Swami Satyaprakash Saraswati Birth Anniversary: स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती ने अंग्रेजी में 26 खंडों में चारों वेदों का अनुवाद किया था

Swami Satyaprakash Saraswati
Prabhasakshi
अशोक मधुप । Sep 24 2023 11:16AM

डॉ. सत्यप्रकाश के पिता पंडित गंगा प्रसाद उपाध्याय बिजनौर राजकीय इंटर कॉलेज में अंग्रेजी के शिक्षक थे। वे आर्य समाजी थे। इसीलिए बिजनौर आर्य समाज में बने एक कक्ष में रहते थे। आज यह कक्ष महिला आर्य समाज का भाग है। इसी में 24 सितंबर 1905 को डॉ. सत्यप्रकाश सरस्वती का जन्म हुआ।

चारों वेदों का अंग्रेजी अनुवाद करने वाले पहले भारतीय देश के जाने माने रसायनविद और आर्य विद्वान डॉ. सत्यप्रकाश (स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती) का जन्म उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद के बिजनौर के आर्यसमाज के एक कक्ष में 24 सिंतबर 1905 हुआ था। उन्होंने जीवन का अधिकांश समय इलाहाबाद विश्वविद्यालय में रसायन-विभाग के अध्यक्ष के रूप में बिताया। सेवानिवृत्ति के बाद वे आर्य संन्यासी हुए। आर्य विद्वान के रूप में अपनी पहचान बनाई। वेदों का अंग्रेजी में अनुवाद किया।

डॉ. सत्यप्रकाश के पिता पंडित गंगा प्रसाद उपाध्याय बिजनौर राजकीय इंटर कॉलेज में अंग्रेजी के शिक्षक थे। वे आर्य समाजी थे। इसीलिए बिजनौर आर्य समाज में बने एक कक्ष में रहते थे। आज यह कक्ष महिला आर्य समाज का भाग है। इसी में 24 सितंबर 1905 को डॉ. सत्यप्रकाश सरस्वती का जन्म हुआ। पिता पंडित गंगा प्रसाद उपाध्याय के तबादले के बाद इनका परिवार इलाहाबाद चला गया। विद्वान डॉ. सत्यप्रकाश (स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती) की शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हुई। 1930 में ये इलाहाबाद विश्वविद्यालय में रसायन विभाग के प्रवक्ता नियुक्त हुए। आपने रसायन शास्त्र विभाग से फीजिको कैमिकल  स्टेडीज आफँ इनओरगेनिक जेलीज (Physico chemical studies of inorganic jellies) विषय पर डी.एससी. की उपाधि 1932 ई.में प्राप्त की। 1962 में विभागाध्यक्ष बने। आपके निर्देशन में 22 विद्यार्थियों ने डी.फिल. की उपाधि प्राप्त की। आपके 150 से ज्यादा शोध पत्र प्रकाशित हुए। पांच साल बाद 1967 में इस पद से सेवानिवृत्त हुए। इन्होंने 17 देशों की यात्राएं की। डॉ. सत्यप्रकाश सरस्वती का निधन 18 जनवरी 1995 को इनके प्रिय शिष्य पंडित दीनानाथ शास्त्री के आवास पर अमेठी में हुआ।

इसे भी पढ़ें: Raja Hari Singh Birth Anniversary: राजा हरि सिंह के एक फैसले ने बदल दी थी जम्मू-कश्मीर की तस्वीर

डॉ. सत्यप्रकाश सरस्वती ने सेवानिवृत्त होने पर संन्यास ले लिया और आर्य समाज इलाहाबाद के एक कक्ष में रहने लगे। अपने पिता पंडित गंगा प्रसाद की जन्मशती पर उन्होंने बिजनौर आर्य समाज में आयोजित कार्यक्रम में स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती आए थे। छह सिंतबर 1981 को इन्होंने बिजनौर में भवन पर लगे पत्थर का अनावरण किया था। स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती के शिष्य पंडित दीनानाथ ने अनुसार स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती ने अपने अध्यापन काल में 22 से ज्यादा छात्रों को डीफिल कराई। 150 से अधिक उनके शोध प्रकाशित हुए। अपने सेवाकाल में उन्होंने कई महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे।

विश्वविद्यालयों में विज्ञान की शिक्षा हेतु ऊँचे स्तर के ग्रन्थ अंग्रेजी में अधिकतर ब्रिटिश विज्ञान विशारदों द्वारा लिखित ही उपलब्ध होते थे। डॉ॰ सत्यप्रकाश, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय में अध्यापक होने के कारण भारतीय विद्यार्थियों की आवश्यकताओं को भली-भाँति अनुभव करते थे। अतः उन्होंने इसे दृष्टि में रखते हुए अंग्रेजी में विज्ञान से संबद्ध कई उपयोगी ग्रन्थ लिखे जो इस दिशा में उत्कृष्ट उदाहरण उपस्थित करते हैं। भारत ने प्राचीन काल में विज्ञान की विविध विधाओं में अन्वेषण कर विस्मयकारी प्रगति प्राप्त की थी। डॉ. सत्यप्रकाश ने समर्पित भाव से अथक परिश्रम कर तत्कालीन साहित्य को नवजीवन दे पूर्णरूपेण प्रमाणित कर दिया कि यह देश विज्ञान के क्षेत्र में अन्य देशों की अपेक्षा सर्वाधिक अग्रणी एवं सर्वोपरि है। विज्ञान संबन्धी अनेक पुस्तकें स्वामी जी ने लिखी हैं जो विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों में तथा शोधार्थियों के पाथेय बने हुए हैं। विज्ञान नामक प्रसिद्ध हिन्दी पत्रिका ने दिसम्बर 1997 का अंक 'डॉ सत्यप्रकाश विशेषांक' के रूप में निकाला था। फाउंडर ऑफ साइंसेस इन एंसिएंट इंडिया, कवांइस ऑफ एंसिएंट इंडिया, एडवांस केमिस्ट्री ऑफ रेयर एलीमेंट उनकी लिखी प्रमुख पुस्तक हैं। आर्य संन्यासी सन्यासी बनने पर उन्होंने आर्य समाज संबंधित साहित्य लिखा। अब तक वेदों को अंग्रेजी अनुवाद अंग्रेजों द्वारा किया गया था।

