शिवाजी को छत्रपति शिवाजी महाराज बनाने वाली राजमाता, जानें मां जीजाबाई के जीवन के प्रेरक प्रसंग

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अभिनय आकाश । Jun 17 2022 11:36AM

जीजाबाई की देशभर्ति और उनके शौर्य की जितनी भी प्रशंसा की जाए वो कम है। उन्होंने शिवाजी को स्वराज्य की शिक्षा दी और उन्हें एक महान योद्धा के रूप में पाला। शिवाजी जब 14 वर्ष के थे, तब शाहजी राजे ने उन्हें पुणे की जागीर सौंप दी।

सृष्टि के आदि से लेकर अब तक न जाने कितनी दफा नारी शक्ति का चमत्कार देखने को मिला है। जब-जब अधर्म ने धर्म को, अन्याय ने न्याय को और असत्य ने सत्य को पराभूत करने का प्रयत्न किया। तब-तब ही नारी शक्ति ने आगे बढ़कर धर्म, न्याय और सत्य की रक्षा की है। शिवाजी जिन्हें हम छत्रपति शिवाजी कहकर सम्मान देते हैं। जिन्हें हम एक महान योद्धा और मराठा साम्राज्य के पहले राजा के तौर पर जानते हैं। स्वराज के लिए लड़ने वाले आज भी महाराज को भगवान की तरह पूजते हैं। उनके किस्से आज भी बड़े गर्व से सुने और सुनाए जाते हैं। लेकिन इन सब के बीच हम उस महिला को भूल जाते हैं जिन्होंने शिवाजी को छत्रपति शिवाजी महाराज बनाया। आज आपको वीर शिवाजी की माता जीजाबाई के बारे में बताते हैं।

जिन्होंने अपने बेटे शिवाजी के राज्य में रानी रीजेंट के रूप में अपनी सेवा दी। जिसके लिए उन्हें आमतौर पर राजमाता जीजाबाई के नाम से भी जाना जाता है। हिंद स्वराज की ऐसी योद्धा जो मुगल साम्राज्य के खिलाफ खड़ी रहने वाली  देश की सबसे प्रेरणादायक ऐतिहासिक शख्सियतों में से एक हैं। बात 16वीं सदी के आखिर की है तब भारत वैसा बिल्कुल भी नहीं था जैसा आज है। 12 जनवरी 1598 को  लाखो जी नामक एक नामी सरदार के घर एक बच्ची ने जन्म लिया, जिसका नाम जीजाबाई रखा गया। काफी कम उम्र में ही उनकी शादी मालोजी शिलेदार के पुत्र साहजी भोंसले से करवा दी गई। उनके पति ने भी निजाम शाह की सेवा की। उनके आठ बच्चे थे, जिनमें छह बेटियां और दो बेटे शामिल थे। उनमें से एक थे शिवाजी।

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जीजाबाई की देशभर्ति और उनके शौर्य की जितनी भी प्रशंसा की जाए वो कम है। उन्होंने शिवाजी को स्वराज्य की शिक्षा दी और उन्हें एक महान योद्धा के रूप में पाला। शिवाजी जब 14 वर्ष के थे, तब शाहजी राजे ने उन्हें पुणे की जागीर सौंप दी। बेशक, जागीर के प्रबंधन की जिम्मेदारी जीजाबाई पर आ गई। जीजाबाई और शिवाजी कुशल अधिकारियों के साथ पुणे पहुंचे। निजामशाह, आदिलशाह और मुगलों की वजह से पुणे की स्थिति बेहद खराब हो गयी थी। ऐसी परिस्थितियों में उन्होंने दादोजी कोंडादेव के साथ मिलकर पुणे शहर का पुनर्विकास किया। जीजाबाई ने शिवाजी को रामायण, महाभारत की कहानियाँ सुनाईं। सीता का हरण करने वाले रावण को मारने वाले राम कितने पराक्रमी थे, बकासुर का वध करने वाले और वाले भीम कितने पराक्रमी थे। जीजाबाई ने शिवजी को न केवल कहानी सुनाई बल्कि कुर्सी के बगल में बैठकर राजनीति का पहला पाठ भी सिखाया।

जीजाबाई एक कुशल घुड़सवारी भी थी और कुशलता से तलवार चलाने में भी निपुण थी। उन्होंने कस्बा गणपति मंदिर की स्थापना की। उन्होंने केवरेश्वर मंदिर और तांबाडी जोगेश्वरी मंदिर का भी जीर्णोद्धार किया। 17 जून 1674 को जीजाबाई की मृत्यु हो गई।

- अभिनय आकाश

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