्रकार व लेखक के तौर पर जाने जाते हैं। आज ही के दिन 20 मई को इस क्रांतिकारी ने अपनी आंखें सदा के लिए मूंद ली थी। इन्होंने अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए उग्र स्वरूपों को अपनाया था।

देश की आजादी के लिए कई स्वतंत्रता क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है। बता दें कि 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी के शुरु में भारत में आजादी का आंदोलन अपना स्वरूप ले रहा था। 19वीं सदी के अंतिम दशक में आजादी की लड़ाई नरम और गरम दल में बंट गई थी। शुरूआत में नरम दल के नेता आजादी की लड़ाई में प्रभावी दिखे। लेकिन बाद में गरम दल के नेता काफी सुर्खियों में रहे। वहीं गरम दल के नेताओं में लाल-बाल और पाल की तिकड़ी काफी फेमस है। वहीं इस तिकड़ी ने अंग्रेजों की नाम में दम कर दिया था। 

बता दें कि पंजाब के लाला लाजपत राय, महाराष्ट्र से बाल गंगाधर तिलक और बंगाल के बिपिन चंद्र पाल न सिर्फ अपने क्षेत्र बल्कि पूरे भारत में काफी लोकप्रिय हो गए थे। बता दें कि इस तिकड़ी में बिपिन चंद्र पाल को राष्ट्रवादी नेता और क्रांतिकारी विचारों के जनक के तौर पर जाना जाता था। लाल-बाल और पाल की तिकड़ी ने अपने तीखे प्रहार से अंग्रेजी हुकुमत की नींवें हिला दी थी।

जन्म और शिक्षा

बंगाल के सिल्हेट जिले के पोइली गांव में 7 नवंबर 1858 को बिपिन चंद्र पाल जन्म हुआ था। उनके पिता रामचन्द्र पाल जमींदार होने के साथ ही फारसी भाषा के भी विद्वान थे। वहीं बिपिन को एक शिक्षक, समाज सुधारक, वक्ता, लेखक और पत्रकार के तौर पर जाना जाता है। बिपिन चंद्र ने चर्च मिशन सोसाइटी कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की थी। बाद में वह इसी कॉलेज में पढ़ाने लगे थे।

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क्रांतिकारी विचारों के जनक थे बिपिन चंद्र

भारत में बिपिन चंद्र पाल को क्रांतिकारी विचारों का जनक भी कहा जाता है। वह बचपन से ही क्रांतिकारी स्वभाव के थे। उनके विचार में स्पष्टता साफ झलकती थी। बिपिन चंद्र ने कम उम्र से भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने लगे थे। वह सार्वजनिक और निजी जीवन में समान रूप से स्पष्टवादी और क्रांतिकारी रहे। उस दौरान बिपिन चंद्र ने अपनी पहली पत्नी की मौत के बाद ऊंचे जाति की विधवा से शादी रचाई थी। जो उस जमाने में काफी बड़ी बात थी। हालांकि उनके इस कदम के बाद पाल को अपना घर छोड़ना पड़ा था। वहीं पाल अपनी धुन के बहुत पक्के थे। उन्होंने कभी भी पारिवारिक या सामाजिक दबाव में आकर अपना फैसला नहीं बदला।

उग्र स्वरूप

साल 1886 में वह कांग्रेस से जुड़ गए थे। कांग्रेस पार्टी से जुड़ने के कुछ समय बाद ही उनकी गिनती बड़े नेताओं में की जाने लगी थी। इसी दौरान उनकी दोस्ती बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय से हुई। इसके बाद इन तीनों ने क्रांतिकारी परिवर्तन के विरोध के उग्र स्वरूपों को अपना लिया और जल्द ही पूरे देश में लाल बाल पाल के नाम से मशहूर हो गए। इस दौरान लाल-बाल और पाल की तिकड़ी के लिए देश के स्वतंत्रता आंदोलन में पूर्ण स्वराज, स्वदेशी आंदोलन, बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा आदि प्रमुख मुद्दे थे।

स्वदेशी और राष्ट्रभावना

बिपिन चंद्र पाल ने देश में गरीबी और बेरोजगारी को कम करने के लिए विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की वकालत की। इस दौरान उन्होंने स्वदेशी चीजों के इस्तेमाल पर जोर दिया। पाल ने रचनात्मक आंदोलन के जरिए देश के युवाओं में राष्ट्रवाद की भावना पैदा करे पर जोर दिया। बिपिन चंद्र के इरादे द इंडिपेंडेंट इंडिया, लाहौर ट्रिब्यून, द हिन्दू रिव्यु , द न्यू इंडिया, बंगाल पब्लिक ओपिनियन, परिदर्शक, द डैमोक्रैट, बन्देमातरम, स्वराज, बंगाली में पत्रिकाओं में साफ झलकते थे। 

बता दें कि वह अंग्रेजों पर जरा भी विश्वास नहीं करते थे। उनका मानना था कि तर्क, निवेदन और असहयोग जैसे तरीकों को अपनाकर देश से अंग्रेजों को नहीं भगाया जा सकता। इसलिए वह कभी भी देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों से सहमत नहीं होते थे। साथ ही वह अपने विचारों को भी सामने रखने से नहीं चूकते थे। बिपिन चंद्र ने कई बार गांधीजी का खुले तौर पर विरोध भी किया था।

मृत्यु

अपने जीवन के आखिरी वर्षों में साल 1922 के आसपास बिपिन चंद्र ने खुद को कांग्रेस पार्टी से अलग कर लिया था। वह एंकात जीवन जीना पसंद करने लगे थे। पाल ने जातिवाद को खत्म कर विधवा पुनर्विवाह पर जोर दिया था। इसके अलावा श्री अरबिंदो ने विपिन चंद्र राष्ट्रवाद का सबसे बहादुर मसीहा कहा था। कोलकाता में 20 मई 1932 को इस महान क्रन्तिकारी ने सदा के लिए अपनी आंखें मूंद ली।

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