Sahir Ludhianvi Death Anniversary: अधूरा प्यार, अमर नग़मे और बॉलीवुड के बेताज बादशाह थे साहिर लुधियानवी, अधूरी रह गई थी मोहब्बत

Sahir Ludhianvi
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आज ही के दिन यानी की 25 अक्तूबर को शायर और गीतकार रहे साहिर लुधियानवी का निधन हो गया था। साहिर लुधियानवी की शायरियों में अधूरी मोहब्बत का दर्द है, तो जिंदगी को जीने का जज्बा भी है। उन्होंने इश्क पर भी खूब लिखा है।

शायर और गीतकार रहे साहिर लुधियानवी का आज ही के दिन यानी की 25 अक्तूबर को निधन हो गया था। भले ही साहिर दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी शायरी और गीत आज भी लोगों द्वारा सुनी जाती हैं। साहिर लुधियानवी की शायरियों में अधूरी मोहब्बत का दर्द है, तो जिंदगी को जीने का जज्बा भी है। उन्होंने अपने गीतों और शायरियों के जरिए गैर-बराबरी और जुल्मों के खिलाफ आवाज बुलंद की थी। उन्होंने इश्क पर भी खूब लिखा था। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर साहिर लुधियानवी के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और परिवार

लुधियाना के एक जागीरदार घराने में 08 मार्च 1921 को साहिर लुधियानवी का जन्म हुआ था। माता-पिता के अलगाव के बाद साहिर अपनी मां के साथ रहे। उन्होंने लुधियाना के खालसा हाई स्कूल से शिक्षा ली। फिर कॉलेज के दिनों में वह अमृता प्रीतम से प्यार कर बैठे, लेकिन अमृता के घरवालों को यह पसंद नहीं आया, क्योंकि साहिर एक मुस्लिम थे और दूसरी ओर गरीब भी थे। अमृता के पिता के कहने पर साहिर को कॉलेज से निकाल दिया गया। आज भी अमृता प्रीतम और साहिर लुधियानवी के प्यार के किस्से बड़ी दिलचस्पी से सुने जाते हैं। हालांकि दोनों का प्यार मुकम्मल नहीं हो सका।

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पाकिस्तानी सरकार ने जारी किया वारंट

साहिर लुधियानवी के जीविका चलाने के लिए तरह-तरह की छोटी-मोटी नौकरियां कीं। साल 1942 में वह लाहौर आ गए और इसी साल उन्होंने अपनी पहली कविता संग्रह 'तल्खियां' छपवाई। जिसके बाद उनको शोहरत मिलना शुरू हो गई। साल 1945 में साहिर लुधियानवी उर्दू पत्र अदब-ए-लतीफ और शाहकार के संपादक बने। इसके बाद वह एक पत्रिका 'सवेरा' के भी संपादक बने। इस पत्रिका में साहिर की किसी रचना को सरकार के विरुद्ध समझा गया और इसके लिए पाकिस्तान सरकार ने साहिर लुधियानवी के खिलाफ वारंट जारी कर दिया।

इंडस्ट्री में शुरूआत

इसके बाद साहिर कुछ समय दिल्ली में रहे और फिर मुंबई आ गए। यहां पर उन्होंने बतौर लिरिसिस्ट फिल्म इंडस्ट्री में काम करना शुरू किया। बतौर कवि उनकी इतनी कमाई नहीं होती थी, जितनी कि इंडस्ट्री में गाने लिखने के बाद होने लगी थी। साल 1948 में उन्होंने 'आजादी की राह पर' में चार गानों के साथ इंडस्ट्री में अपनी शुरूआत की। इसके बाद साहिर का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। साल 1951 में 'नौजवान' से एसडी बर्मन के साथ साहिर लुधियानवी को पहचान मिली।

'बाजी' से साहिर लुधियानवी को खूब सफलता मिली। इस दौरान साहिर को गुरुदत्त की टीम का हिस्सा माना जाता था। साहिर की एसडी बर्मन के साथ आखिरी फिल्म प्यासा थी। जोकि साल 1957 में आई थी। इस फिल्म में गुरुदत्त ने विजय नाम के कवि का किरदार निभाया था। इस फिल्म के बाद साहिर लुधियानवी और एसडी बर्मन में आर्टिस्टिक और कॉन्ट्रैक्ट को लेकर मतभेद हुआ और दोनों अलग हो गए।

मृत्यु

वहीं 25 अक्तूबर 1980 को साहिर लुधियानवी ने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था।

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