Guru Nanak Dev Death Anniversary: सिखों के पहले गुरु थे नानक देव, समाजिक कुरीतियों को खत्म करने में निभाई अहम भूमिका

Guru Nanak Dev
Prabhasakshi

सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी को शांति और सेवा के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है। सिख धर्म के लोग उन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से भी पुकारते हैं। आज ही के दिन 22 सितंबर को गुरु नानक देव ने अपनी देह का त्याग किया था।

सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव को सिख धर्म के लोग नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से भी पुकारते हैं। नानक जी के व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबन्धु सभी के गुण मौजूद थे। बता दें कि आज ही के दिन यानी की 22 सितंबर को गुरु नानक देव जी ने अपनी देह का त्याग कर दिया था। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर गुरु नानक देव जी के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म

गुरु नानक देव जी का जन्म पाकिस्तान (पंजाब) में रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गांव में 15 अप्रैल 1469 को हुआ था। सिख धर्म में इस दिन को काफी उल्लास के साथ मनाया जाता है। नानक जी के पिता का नाम कल्याण या कालू मेहता और मां का नाम तृप्ती देवी था। नानक जी ने हिंदू परिवार में जन्म लिया था। नानक देव जी बचपन से ही विशेष शक्तियों के गुणी थे। नानक जी ने अपनी बहन नानकी से काफी कुछ सीखा। 

वहीं महज 16 साल की उम्र में नानक देव का विवाह सुलक्खनी से हो गया। इनके दो पुत्र श्रीचंद और लख्मी चंद थे। वहीं बच्चों के जन्म के कुछ समय बाद ही नानक देव जी तीर्थ यात्रा पर निकल गए। इस दौरान उन्होंने काफी लंबी यात्राएं की। इस दौरान नानक देव दी मरदाना, लहना, बाला और रामदास भी गए। साल 1521 तक यात्रा के दौरान वह सबको उपदेश देते रहे। साथ ही समाज में फैली कुरीतियों के प्रति भी लोगों को जागरुक करते रहे। इसके अलावा नानक देव जी ने भारत, अफगानिस्तान और अरब के कई स्थानों का भ्रमण किया। गुरु नानक देव की इन यात्राओं को सिख धर्म में उदासियां भी कहा जाता है।

इसे भी पढ़ें: Mahant Avaidyanath Death Anniversary: सामाजिक समरसता के अग्रदूत व श्री राम मंदिर आंदोलन के प्रणेता थे महंत अवैद्यनाथ

लंगर की शुरूआत

युवावस्था में आने के बाद एक दिन नानक देव जी के पिता ने उन्हें 20 रुपए देकर व्यापार करने के लिए भेजा। रास्ते में नानक देव जी को कुछ भूखे साधु मिल गए। इसके बाद नानक देव जी उन साधुओं को लेकर नजदीक के एक गांव में ले गए और उन्हें 20 रुपए में भरपेट खाना खिलाया। तब से गुरु नानक देव जी द्वारा 20 रुपए से लंगर की रीत शुरू हुई, जो आजतक चल रही है। 

नानक देव जी का संदेश

बता दें कि 15वीं शताब्दी के दौरान जब भारत आक्रांताओं के हमले को झेल रहा था। आक्रमणकारियों में भारत की संपदा लूटने की होड़ मची थी। उस दौरान लोग बुरा से बुरा काम करने से भी पीछे नहीं हटते थे। तब नानक देव जी ने भारत में वंड छको का संदेश देकर ऊंच नीच, बड़े छोटे, अमीर गरीब के भेदभाव को खत्म करने में अपनी अहम भूमिका निभाई। 

सिख धर्म की उत्पत्ति

5 शताब्दी पहले सिख धर्म की उत्पत्ति गुरु नानक देव जी ने की थी।। नानक जी जहां हिंदु परिवार से ताल्लुक रखते थे, तो वहीं मुस्लिम पड़ोसियों के बीच बड़े हुए थे। कम उम्र से ही नानक देव में गहरी आध्यात्मिकता दिखाई देने लगी थी। उन्होंने धार्मिक परंपराओं से खुद को दूर करते हुए ईश्वर के प्रति अपना ध्यान लगाया। उन्होंने मूर्ति पूजा का बहिष्कार किया। सिख धर्म के पहले गुरु गुरुनानक देवी जी के चार शिष्य हुए। वह चारों शिष्य नानक देव जी के साथ रहते थे। उन्होंने अपनी हर उदासी इन शिष्यों के साथ की। नानक देव जी ने 60 से ज्यादा शहरों का भ्रमण किया और वह मक्का की यात्रा पर भी गए थे।

नानक देव जी की मक्का यात्रा

बताया जाता है कि जब नानक देव मक्का गए तो पवित्र स्थान की ओर पैर करके सो गए। इससे नाराज लोगों ने उनसे अपने पैर दूसरी दिशा में रखने को कहा। इस पर नानक देव ने कहा कि वह बहुत थके हैं, ऐसे में जिधर मक्का ना हो, वह उनके पैर उधर घुमा दें। तब लोगों को गुरु नानक देव जी का संदेश समझ आया कि ईश्वर हर कहीं विद्यमान हैं। 

गुरु नानक देव जी का निधन

बता दें कि 22 सितंबर 1539 को गुरु नानक देव ने अपनी देह का त्याग कर दिया था। उनके निधन के बाद नानक देव जी के निवास करतारपुर में विवाद पैदा हो गया। दरअसल, हिंदू शिष्य नानक देव जी का दाह संस्कार करना चाहते थे, बल्कि मुस्लिम शिष्य उनके शरीर को दफनाना चाहते थे। बताया जाता है कि जब कुछ समय बाद गुरु नानक देव की चादर हटाई गए तो वहां शरीर के स्थान पर पुष्प मिले। इन फूलों को हिंदू और मुस्लिम दोनों ने आधा-आधा बांट लिया और अपने-अपने धर्म के हिसाब से अंतिम संस्कार किया।

All the updates here:

अन्य न्यूज़