नेहरू जी ने संसदीय लोकतंत्र को पाला पोसा और जड़ें मजबूत कीं

[email protected] । May 27 2017 12:59PM

आधुनिक भारत के शिल्पी कहे जाने वाले देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू न केवल एक राष्ट्रवादी और युगदृष्टा थे बल्कि जनवादी भी थे जिन्होंने स्वतंत्र भारत में समतामूलक विकास की नींव रखी।

आधुनिक भारत के शिल्पी कहे जाने वाले देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू न केवल एक राष्ट्रवादी और युगदृष्टा थे बल्कि जनवादी भी थे जिन्होंने स्वतंत्र भारत में समतामूलक विकास की नींव रखी। नेहरू (14 नवंबर 1889−27 मई 1964) ने स्वतंत्र भारत में संसदीय सरकार और जनवाद को बड़ी सावधानी से पाला पोसा और इसकी जड़ें मजबूत कीं। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र के प्राध्यापक कमल मित्र चिनॉय ने बताया कि संविधान निर्माण में अंबेडकर और अन्य नेताओं के अलावा नेहरू की भी भूमिका थी। उन्होंने अपने नेतृत्व में संविधान को अमल में लाने के लिए अहम योगदान दिया।

चिनॉय ने बताया कि आजादी के बाद के शुरुआती दिनों में सत्ता में कांग्रेस का बहुमत होते हुए भी उन्होंने विभिन्न मुद्दों पर खुलेआम बहस की जिसे आल इंडिया कांग्रेस कमेटी की पत्रिका में भी देखा जा सकता था। उन्होंने बताया कि 1950 के बाद से पार्टी पर पूर्ण वर्चस्व प्राप्त होने के बावजूद नेहरू ने आंतरिक जनवाद और खुली बहस को कांग्रेस के अंदर भी प्रोत्साहित किया। उन्होंने ऐसे संस्थागत ढांचे के विकास में सहयोग दिया जो जनवादी मूल्यों पर आधारित थे और जिनमें सत्ता विकेंद्रित थी।

प्रो. चिनॉय ने बताया कि नेहरू खुद को समाजवादी कहते थे लेकिन खुद को समाजवाद की धारा से कुछ अलग रूप में देखते थे। एक बार जब नेहरू से पूछा गया कि भारत के लिए वे क्या छोड़कर जाएंगे तो उन्होंने कहा था− आशा है, चालीस करोड़ ऐसे लोग जो हमारा शासन चलाने के काबिल होंगे। नेहरू का मानना था कि भारत जैसे विभिन्नता वाले समाज में जनवाद विशेष तौर पर जरूरी है। उन्होंने समाजवादी दृष्टिकोण को करोड़ों जनता तक पहुंचाया और समाजवाद को उनकी चेतना का हिस्सा बना दिया। नेहरू की सबसे बड़ी जिम्मेदारी और उनकी उपलब्धि भारत की आजादी का सुदृढ़ीकरण और उसकी चौकसी करना था क्योंकि उस वक्त दुनिया दो महाशक्तियों− अमेरिका और सोवियत संघ के बीच बंटी हुई थी।

प्रो. चिनाय ने बताया कि नेहरू ने गुटनिरपेक्षता के माध्यम से बहुत सारे देशों को एकत्र कर लिया नहीं तो आजादी खतरे में पड़ जाती। उन्होंने बताया कि नेहरू ने सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र को मिलाकर एक राष्ट्रीय क्षेत्र बनाया जिसे मिश्रित अर्थव्यवस्था के नाम से जाना गया। उन्होंने बताया कि वह चाहते थे कि सार्वजनिक क्षेत्र निजी क्षेत्र को बढ़ने में मदद करे। साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र लोगों को नौकरी मुहैया कराने में मदद करे। नेहरू ने एक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था के ढांचे का निर्माण कार्य आरंभ किया और पंचवर्षीय योजना की शुरुआत की। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता की जड़ों को भारतीय जनता के बीच फैलाया।

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