दूध उत्पादन में भारत को बनाया दुनिया में नंबर वन, सफेद क्रांति के जनक थे वर्गीज कुरियन

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Prabhasakshi
वर्गीज कुरियन का जन्म 26 नवंबर 1921 को केरल के कोझिकोड के एक सीरियाई ईसाई परिवार में हुआ था। इनके पिता सिविल सर्जन थे। उन्होंने चेन्नई के लोयला कॉलेज से 1940 में विज्ञान में स्नातक किया और चेन्नई के ही जीसी इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की।

श्वेत क्रांति के सूत्रधार वर्गीज कुरियन ने गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन की स्थापना के जरिए पशुपालकों और किसानों को उनके हक और उनमें छिपी हुई संभावनाओं से रूबरू कराया। अगर आज देश भर में अमूल ब्रांड के डेयरी प्रोडक्टस की डिमांड है तो इसका श्रेय कुरियन को जाता है। ऑपरेशन फ्लड या श्वेत क्रांति के आगाज में उनके योगदान को कौन भूल सकता है। देश में श्वेत क्रांति के जनक और मिल्कमैन के नाम से मशहूर वर्गीज कुरियन की अथक मेहनत का ही नतीजा था कि दूध की कमी वाला यह देश दुनिया के सबसे बड़े दूध उत्पादक देशों में शामिल हुआ। तभी तो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कुरियन को देश के सहकारी आंदोलन और डेयरी उद्योग के विकास का आधार देने वाला असाधारण शख्स बताया था। कुरियन देश के सहकारी आंदोलन और डेयरी उद्योग के एक आदर्श पुरुष थे। कुरियन का सबसे ज्यादा अहम योगदान बिचौलियों की बजाए किसानों को सीधे कंपनी से जोड़ने का रहा है।

गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के संस्थापक कुरियन ने देश के डेयरी क्षेत्र में कीर्तिमान रचा। खेड़ा डिस्ट्रिक्ट को-कॉपरेटिव केंद्र और एनडीडीबी, इन सभी संस्थाओं के जरिए कुरियन देश में श्वेत क्रांति का अहम हिस्सा बने। वह दौर ऐसा था जब देश में दूध की भारी कमी थी और उसे पूरा करना चुनौती से भरा था। उसी समय ऑपरेशन फ्लड के जरिए दूध को प्रसंस्कृत कर जल्दी खराब न होने वाले बेहतरीन उत्पादों में बदला जाने लगा। और इन सभी उत्पादों को अमूल ब्रांड के नाम के तहत पेश किया गया। यह उत्पाद भारत में एकाधिकार जमाए हुए हैं। कहीं भी जाइए इसकी मांग काफी है। गुणवत्ता और बेहतरीन उत्पादन से लोगों के दिलों पर राज करता है अमूल। तभी तो इस उत्पाद के जनक के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुरियन की जिंदगी को एक जीवन, एक मिशन कहा।

वर्गीज कुरियन का जन्म 26 नवंबर 1921 को केरल के कोझिकोड के एक सीरियाई ईसाई परिवार में हुआ था। इनके पिता सिविल सर्जन थे। उन्होंने चेन्नई के लोयला कॉलेज से 1940 में विज्ञान में स्नातक किया और चेन्नई के ही जीसी इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की। जमशेदपुर स्थित टिस्को में कुछ समय काम करने के बाद कुरियन को डेयरी इंजीनियरिंग में अध्ययन करने के लिए भारत सरकार की ओर से छात्रवृत्ति दी गई। बेंगलुरु के इंपीरियल इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल हजबेंड्री एंड डेयरिंग में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद कुरियन अमेरिका गए जहां उन्होंने मिशीगन स्टेट यूनिवर्सिटी से 1948 में मेकेनिकल इंजीनियरिंग में अपनी मास्टर डिग्री हासिल की, जिसमें डेयरी इंजीनियरिंग भी एक विषय था। भारत लौटने पर कुरियन को अपने बांड की अवधि की सेवा पूरी करने के लिए गुजरात के आणंद स्थित सरकारी क्रीमरी में काम करने का मौका मिला। 1949 के अंत तक कुरियन को क्रीमरी से कार्यमुक्त करने का आदेश दे दिया गया।

