Mohammed Rafi Death Anniversary: फकीर को देखकर सीखा था मोहम्मद रफी ने गाना, 13 की उम्र में पहली बार दी थी स्टेज परफॉर्मेंस

Mohammed Rafi
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साल 1937 में लाहौर में एक प्रदर्शनी में जब मंच पर बिजली चली गई, तो फेमस गायक के एल सहगल ने गाना गाने से मना कर दिया। ऐसे में आयोजकों ने 13 साल के मोहम्मद रफी को गाना गाने के लिए। मोहम्मद रफी ने जैसे ही सुर छेड़े, तो लोग मंत्रमुग्ध हो गए।

भारतीय संगीत के स्वर्ण युग में जिस आवाज ने करोड़ों दिलों को छुआ, वह मोहम्मद रफी की आवाज थी। उनके गाए नगमे आज भी लोगों की जुबान पर रहते हैं। लेकिन आज ही के दिन यानी की 31 जुलाई को यह आवाज हमेशा-हमेशा के लिए शांत हो गई। भले ही आज मोहम्मद रफी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके गीत और उनकी शख्सियत आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर मोहम्मद रफी के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और परिवार

पंजाब के कोटला सुल्तान सिंह गांव में 24 दिसंबर 1924 को मोहम्मद रफी का जन्म हुआ था। वह बचपन से ही संगीत के दीवाने थे। खास बात यह भी कि मोहम्मद रफी के घर में संगीत का कोई माहौल नहीं था। इसके बावजूद भी गांव में गाने वाले एक सूफी फकीर को देखकर मोहम्मद रफी इतना प्रेरित हुए कि वह हर रोज उस सूफी फकीर का इंतजार करते। वहीं उसकी नकल उतारकर वह खुद भी रियाज करते थे। यहीं से मोहम्मद रफी की सुरों की यात्रा की शुरूआत हुई। 

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पहली बार मंच पर उतरे रफी साहब

साल 1937 में लाहौर में एक प्रदर्शनी में जब मंच पर बिजली चली गई, तो फेमस गायक के एल सहगल ने गाना गाने से मना कर दिया। ऐसे में आयोजकों ने 13 साल के मोहम्मद रफी को गाना गाने के लिए। मोहम्मद रफी ने जैसे ही सुर छेड़े, तो लोग मंत्रमुग्ध हो गए। यहां तक की फेमस गायक सहगल भी उनके प्रशंसक बन गए और उन्होंने भविष्यवाणी की कि यह लड़का एक दिन महान गायक बनेगा। 

रफी साहब लाहौर में अपने बड़े भाई की नाई की दुकान में काम करते थे। दुकान में रफी सुरों को गुनगुनाते रहते थे। एक ग्राहक ने मोहम्मद रफी के सुरों को पहचाना और जीवनलाल नामक व्यक्ति के द्वारा उनको संगीत की शिक्षा मिलने लगी। यहीं से मोहम्मद रफी का प्रोफेशनल दौर शुरू हुआ।

एक रुपए में गाया था गाना

मोहम्मद रफी साहब जितने बड़े गायक थे, उतने ही वह सरल और विनम्र स्वभाव के भी थे। कई बार वह सिर्फ 1 रुपए में गाना गाते थे। उन्होंने कभी भी गाना गाने से पहले पैसों की डिमांड नहीं की। क्योंकि गाना सिर्फ उनका पेशा नहीं बल्कि इबादत भी थी।

पं. नेहरु के लिए खास पेशकश

बता दें कि साल 1948 में रफी साहब ने 'सुनो सुनो ऐ दुनिया वालों बापू की ये अमर कहानी' गाया। यह गीत काफी ज्यादा लोकप्रिय हुआ था। ऐसे में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने रफी साहब को अपने आवास पर बुलाकर विशेष प्रस्तुति देने को कहा था। यह पल मोहम्मद रफी के लिए ऐतिहासिक मोड़ था। 

संगीत के हर रंग में रंगे थे रफी

मोहम्मद रफी ने कव्वाली, देशभक्ति, भजन, गजल, रोमांस, ट्रैजिक, हर रंग के गाने गाए। उन्होंने एसडी बर्मन, ओपी नैय्यर, नौशाद, शंकर-जयकिशन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जैसे दिग्गज संगीतकारों के साथ काम किया। वहीं रफी साहब ने करीब 7000 से अधिक गाने रिकॉर्ड किए थे।

मृत्यु

वहीं 31 जुलाई 1980 को दिल का दौरा पड़ने से 55 साल की उम्र में मोहम्मद रफी का निधन हो गया। रफी साहब के निधन पर भारत सरकार ने दो दिन का शोक घोषित किया था।

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