आज भी दुनियाभर के वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं जगदीश चंद्र बोस

jagdish chandra bose
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जगदीश चंद्र बोस वर्ष 1885 में भारत लौटे और सहायक प्राचार्य के रूप में प्रेसीडेंसी कॉलेज में काम किया। यहां उन्होंने 1915 तक कार्य किया लेकिन उनके साथ अंग्रेज भेदभाव करते थे। उन्हें अंग्रेज शिक्षकों की तुलना में एक तिहाई वेतन मिलता था।

भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने रेडियो और माइक्रोवेव ऑप्टिक्स के अविष्कार के साथ पेड़-पौधों के जीवन पर भी बहुत सी खोज की। वह भौतिक वैज्ञानिक होने के साथ-साथ जीव वैज्ञानिक, वनस्पति वैज्ञानिक, पुरातत्वविद और लेखक भी थे। रेडियो विज्ञान के क्षेत्र में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके कार्य को देखते हुए ‘इंस्टिट्यूट ऑफ इलेक्टि्रकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर’ ने उन्हें रेडियो वैज्ञानिक जनकों में से एक माना। जेसी बोस की खोज का नतीजा है कि आज हम रेडियो, टेलिविजन, भुतलीय संचार रिमोट सेन्सिग, रडार, माइक्रोवेव अवन और इंटरनेट का उपभोग कर रहे हैं।

जगदीश चन्द्र बोस का जन्म 30 नवम्बर, 1858 को मेमनसिंह के ररौली गांव में हुआ था जो वर्तमान में बांग्लादेश में मौजूद है। उनके पिता का नाम भगबान चन्द्र बोस था जो ब्रिटिश इंडिया गवर्नमेंट में विभिन्न कार्यकारी पदों पर कार्यरत थे। जगदीश चन्द्र के जन्म के समय उनके पिता फरीदपुर के उप मजिस्ट्रेट थे। उनका बचपन फरीदपुर में ही बीता था। साथ ही उनकी प्रारम्भिक शिक्षा भी वहीं पर हुई थी। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव की एक पाठशाला से शुरू की क्योंकि उनके पिता चाहते थे कि जगदीश चन्द्र अपनी मातृभाषा सीखी और संस्कृत का ज्ञान अर्जित करें। इसलिए अंग्रेजी स्कूल पास होने के बावजूद भी उनके पिता ने अपने बेटे को सामान्य सी पाठशाला में भेजा। उसके बाद वर्ष 1869 में उनको कोलकाता भेजा गया जहां वह कुछ दिनों बाद सेंट जेवियर स्कूल में पढ़े। 

कुछ दिनों बाद उन्होंने 1879 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से भौतिक-विज्ञान में स्नातक किया। उसके बाद चिकित्साशास्त्र की पढ़ाई करने के लिए वह लंदन गए। लेकिन सेहत खराब होने के कारण वह लंदन से कैम्ब्रिज चले गए और वहां उन्होंने क्राइस्ट कॉलेज में पढ़ाई की।

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जगदीश चंद्र बोस वर्ष 1885 में भारत लौटे और सहायक प्राचार्य के रूप में प्रेसीडेंसी कॉलेज में काम किया। यहां उन्होंने 1915 तक कार्य किया लेकिन उनके साथ अंग्रेज भेदभाव करते थे। उन्हें अंग्रेज शिक्षकों की तुलना में एक तिहाई वेतन मिलता था। इसका उन्होंने तीन साल तक विरोध करते हुए आर्थिक तंगी झेली। उसके बाद चौथे साल जगदीश चंद्र बोस की जीत हुई और उन्हें पूरी सैलरी दी गयी। बोस एक बहुत अच्छे शिक्षक भी थे और उनके कुछ छात्र सत्येंद्रनाथ बोस प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री भी बने। प्रेसिडेंसी कॉलेज से रिटायर होने के बाद 1917 ई. में इन्होंने बोस रिसर्च इंस्टिट्यूट, कलकत्ता की स्थापना की और 1937 तक इसके डायरेक्टर पद पर कार्यरत रहे।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी जगदीश चन्द्र बोस को जीवन भर कई प्रकार के पुरस्कार तथा सम्मान प्राप्त हुए। उन्हें 1896 में लंदन विश्‍वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि मिली। उसके बाद 1920 में रॉयल सोसायटी के फेलो चुने गए। इंस्टिट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एण्ड इलेक्ट्रोनिक्स इंजीनियर्स ने जगदीश चन्द्र बोस को अपने ‘वायरलेस हॉल ऑफ फेम’ में सम्मिलित किया गया। उसके बाद 1903 में ब्रिटिश सरकार ने बोस को कम्पेनियन ऑफ़ दि आर्डर आफ दि इंडियन एम्पायर से सम्मानित किया। 1917 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें नाइट बैचलर की उपाधि भी प्रदान की।

फिजिक्स के लिए नोबेल जीतने वाले सर नेविल मोट ने जगदीश चंद्र बोस को अपने समय से 60 साल आगे चलने वाला बताया था। भारत के महान वैज्ञानिक ने 23 नवंबर 1937 को झारखंड के गिरिडीह में दुनिया को अलविदा कहा। भले जगदीश चंद्र बोस हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी वैज्ञानिक सोच और लेखनी आज भी दुनियाभर के वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा स्रोत है।

- प्रज्ञा पाण्डेय

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