मध्यप्रदेश की माटी में जन्मे व्यंग्य के सशक्त हस्ताक्षर थे शरद जोशी
शरद जोशी का जन्म 21 मई 1931 को मध्य प्रदेश के उज्जैन में श्रीनिवास और शांति जोशी के घर हुआ था, जो दो बेटों और चार बेटियों के परिवार में दूसरी संतान थे। बचपन से ही उन्हें लिखने पढ़ने में काफी ज्यादा दिलचस्पी थी। अपने लेखन कार्य की शुरूआत उन्होंने अखबारों में लिखकर की।
शरद जोशी एक भारतीय कवि, लेखक, व्यंग्यकार और हिंदी फिल्मों और टेलीविजन में एक संवाद और पटकथा लेखक थे। 1990 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। शरद जोशी ने व्यंग्य लेखन की विधा को एक नया आयाम दिया और अपनी लेखनी के जरिए उस समय की सामाजिक, धार्मिक कुरीतियों और राजनीति पर चुटीला कटाक्ष किया। उनके व्यंग्य आज की परिस्थितियों में भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उस समय थे। शरद जोशी ने अपने व्यंग्यों में राजनीतिक समस्याओं, सामाजिक धार्मिक कुरीतियों, तात्कालिक घटनाओं को इतनी कुशलता और इस अंदाज में उठाया कि उन्होंने सीधे पाठकों के दिल को छुआ और उन्हें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया। उनके लिखे व्यंग्यों में इतना गहरा कटाक्ष होता था जो पाठकों को अंदर तक झकझोर देता था और लंबे समय तक सोचते रहने पर मजबूर कर देता था।
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शरद जोशी का निजी जीवन
शरद जोशी का जन्म 21 मई 1931 को मध्य प्रदेश के उज्जैन में श्रीनिवास और शांति जोशी के घर हुआ था, जो दो बेटों और चार बेटियों के परिवार में दूसरी संतान थे। बचपन से ही उन्हें लिखने पढ़ने में काफी ज्यादा दिलचस्पी थी। अपने लेखन कार्य की शुरूआत उन्होंने अखबारों में लिखकर की। 1950 के दशक में जब शरद जोशी इंदौर में अखबारों और रेडियो के लिए लिख रहे थे, तब उनकी मुलाकात इरफ़ाना सिद्दीकी से हुई और उन्होंने इरफ़ाना से शादी कर ली। वह एक लेखक, रेडियो कलाकार और भोपाल की एक थिएटर अभिनेत्री थीं। दंपति की तीन बेटियां- बानी, ऋचा और नेहा शरद थी। नेहा शरद एक अभिनेत्री और कवयित्री हैं।
शरद जोशी ने हिंदी के लिए किए बड़े काम
1960 के बाद का समय हिंदी साहित्य में विरोध के स्वर के गौरव का दौर था। इससे पहले विरोध को उतनी लोकप्रियता नहीं मिली थी। जोशी जी ने राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक समस्याओं पर गहरी चोट की। लोगों को वह पसंद आई क्योंकि वह सीधे उनके सरोकारों तक पहुंचती थी। लोगों को लगा जो बात वह नहीं कह पाते वह इन व्यंग्यों में कही गई है जैसे− राजनीति, भ्रष्टाचार पर चोट और सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार। उन्होंने लोगों को किसी भी घटना को देखने का एक नया नजरिया दिया। जोशी जी ने शालीन भाषा में भी अपनी बात को बेहतर ढंग और बहुत ही बारीकी से रखा, जिस कारण वह और उनके व्यंग्य पाठकों में खासे लोकप्रिय होते चले गए। शरद जोशी ने जनता की समस्याओं को, जनता की भाषा में जनता के सामने अनोखे अंदाज में रखा। शरद जोशी ने किसी एक क्षेत्र को नहीं छुआ। उन्होंने सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक यहां तक कि धार्मिक सभी विषयों पर व्यंग्य किया। जितनी विविधता उनके विषयों में दिखाई देती है उतनी ही उसके प्रस्तुतीकरण में भी झलकती है। उनकी भाषा−शैली और प्रस्तुतीकरण का ढंग विषय के मुताबिक होता था जो सीधा पाठक के दिल में उतरता था।