डॉ. सत्यप्रकाश सरस्वती ने अंग्रेजी में 26 खंडों में चारों वेदों का अनुवाद किया। इसके अलावा शतपथ ब्राह्मण की भूमिका, उपनिषदों की व्याख्या, योगभाष्य आदि साहित्य का सृजन किया। जितने विविध विषयों पर स्वामी सत्यप्रकाश जी का लेखन है शायद ही विश्व के किसी व्यक्ति ने इतना लिखा हो। वेद, शुल्बसूत्र, ब्राह्मण ग्रन्थ, उपनिषद्, रसायन विज्ञान,भौतिक विज्ञान, अग्निहोत्र, अध्यात्म, धर्म, दर्शन, योग, आर्यसमाज, स्वामी दयानन्द, नवजागरण आदि विविध विषयों पर सैकड़ों ग्रन्थ और लेख स्वामी सत्यप्रकाश जी द्वारा लिखे गये।

आप 1942 ई. में स्वतन्त्रता आन्दोलन में जेल भी गये। शतपथ ब्राह्मण पर आपके द्वारा 700 पृष्ठों में भूमिका लिखी गई जो ग्रन्थ को समग्रता से समझने में बहुत सहायक है। आपने 17 से अधिक देशों की यात्रायें की।

अपने विषय में स्वामी जी ने लिखा है, मैं प्रात: सो कर उठता हूं। मैंने कार खरीदी, बेच दी, अब पैदल आने जाने का प्रयोग कर रहा हूं। मैंने डा. राम कृष्णन् (प्रसिद्ध वैज्ञानिक) के साथ कार्य किया। जेल में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के साथ रहा। मैंने हिन्दी में कम अंग्रेजी में अधिक लिखा है। मैंने विज्ञान के अध्ययन, अध्यापन और पुस्तकों के सम्पादन के साथ पुस्तकों पर पते चिपका कर उन्हें डाक से भेजने आदि का कार्य भी किया है।

सन् 1983 में तृतीय विश्व हिन्दी सम्मेलन में पुरस्कार हेतु जब आयोजन में उपस्थित स्वामीजी का मंच से नाम पुकारा गया तो स्वामी जी श्रोताओं के मध्य अपने स्थान पर ही बैठे रहे। उन्हें मंच पर जाना था परन्तु वह नहीं गये। हिन्दी की प्रख्यात कवित्री डा. महादेवी वर्मा जी ने दूर बैठे स्वामी जी को देखा तो वह स्थिति समझ गईं। वह स्ंवयं व अपने अन्य सहयोगियों के साथ मंच से उतर कर स्वामी जी के पास पहुंचीं और उन्हें वहीं सम्मानित किया। स्वामीजी का मंच पर न आना संन्यास आश्रम की उच्च परम्परा का निर्वाह था। सन्यास आश्रम धर्म के पालन की एक घटना उनके अपने परिवार से जुड़ी है। प्रो. धर्मवीर अजमेर ने लिखा है कि स्वामीजी महाराज कहीं बाहर से दिल्ली पधारे। उनके पुत्र दिल्ली में कार्यरत थे। उन्हें कोई सूचना देनी थी। स्वामीजी महाराज ने अपने पुत्र के कार्यालय में दूरभाष किया, विदित हुआ कि पुत्र घर गये हैं। पुत्र के निवास पर दूरभाष किया तो पता चला कि वह बीमार है, उन्हें हार्ट अटैक हुआ था। थोड़ी देर बाद पता चला कि पुत्र दिवंगत हो गये। स्वामीजी ने किसी से चर्चा नहीं की, कोई दु:ख व्यक्त नहीं किया और न घर जाकर अन्त्येष्टि में शामिल ही हुए। दयानन्द संस्थान, दिल्ली के अध्यक्ष महात्मा वेदभिक्षु से उनका बड़ा स्नेह था। उनसे दूरभाष पर सम्पर्क किया। कहने लगे आज आपसे बात करने की इच्छा हो रही है, मेरे कमरे में आ जाओ। दिन भर उनके साथ इधर −उधर की चर्चा करते रहे। पुत्र की अन्त्येष्टि के दो तीन दिन बाद पुत्र वधु स्वामीजी महाराज के पास आई तो स्वामी जी कुछ देर बात करने के बाद उनसे बोले कि ईश्वर की इच्छा, जो होना था हो गया, अब तुम अपना काम देखो, मैं अपना काम देखता हूं।

मृत्यु से पूर्व स्वामीजी के अमेठी निवासी शिष्य श्री दीनानाथ सिंह एवं उनके परिवार ने रूग्णावस्था में उनकी जो सेवा-सुश्रुषा की वह सराहनीय एवं अनुकरणीय थी। श्री सत्यदेव सैनी, लखनऊ व उनका परिवार स्वामीजी का भक्त रहा है। मृत्यु से कुछ ही दिन पूर्व लखनऊ में चिकित्सा कराकर अस्पताल से डिस्चार्ज होने पर स्वामीजी कुछ देर सैनीजी के परिवार में रूके व सभी सदस्यों से मिल कर अमेठी गये थे। 18 जनवरी सन् 1995 को 90 वर्षीय स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती अनन्त यात्रा पर निकल गए। 

- अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़