अनुच्छेद 370 के कट्टर आलोचक थे श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जानिए उनके जीवन के अनकहे पहलू के बारे में

shyama prasad mukherjee
Prabhasakshi
निधि अविनाश । Jul 6 2022 12:29PM

श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य दर्जा देने वाले, संविधान के अनुच्छेद 370 के कट्टर आलोचक थे। जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के कारण ही आज की भारतीय जनता पार्टी जनसंघ का नया रूप साबित हुई है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने साल 1929 में राजनीति में कदम रखा और बंगाल विधान परिषद के सदस्य बनें।

आज यानि 6 जुलाई को श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 121 वीं जयंती मनाई जा रही है। राजनीति के दुनिया के सितारे श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारतीय जनसंघ के फाउंडर थे। उन्होंने आजाद भारत के पहले इंडस्ट्री और सप्लाई मिनिस्टर का पद भी संभाला। मुखर्जी भले ही कांग्रेस से जुड़े हुए थे लेकिन वह प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के विचारों को बिल्कुल भी पंसद नहीं करते थे जिसके कारण उन्होंने जल्द ही पार्टी से अलग होने का फैसला कर लिया था। 6 जुलाई 1901 में जन्में श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक बंगाली परिवार से आते थे। उनेक पिता का नाम आशुतोष मुखर्जी था। वह कलकत्ता हाईकोर्ट के जज थे। श्यामा मुखर्जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा 1906 में भवानीपुर के मित्रा संस्थान से की। मैट्रिक पास करने के बाद श्यामा ने अपनी आगे की पढ़ाई के लिए प्रेसीडेंसी कॉलेज में एडमिशन लिया। 1916 में वह इंटर-आर्ट्स परीक्षा में 17वें स्थान पर रहे और 1921 में प्रथम स्थान हासिल करते हुए अंग्रेजी में ग्रेजुएशन किया।

अनुच्छेद 370 के कट्टर आलोचक थे श्यामा प्रसाद मुखर्जी

जानकारी के लिए बता दें कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य दर्जा देने वाले, संविधान के अनुच्छेद 370 के कट्टर आलोचक थे। जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के कारण ही आज की भारतीय जनता पार्टी जनसंघ का नया रूप साबित हुई है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने साल 1929 में राजनीति में कदम रखा और बंगाल विधान परिषद के सदस्य बनें। जवाहरलाल नेहरू के विचारों को श्यामा पंसद नहीं करते थे और वह नेहरू-लियाकत समझौते के विरोध में थे। दो देशों के समझौते से नाखुश श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने विरोध में कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने यह इस्तीफा ऐसे दिन दिया जिस दिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पहली बार भारत आ रहे थे। जब मुखर्जी ने पार्टी से इस्तीफा दिया तो अदंर हीं अदंर पार्टी में नाराजगी बढ़ने लगी। नेहरू की सरकार को छोड़ने के बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने साल 1950 के जुलाई महीने में दिल्ली में एक बैठक में भाग लिया जहां उनका हिंदू राष्ट्रवादी युवकों ने बहुत अच्छे से स्वागत किया और नेहरू-लियाकत समझौता मुर्दाबाद के भरपूर नारे भी लगाए गए।

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रहस्यमय परिस्थितियों में हुई थी मौत 

जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू पहुंचे तो उन्हें प्रवेश के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया था जिसके बाद पूरे देश में जमकर विरोध प्रदर्शन हुए थे। उनकी गिरफ्तारी के 40 दिनों बाद यानि की 23 जून 1953 को उनकी सरकारी अस्पताल में रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई थी। श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू 30 जून 1953 को उनकी मां जोगमाया देवी को एक पत्र लिखकर संवेदना प्रकट की थी। 4 जुलाई को श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मां ने पत्र लिखकर जवाब दिया कि, मेरा बेटा बिना किसी मुकदमे में हिरासत में मारा गया। आप मेरे बेटे के हिरासत के दौरान कश्मीर गए थे, मुझे काफी आश्चर्य है कि आपने श्यामा से मिलने और उनके स्वास्थ्य के बारे में व्यक्तिगत रूप से क्यों नहीं पूछा?

- निधि अविनाश

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