अमरिंदर ने शपथ संविधान की ली थी मगर दंगाइयों की कानूनी पैरवी करवा रहे हैं

Amarinder Singh
राकेश सैन । Feb 4 2021 11:45AM

पंजाब में कांग्रेस सरकार द्वारा विशुद्ध रूप से राजनीतिक दृष्टि से लिए गए इस फैसले की वैधानिकता पर सवाल उठने शुरू हो चुके हैं। विधि विशेषज्ञों का मानना है कि संवैधानिक रूप से चुनी हुई सरकार अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस तरह का कदम नहीं उठा सकती।

पंजाब सरकार ने दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर हुई ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा के आरोपियों को नि:शुल्क कानूनी सहायता उपलब्ध करवाने का फैसला लिया है। राज्य के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ट्वीट कर बताया कि सरकार ने 70 वकीलों का पैनल बनाया है जो जेल में बंद दंगा आरोपी किसानों को कानूनी सहायता उपलब्ध करवायेगा। राज्य के काबिना मंत्री श्री सुखजिंदर सिंह रंधावा व श्री सुखबिंदर सिंह सरकारिया ने बताया कि दिल्ली पुलिस की तरफ से गिरफ्तार किसानों के केस लडऩे के लिए पंजाब सरकार की तरफ से वकीलों की टीम बनाई गई है। यह टीम इन किसानों के परिवार के साथ संपर्क करके वकालतनामों पर हस्ताक्षर करवाएगी और मामलों की बिना किसी फीस के कानूनी पैरवी करेगी। काबिलेजिक्र है कि गणतंत्र दिवस के दिन ट्रैक्टर मार्च के नाम पर कथित

किसानों ने दिल्ली में न केवल उत्पात मचाया बल्कि लाल किले पर तिरंगे झंडे का अपमान किया और 394 पुलिस वालों को जख्मी कर दिया था। दिल्ली पुलिस ने विभिन्न धाराओं के तहत इनके खिलाफ मामले दर्ज किए हैं।

इसे भी पढ़ें: औसत बौद्धिक समझ भी नहीं रखते किसान नेता, तभी कृषि कानूनों के फायदे नहीं समझ पा रहे

पंजाब में कांग्रेस सरकार द्वारा विशुद्ध रूप से राजनीतिक दृष्टि से लिए गए इस फैसले की वैधानिकता पर सवाल उठने शुरू हो चुके हैं। विधि विशेषज्ञों का मानना है कि संवैधानिक रूप से चुनी हुई सरकार अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस तरह का कदम नहीं उठा सकती। मुख्यमंत्री निजी तौर पर या अपनी पार्टी के रूप में ही किसी अपराध के आरोपियों को मदद कर सकते हैं। लोगों ने सवाल किया है कि कानून अनुसार दर्ज हुए परचे पर कोई संवैधानिक रूप से चुनी गई सरकार किस तरह आरोपियों को मदद कर सकती है ? जनता के गाढ़े खून पसीने की कमाई को किस आधार पर कोई दल अपनी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं और इन हुड़दंगियों के बचाव में पानी की तरह बहा सकता है ?

वैसे राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि दंगे के आरोपी कथित किसानों के प्रति मुख्यमंत्री की यह दरियादिली साफ इशारा करती है कि वे मान रहे हैं कि आंदोलन के पीछे कांग्रेस पार्टी का ही हाथ है। गणतंत्र दिवस को हुए दंगों के तत्काल बाद कांग्रेस पार्टी सहित समूचे विपक्षी दलों ने अपनी पुरानी आदत के अनुसार इनके पीछे भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हाथ बताया था परंतु अब सवाल उठने लगे हैं कि अगर हुड़दंगी भाजपा और संघ के कार्यकर्ता हैं तो कांग्रेस की सरकार इन पर इतनी मेहरबान क्यों हो रही है ? कांग्रेस सरकार का इनके बचाव में आना अपने आप में यह स्वीकारोक्ति है कि दंगाई कहीं न कहीं कांग्रेस के ही उकसाए हुए थे। नियम अनुसार तो किसी अपराधी या आरोपी को सरकारें वैधानिक सेवा प्राधिकरण के जरिए लोक अदालतें लगा कर नि:शुल्क कानूनी

सहायता उपलब्ध करवाती हैं परंतु इसके लिए विशेष पात्रता निर्धारित की गई और उसकी अलग से वैधानिक प्रक्रिया अपनाई जाती है। दिल्ली के दंगों के आरोपी उक्त कोई पात्रता पूरी नहीं करते और न ही उन्होंने इसके लिए कोई आवेदन किया है तो क्यों पंजाब सरकार अपने राज्य की सीमा से बाहर जा कर असंवैधानिक कदम उठा रही है ?

