घनश्यामदास बिड़ला ने हरिजनों को मंदिर में प्रवेश दिलाने के लिए लड़ी थी लड़ाई

Ghanshyamdas Birla
Prabhasakshi

पद्मविभूषण से सम्मानित घनश्यामदास बिड़ला अपने कारोबार को देश और देशवासियों की सेवा का एक माध्यम मानते थे। उन्होंने अजीवन सेवाभाव के साथ भारतीय उद्योग जगत को मजबूत किया और कर्मचारियों को तो वो हमेशा ही अपने परिवार का हिस्सा मानते रहे हैं।

गरीब परिवार में जन्में लेकिन पार्थिव शरीर को अलविदा कहने से पहले उन्होंने गरीबी को पछाड़कर देश में वो मुकाम हासिल किया, जो बहुत से उद्योगपतियों का सपना है। घनश्यामदास बिड़ला की मृत्यु के वक्त बिड़ला समूह के पास 200 कंपनियां थीं, जिसकी संपत्ति करीब 2,500 करोड़ रुपए के आसपास थी। आज हम बात करेंगे घनश्यामदास बिड़ला की, जो महज पांचवीं कक्षा तक ही पढ़ाई कर पाए थे।

कौन हैं घनश्यामदास बिड़ला ?

घनश्यामदास बिड़ला का जन्म 10 अप्रैल, 1894 में राजस्थान के पिलानी गांव में एक मारवाड़ी परिवार में हुआ था। उस दिन रामनवमी थी और ज्योषियों ने भविष्यवाणी की थी कि घनश्यामदास बिड़ला आगे चलकर खूब नाम कमाएंगे। उनके भीतर गजब की ऊर्जा और साहस थी। उन्होंने सिर्फ 13 साल की उम्र में ही मुंबई जाने का निर्णय किया और अपने परिवार के कामों में खुद को झोंक दिया।

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घनश्यामदास बिड़ला ने अपने तीन भाईयों के साथ मिलकर साल 1919 में बिड़ला ब्रदर्स की नींव रखी। उस वक्त उन्होंने अंग्रेजों के एकाधिकार वाले व्यापार 'पटसन' की शुरुआत की।

कैसा था महात्मा गांधी से रिश्ता ?

घनश्यामदास बिड़ला और महात्मा गांधी की आपस में खूब बनती थी। उन्हें महात्मा गांधी का सबसे प्रिय सलाहकार भी माना जाता था। आजादी की लड़ाई में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी। एक ब्रिटिश अधिकारी ने लंदन भेजे जाने वाली अपनी रिपोर्ट में एक दफा लिखा था कि भारत की राजधानी दिल्ली नहीं बल्कि बिड़ला भवन है। 

आपको बता दें कि आजादी की लड़ाई के लिए घनश्यामदास बिड़ला धन उपलब्ध कराने वाले लोगों में प्रमुख थे और उन्हें कट्टर स्वतंत्रता सेनानी माना जाता है। घनश्यामदास बिड़ला ने पूंजीपतियों से राष्ट्रीय आंदोलन का समर्थन करने की गुहार लगाई थी। इसके साथ ही कांग्रेस को मजबूत करने में अपनी मदद तो दी थी। 

पद्मविभूषण से सम्मानित घनश्यामदास बिड़ला अपने कारोबार को देश और देशवासियों की सेवा का एक माध्यम मानते थे। उन्होंने अजीवन सेवाभाव के साथ भारतीय उद्योग जगत को मजबूत किया और कर्मचारियों को तो वो हमेशा ही अपने परिवार का हिस्सा मानते रहे हैं।

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हरिजनों के लिए लड़ी थी लड़ाई

घनश्यामदास बिड़ला महज एक उद्योगपति नहीं थे बल्कि समाज सुधारक भी थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में हरिजनों के लिए अच्छी खासी लड़ाई लड़ी है। दरअसल, वो मंदिरों में हरिजनों को प्रवेश दिलाना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने लंबे समय तक लड़ाई लड़ी थी। इतना ही नहीं घनश्यामदास बिड़ला काफी समय तक भारतीय हरिजन सेवक संघ के अध्यक्ष भी रहे थे।

जब बदला था मुकदर

घनश्यामदास बिड़ला के भाई उनसे हमेशा कहा करते थे कि भाग्य आखिर क्यों हमारा साथ नहीं दे रहा है। ऐसे में घनश्यामदास बिड़ला ने अपने भाई से कहा था कि अपने हाथ को ध्यान से देखो। इससे बड़ी दुनिया में कोई ताकत नहीं है। हमारा वक्त भी आएगा, जब हमारे हाथ हमारा मुकदर सवार देंगे। सिर्फ तुम अपने हाथों की तरफ देखा करो और अपनी इच्छा के बारे में अपने हाथों को बताया करो कि यह हमें दुनिया में सम्मान और पैसा दोनों दिलाएं।

इसी बीच उन्होंने अपने भाई को अपना सबसे बड़ा राज बताया था। उन्होंने कहा था कि मैंने ईश्वर से कभी कुछ नहीं मांगा, मैं सिर्फ अपने दोनों हाथों से ही मांगता हूं। मेरे लिए दोनों हाथ ही देवता हैं।

- अनुराग गुप्ता

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