शरद जोशी की व्यंग्य रचनाएं आज भी प्रासंगिक
शरद जोशी ने व्यंग्य नाटक भी लिखे। उनके नाटक एक था गढ़ा उर्फ अलादद खान और अंधों का हाथी व्यंग्य और कालातीत हास्य के लिए लोकप्रिय हैं। उनकी पुस्तकों और निबंध संग्रहों में परिक्रमा, किसी बहाने, तिलस्म, जीप पर सवार इलियान, रहा किनारे बैठा, मेरी श्रेष्ठ रचनाये, दसरी साथह, यथा संभव, यात्रा तत्र सर्वत्र, यथा समय, हम भारत के भ्रष्टाचार हमारे और प्रतिदिन शामिल हैं। शरद जोशी की व्यंग्य रचनाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उस समय थीं। जोशी के व्यंग्यों की सबसे खास बात थी उनकी तात्कालिकता, वे किसी घटना पर तुरंत व्यंग्य लिखते थे जिससे पाठक उससे आसानी से जुड़ जाता था। जैसे उस समय हुए एक घोटाले पर उन्होंने 'हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे' नामक व्यंग्य लिखा। अपने शीर्षक से ही यह पूरी बात कह देता है। इसकी प्रासंगिकता आज भी बरकरार है। वे अपने व्यंग्यों में किसी को नहीं बख्शते थे, चाहे वह प्रधानमंत्री हो या निचले स्तर का कोई कर्मचारी।
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जब शरद जोशी लिखते थे उस समय नवभारत टाइम्स में आने वाला उनका कॉलम 'प्रतिदिन' बहुत लोकप्रिय था, यहां तक की लोग उसके लिए अखबार को पीछे से पढ़ना शुरू करते थे। शरद जोशी सिर्फ पाठकों के लिए और उनके भरोसे के लिए लिखते थे। वे अपनी रचनाओं में साहित्यिक भाषा या शैली पर ध्यान देने की बजाय पाठकों की पसंद पर ध्यान देते थे और उसी के अनुसार लिखते थे। यही उनकी लोकप्रियता का मूल कारण था और यही वजह है कि अखबारों में छपने वाले उनके दैनिक लेख और कॉलम भी साहित्य की अमूल्य धरोहर बन गए और आज किताबों के रूप में हमारे सामने हैं।
संवाद लेखक के रूप में फिल्मोग्राफी
क्षितिज (1974)
छोटी सी बात (1975)
श्याम तेरे कितने नाम (1977)
सांच को आंच नहीं (1979)
गोधुली (1977)
चोरनी (1982)
उत्सव (1984)
मेरा दामाद (1990)
दिल है की मानता नहीं (1991)
उड़ान (1997)
मध्य प्रदेश सरकार ने किया शरह जोशी को सम्मानित
आपको बता दें कि शरद जोशी का जन्म 21 मई 1931 को मध्य प्रदेश के उज्जैन में हुआ। उन्होंने इंदौर के होल्कर कॉलेज से बीए किया और यहीं पर समाचार पत्रों तथा रेडियो में लेखन के जरिए अपने कॅरियर की शुरुआत की। उन्होंने 'जीप पर सवार इल्लियां', 'परिक्रमा', 'किसी बहाने', 'तिलस्म, 'यथा संभव', 'रहा किनारे बैठ' सहित कई किताबें लिखीं। इसके अलावा जोशी जी ने कई टीवी सीरियलों और फिल्मों में संवाद भी लिखे। पांच सितंबर 1991 को उनका निधन हुआ। मध्य प्रदेश सरकार ने उनकी स्मृति में "शरद जोशी सम्मान" शीर्षक से एक पुरस्कार की स्थापना की है, जो प्रत्येक वर्ष लेखन के क्षेत्र में उत्कृष्ट उपलब्धि के लिए व्यक्तियों को दिया जाता है। इसमें रुपये का नकद 51,000 और प्रशस्ति पत्र पुरस्कार शामिल है। उनकी बेटी नेहा शरद ने 2016 में अपने पिता के काम की स्मृति में एक साहित्यिक और रंगमंच उत्सव में श्रादोत्सव का आयोजन किया।
- रेनू तिवारी
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