स्पष्ट है कि इसका उद्देश्य विशुद्ध रूप से राजनीतिक है न कि किसानों की मदद करना। कितने दुर्भाग्य की बात है कि एक तरफ जहां राज्य सरकार वित्तीय संकट का राग अलापती नहीं थकती और इसके लिए केंद्र सरकार को कोसती रही है वहीं अपने राजनीतिक लाभ के लिए जनता का पैसा दंगा आरोपियों की पैरवी पर खर्च करने जा रही है। राज्य में कांग्रेस सरकार के आने के बाद विकास ने तो मानो वनवास ही ले लिया परंतु राजनीतिक खेल के लिए सरकारी खजाने के मुंह खोलने की तैयारी चल रही लगती है।

दिल्ली में हुए दंगों के बाद पंजाब में उलटबांसियों को क्रम बढ़ता ही जा रहा है। यहां की पंचायतों ने लगता है कि 'मेरा दंगाई-अच्छा दंगाई' का सिद्धांत अपना लिया है। यही कारण है कि लाल किले के मुख्य दंगाकारी गायकार दीप सिद्धू व गैंगस्टर लक्खा सिधाना के गांवों की पंचायतों ने प्रस्ताव पारित कर इनके दुष्कर्मों का समर्थन किया है और कहा है कि अगर ये दंगाई हैं तो सारा गांव दंगाई है। दिल्ली के लाल किले में 26 जनवरी को हुई घटना के संबंध में दिल्ली पुलिस ने पंजाब के लक्खा सिधाना को नामजद किया है। गांव सिधाना की पंचायत और ग्रामीणों ने एक प्रस्ताव डाला। इस प्रस्ताव में पंचायत एवं ग्रामीणों ने ऐलान किया कि वह लक्खा के साथ हैं।

लाल किले में किसानों के उपद्रव के बाद आंदोलन कमजोर होने लगा तो पंजाब में ग्राम पंचायतों ने मनमानी करते हुए अनोखा तरीका अपना लिया। पंजाब के पांच जिलों में 20 से अधिक पंचायतों ने प्रस्ताव पारित कर हर घर से एक व्यक्ति को दिल्ली के आंदोलनों में जाने का आदेश दिया है। जिस घर से कोई व्यक्ति आंदोलन में नहीं जाएगा, उसे जुर्माना देना होगा। जुर्माना न देने की सूरत में उस परिवार का सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा। पंचायतें भले ही ऐसे प्रस्ताव कर रहीं हों, लेकिन पंचायती राज अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। वरिष्ठ अधिवक्ता एडवोकेट बलराज शर्मा कहते हैं कि अधिनियम के अनुसार पंचायतें सिर्फ समाज कल्याण के कार्यों को लेकर प्रस्ताव पारित कर उन्हें न मानने वालों पर जुर्माना लगा सकती हैं। यदि कोई पंचायत यह प्रस्ताव पारित करती है कि गांव

में गंदगी फैलाने वालों पर, सार्वजनिक संपति नष्ट करने वाले या अन्य तरह के अपराध में कार्रवाई की जाएगी, तो वह जुर्माना लगा सकती हैं, लेकिन किसी को जबरन धरने में शामिल होने के आदेश देने का अधिकार पंचायत के पास नहीं है। पंचायत इस धरने में शामिल न होने पर जुर्माना नहीं लगा सकतीं। पंचायतों के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है कि वह लोगों को किसी धरने में शामिल होने के आदेश जारी करें। आदेश न मानने पर किसी प्रकार का जुर्माना लगाना पंचायती राज अधिनियम का उल्लंघन है। वहीं, पंचायती राज मंत्री तृप्त राजिंदर बाजवा इस बारे में कोई भी बात करने को राजी नहीं हैं। पंचायतों की इस हरकत को देख कर राज्य में आतंकवाद के दौर के समय गठित हुई खालसा पंचायतों की याद ताजा हो गई जो तालिबानी हुक्म सुनाती और जबरन जनता पर थोपती थीं।

इसे भी पढ़ें: कृषि कानून की आड़ में अपना एजेंडा चला रहे हैं कुछ पत्रकार व पंचायतें

राज्य में चाहे अभी तक केवल दो दर्जन पंचयातों द्वारा इस तरह की नासमझी की कार्रवाईयां की गई हैं परंतु यह सिलसिला निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। यहां यह बताना भी जरूरी है कि चूंकि राज्य में चार साल से कांग्रेस सरकार सत्तारुढ़ है तो यहां हुए पंचायती चुनावों में कांग्रेस ने बहुसंख्या गांवों में जीत हासिल की थी और इस बात की भी पूरी आशंका है कि राज्य में सत्तारुढ़ दल के इशारों पर पंचायतें इस तरह की हरकतें कर रही हैं ताकि कथित किसान आंदोलन को खाद-पानी मिलता रहे। राज्य सरकार के साथ-साथ पंचायतों की यह कार्रवाईयां यह साबित करने को पर्याप्त हैं कि दिल्ली में चल रहा कथित किसान आंदोलन न केवल राजनीतिक पृष्ठभूमि लिए बल्कि राजनीति के ही खाद-पानी से सांस ले रहा है और राजनीतिक इशारों पर ही हुड़दंग मचाया जा रहा है।

-राकेश सैन

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़