Amrita Pritam Birth Anniversary: सामाजिक बंधन तोड़ अमृता प्रीतम ने कलम से बिखेरा जादू, ऐसा रहा सफर

Amrita Pritam
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आज ही के दिन यानी की 31 अगस्त को देश दुनिया की चर्चिल लेखिका अमृता प्रीतम का जन्म हुआ था। वह एक शायर से एक तरफा प्यार करती थीं और बिना शादी के एक शख्स के साथ जीवन गुजारा, इतने उतार-चढ़ाव कम लोगों की जिंदगी में आते हैं।

देश दुनिया की चर्चिल लेखिका अमृता प्रीतम का 31 अगस्त को जन्म हुआ था। उनका व्यक्तित्व रहस्य से भरा हुआ है। अमृता प्रीतम की जिंदगी में तमाम उतार चढ़ाव आए। उनके लेखन ने साहित्य जगत को नया आयाम दिया। अमृता प्रीतम के बारे में जितना पढ़ा जाएगा, रहस्य उतना ही गहराता चला जाएगा। वह एक शायर से एक तरफा प्यार करती थीं और बिना शादी के एक शख्स के साथ जीवन गुजारा, इतने उतार-चढ़ाव कम लोगों की जिंदगी में आते हैं। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर अमृता प्रीतम के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और परिवार

पाकिस्तान के गुजरांवाला में 31 अगस्त 1919 को अमृता प्रीतम का जन्म हुआ था। जब अमृता 11 साल की थीं, तो उनकी मां की मृत्यु हो गई। वहीं देश के बंटवारे के बाद उनका परिवार हिंदुस्तान आकर बस गया। तनहाई के मौसमों में कागज और कलम ने अमृता प्रीतम को सहारा दिया। वहीं 16 साल की उम्र में प्रीतम सिंह से अमृता का विवाह हो गया। इस तरह से अमृता कौर अमृता प्रीतम बन गईं। लेकिन इस रिश्ते में दरार आने लगीं और साल 1960 में उनका तलाक हो गया।

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मासूम प्रेम कहानी को मुकाम देती हैं अमृता

अमृता प्रीतम ने अपने उपन्यास 'पिंजर' में ऐसा लेखन किया है, जिससे लगता है कि सारी घटनाएं उनकी आंखों के सामने गुजरी हैं। इसमें वह आखिरी में इंसानियत और रिश्ते की मर्यादा का भी चित्रण करती हैं। एक सौ से अधिक पुस्तकों की रचनाकार अमृता प्रीतम को पंजाबी भाषा की पहली कवियत्री माना जाता है। जब वह विभाजन के बाद पाकिस्तान को छोड़कर दिल्ली आ रही थीं, तब उन्होंने 'आज अख्खां वारिस शाह नूं' लिखी। यह भारत पाकिस्तान बंटवारे पर उनकी पहली कविता थी, जोकि काफी ज्यादा चर्चित रही। अमृता प्रीतम ने अपने जीवन में कुल 28 उपन्यास लिखे थे। लेकिन 'पिंजर' सबसे ज्यादा लोकप्रिय उपन्यास है। इसके अलावा उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो के लिए भी काम किया था।

पुरस्कार

साल 1982 में अमृता प्रीतम को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार, साल 1969 में पद्मश्री, साल 2004 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उनको पद्मविभूषण से भी नवाजा गया था। वहीं साल 1986 में अमृता प्रीतम को राज्यसभा के लिए भी नामित किया गया था।

मृत्यु

अमृता प्रीतम का आखिरी समय काफी तकलीफों में बीता था। बाथरुम में गिर जाने के कारण उनकी हड्डी टूट गई थी, जो कभी ठीक नहीं हुई। वहीं आखिरी समय में इमरोज ने अमृता का बहुत ध्यान रखा। 31 अक्तूबर 2005 को अमृता प्रीतम ने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था।

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