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कुरियन की 1949 में गुजरात के एक छोटे मिल्क पाउडर कारखाने में डेयरी इंजीनियर के तौर पर नियुक्ति हुई। इस दौरान खेड़ा जिला सरकारी दुग्ध उत्पादक संघ एक निजी डेयरी पॉलसन के खिलाफ संघर्ष कर रहा था। इससे प्रेरित होकर कुरियन ने सरकारी नौकरी छोड़कर संघ की मदद का फैसला किया। बाद में इसने अमूल का रूप ले लिया। 1950-54 में केडीसीएमपीयूएल ने दो गांवों और 247 लीटर प्रतिदिन दूध उत्पादन से शुरुआत की। इस दौरान संघ ने खुद के प्रसंस्करण संयंत्र की स्थापना कर ली। सहकारी आंदोलन बढ़ने के साथ ही बहुत सारे दूसरे गांवों ने भी अमूल मॉडल को अपनाया। इसी का नतीजा है कि आज भारत का सबसे बड़ा खाद्य उत्पाद विपणन संगठन बना अमूल। इसका सालाना कारोबार 11,668 करोड़ रुपए का है। 16117 गांवों की सहकारी समिति से रोज 1.3 करोड़ लीटर दूध जुटाता है। दुग्ध उत्पादों का करीब 95 करोड़ रुपए का निर्यात होता है। 7000 वितरक और 10 लाख से ज्यादा रिटेल आउटलेट हैं अभी अमूल के।

कुरियन ने सहकारिता के माध्यम से भारतीय किसानों को सशक्त बनाने की दिशा में अपना जीवन समर्पित कर दिया और 1973 से 2006 तक जीसीएमएमएफ की सेवा की। उन्होंने 1979 से 2006 तक ग्रामीण प्रबंधन संस्थान में भी काम किया। आणंद में कुरियन के काम करने के दौरान भारतीय दुग्ध उद्योग की दिशा और दशा ही बदल गई। गुजरात में पहले दुग्ध सहकारी संघ की शुरुआत 1946 में की गई थी जब दो गांवों की समितियां इसकी सदस्य बनीं। सदस्य समितियों की संख्या आज 16100 हो गई है जिसमें 32 लाख सदस्य दूध की आपूर्ति कर रहे हैं। भैंस के दूध से पहली बार पाउडर बनाने का श्रेय भी कुरियन को जाता है। उनके प्रयासों से ही दुनिया में पहली बार भैंस का दूध से पाउडर बनाया गया।

अमूल की सफलता से अभिभूत होकर लाल बहादुर शास्त्री जी ने राष्ट्रीय दुग्ध विकास बोर्ड का गठन किया जिससे पूरे देश में अमूल बोर्ड को समझा और अपनाया गया। कुरियन को बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया। एनडीडीबी ने 1970 में ऑपरेशन फ्लड की शुरुआत की जिससे भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बन गया। ऑपरेशन फ्लड के शुरुआती दिनों में दूध के संग्रह के लिए आवश्यक आधारभूत संरचना को विकसित करने, उसे ठंडा रखने, परिवहन और वितरण के लिए आवश्यक संसाधनों के एक बड़े हिस्से को दूध पाउडर की बिक्री और विदेश से उपहार के तौर पर प्राप्त दुग्ध वसा के जरिए जुटाया गया। उपहार को बेचकर पैसा जुटाना ठीक नहीं माना गया, लेकिन कुरियन इसे बेहतर तरीका मानते थे। कुरियन सरकारी हस्तक्षेप को ठीक नहीं मानते थे। यहां तक की कृषि मंत्रालय में बैठे अधिकारियों की वे खुल्लम खुल्ला आलोचना भी करते थे।

उन्होंने अपनी दृढ़ता को हर समय कायम रखा और बकायदा इसे आगे बढ़ाया। कुरियन की दृढ़ता इस बात से झलकती है जिसके मुताबिक ग्रामीण व्यवसाय को अशिक्षित किसानों और महिलाओं की मदद से आधुनिक पद्धति पर चलाया जा सकता है और साथ ही बिना किसी सरकारी मदद के आधुनिक प्रौद्योगिकी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। कुरियन सरकार से दूरी बनाए रखने में ही यकीन रखते थे। दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में अमूल मॉडल की सफलता की कहानी बहुत हद तक आत्मनिर्भरता की कहानी है। वह ऐसी सरकारी सहायता और ऐसे हस्तक्षेपों का खुला विरोध करते थे जिससे उत्पादकता में कमी आती हो। कुरियन के अमूल्य योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कार भी मिले। कुरियन को 1963 में रमन मैगसायसाय अवार्ड मिला। नेशनल डेयरी विकास बोर्ड का गठन जब 1965 में किया गया तो इसके अध्यक्ष इन्हें बनाया गया। इसी वर्ष इन्हें पद्मश्री से नवाजा गया। 1966 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। 1999 में कुरियन को पद्मविभूषण से नजावा गया। 9 सितम्बर 2012 में डॉ. वर्गीज कुरियन की 90 साल के उम्र में निधन हो गया था।

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