स्वाभिमानी राष्ट्रनायक थे महाराणा प्रताप, कभी झुके नहीं दूसरों को झुकाते रहे

Maharana Pratap, was a Rajput king of Mewar

स्वाभिमानी, देशभक्त, वीरयोद्धा, हौसले के धनी, घास की रोटी खाकर जिन्दा रहने तथा दोबारा मेवाड़ राज्य का आधिपत्य स्थापित करने वाले महाराणा प्रताप राष्ट्र नायक के रूप में इतिहास और दुनिया में अमर हो गये।

स्वाभिमानी, देशभक्त, वीरयोद्धा, हौसले के धनी, घास की रोटी खाकर जिन्दा रहने तथा दोबारा मेवाड़ राज्य का आधिपत्य स्थापित करने वाले महाराणा प्रताप राष्ट्र नायक के रूप में इतिहास और दुनिया में अमर हो गये। महाराणा प्रताप के समय में जब मुगल शासक राजपूताने के राज्यों को अपने साम्राज्य का हिस्सा बना रहे थे, उस समय अनेक राजपूत शासकों ने मुगल शासक से विविध प्रकार की संधि व समझौते कर लिए और नतमस्तक हो गये। ऐसे वातावरण में मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप किसी भी प्रकार से अकबर के सामने नहीं झुके। अकबर ने चार बार संधि के लिए दूत भेजे परन्तु स्वाभिमानी प्रताप ने संधि के बदले या अकबर के सामने झुकने की जगह युद्ध को चुन कर स्वाभिमान और देशभक्ति का परिचय दिया। 

महाराणा प्रताप अकबर की सेना से युद्ध करने पर कायम रहे और इसी का परिणाम "हल्दीघाटी युद्ध" के रूप में सामने आया। एक ओर महाराणा प्रताप की सेना थी तो दूसरी ओर मानसिंह के नेतृत्व में मुगलों की सेना थी। मुगलों की सेना में जहां युद्ध कौशल में दक्ष सैनिक तलवारों आदि से लैस थे वहीं प्रताप की सेना में भील धनुषबाण लेकर मुकाबले को तैयार थे। मुगल सेना हाथियों पर तो प्रताप की सेना घोड़ों पर युद्ध लड़ी। पहाड़ी क्षेत्र होने व हल्दीघाटी का एक संकरा रास्ता होने के स्थान पर एक ओर प्रताप की सेना थी, वहीं दूसरी ओर मुगलों की सेना थी। यह रास्ता इतना तंग था कि कई लोग एक साथ इस रास्ते से नहीं निकल सकते थे।

हल्दीघाटी के युद्ध को "राजस्थान का थर्मोपोली" कहा जाता है। इस युद्ध में जहां प्रताप की सेना में कुल 20 हजार सैनिक थे वहीं मुगल सेना 85 हजार सैनिक थे। मुगलों की इतनी बड़ी सेना को देखकर भी प्रताप ने हार नहीं मानी और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। यह युद्ध 18 जून 1576 इस्वीं में लड़ा गया। मुगलों की सेना राजा मानसिंह और आसफ खाँ के नेतृत्व में लड़ी। मुगलों के पास जहां सैन्य शक्ति अधिक थी वहीं प्रताप के पास जुझारू शक्ति का बल था। भीषण युद्ध में दोनों तरफ के योद्धा घायल होकर जमीन पर गिरने लगे। प्रताप अपने स्वामीभक्त घोड़े चेतक पर सवार होकर शत्रु की सेना में मानसिंह को खोजने लगे। युद्ध में चेतक ने अपने अगले दोनों पैर सलीम (जहांगीर) के हाथी की सूंड पर रख दिये। प्रताप के भाले से महावत मारा गया और सलीम भाग खड़ा हुआ। महाराणा प्रताप को युद्ध में फंसा हुआ देखकर झाला सरदार मन्नाजी आगे बड़ा प्रताप के सिर से मुकुट उतार कर स्वयं अपने सिर पर रख लिया और तेजी से कुछ दूरी पर जाकर युद्ध करने लगा। मुगल सैनिक उसे ही प्रताप जानकर उस पर टूट पड़े और प्रताप को युद्ध भूमि से दूर जाने का अवसर मिल गया। उनका पूरा शरीर अनेक घावों से लहुलुहान हो चुका था। स्वामीभक्त घोड़ा चेतक 26 फीट लम्बे नाले को पार कर गया और अपने स्वामी के प्राण बचाये। इस प्रयास में चेतक की मृत्यु हो गयी और प्रताप के भाई शक्तिसिंह ने उन्हें अपना घोड़ा दिया। प्रताप यहां से जंगलों की ओर निकल पड़े। यह युद्ध केवल एक दिन चला परन्तु इस युद्ध में 17 हजार लोग मारे गये। 

जिस समय 1579 से 1585 तक मुगल अधिकृत प्रदेशों उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार और गुजरात में विद्रोह हो रहे थे उसी समय महाराणा प्रताप फिर से मेवाड़ राज्य को जीतने में जुट गये। अकबर अन्य राज्यों के विद्रोह दबाने में उलझा हुआ था जिसका लाभ उठाकर महाराणा ने भी मेवाड़ मुक्ति के प्रयास तेज कर दिये और उन्होंने मेवाड़ में स्थापित मुगल चौकियों पर आक्रमण कर उदयपुर सहित 36 महत्वपूर्ण स्थानों पर अधिकार कर लिया। महाराणा प्रताप ने जिस समय सिंहासन ग्रहण किया। उस समय सम्पूर्ण मेवाड़ की भूमि उनकी सत्ता फिर से कायम हो गयी थी। यह युग मेवाड़ के लिए स्वर्ण युग बन गया। उन्होंने चावड को अपनी नई राजधानी बनाया और यहीं पर उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी मृत्यु सुनकर अकबर ने भी उनकी शूरवीरता की प्रशंसा की और उसकी आंख में आंसू आ गये।

महाराणा प्रताप का जन्म कुभंलगढ़ दुर्ग में हुआ था। उनकी माता जैवन्ताबाई पाली सोनगरा अखैराज की बेटी थी। बचपन में प्रताप को कीका के नाम से पुकारा जाता था। इनका राज्याभिषेक गोगुन्दा में हुआ। विभिन्न कारणों से प्रताप ने 11 विवाह किये। महाराणा प्रताप से सम्बंधित सभी स्थलों पर स्मारक बनाये गये हैं। 

हल्दीघाटी में घोड़े चेतक का स्मारक भी बनाया गया है तथा एक पहाड़ी पर महाराणा प्रताप स्मारक के साथ−साथ इसकी तलहटी में एक निजी ट्रस्ट द्वारा आकर्षक प्रताप संग्रहालय स्थापित किया गया है। प्रताप के जीवन से जुड़ी तमाम घटनाओं को इस संग्रहालय में मॉडल, झांकी एवं चित्रों द्वारा बखूबी दर्शाया गया है। यहां प्रताप के जीवन से सम्बंधित एक लघु फिल्म भी दर्शकों को दिखाई जाती है। उदयपुर के सिटी पैलेस में बनी प्रताप दीर्घा में महाराणा प्रताप का 81 किलो का भाला, 72 किलो का छाती का कवच, ढाल, तलवारों सहित अन्य स्मृतियां देखने को मिलती हैं। 

-डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

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