प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी पर नीतीश कुमार की 'ना', 'ना' में ही छिपी हुई उनकी 'हाँ'

Nitish Kumar
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महागठबंधन के साथ सरकार बनाने के बाद नीतीश कुमार के पहले दिल्ली दौरे के दौरान हुई राजनीतिक मुलाकातों पर गौर करें तो एक बड़ी बात उभर कर आती है। दरअसल नीतीश कुमार इस प्रयास में हैं कि जनता दल के सभी घटकों को एक मंच पर लाया जाये।

बिहार में भले बेरोजगारी चरम पर है और रोजगार की मांग करने वाले युवाओं पर सड़कों पर लाठीचार्ज हो रहा है, बिहार में भले आपराधिक घटनाओं में दोबारा इजाफा हो रहा है, बिजली कटौती हो रही है, बाढ़ से जनता जूझ रही है, बिहार में भले आजादी के 75 साल बाद भी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत लचर होने के चलते लोग अच्छी शिक्षा और चिकित्सा के लिए दूसरे राज्यों का रुख करते हों...लेकिन इस सबसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को कोई फर्क नहीं पड़ता है। क्योंकि उनको एकमात्र चिंता इस बात की रहती है कि उनकी कुर्सी सलामत रहनी चाहिए। आजकल तो वह सीएम की कुर्सी छोड़कर पीएम की कुर्सी पाने का ख्वाब भी देखने लगे हैं। हालांकि जब भी उनसे पूछा जा रहा है तो यही कह रहे हैं कि वह ना तो प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं और ना ही इसके लिए इच्छुक हैं। लेकिन नीतीश की इसी ना में उनकी हाँ छिपी हुई है जिसके लिए वह रणनीति बनाकर काम करने में जुट गये हैं।

एनडीए से नाता तोड़ने और महागठबंधन के साथ सरकार बनाने के बाद नीतीश कुमार के पहले दिल्ली दौरे के दौरान हुई राजनीतिक मुलाकातों पर गौर करें तो एक बड़ी बात उभर कर आती है। दरअसल नीतीश कुमार इस प्रयास में हैं कि जनता दल के सभी घटकों को एक मंच पर लाया जाये। संभवतः इसीलिए उन्होंने जनता दल सेक्युलर के नेता एचडी कुमारस्वामी और इंडियन नेशनल लोकदल के ओम प्रकाश चौटाला से मुलाकात की। हम आपको याद दिला दें कि नीतीश ने जब भाजपा का साथ छोड़ महागठबंधन का हाथ धामा था तब पूर्व प्रधानमंत्री और जनता दल सेक्युलर के नेता एचडी देवेगौड़ा ने कहा भी था कि यदि प्रयास हों तो जनता दल के सभी साथी एक मंच पर आ सकते हैं। नीतीश कुमार जानते हैं कि अकेले उनके जनता दल युनाइटेड की आवाज विपक्षी गठबंधन में नहीं सुनी जायेगी लेकिन यदि जनता दल के सारे घटक एक हो जायें तो एक सशक्त मोर्चा बन सकता है। नीतीश जानते हैं कि अकेले जनता दल युनाइटेड उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बना भी दे तो कुछ हासिल नहीं हो सकता लेकिन यदि पूरा जनता दल परिवार उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करे तो बात बन भी सकती है। इसीलिए उन्होंने जनता दल परिवार को एकजुट करने का अभियान चलाया है। इसके अलावा नीतीश यह भी जानते हैं कि अकेले रहेंगे तो मणिपुर जैसी घटनाएं भी होती रहेंगी जहां जनता दल युनाइटेड के सभी विधायक भाजपा में शामिल हो गये।

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नीतीश की दिल्ली में हुई मुलाकातों पर गौर करें तो एक चीज और साफ होती है कि वह जो भी रणनीति बना रहे हैं उसमें कांग्रेस और वामदलों को साथ लेकर चलना चाहते हैं। राहुल गांधी, सीताराम येचुरी और डी राजा के साथ नीतीश कुमार की मुलाकात इसी क्रम में हुई है। नीतीश अपनी 'पलटू नेता' वाली छवि को लेकर भी काफी सतर्क हैं इसीलिए दिल्ली रवाना होने से पहले उन्होंने लालू प्रसाद यादव से मुलाकात कर उन्हें भरोसे में लिया और फिर दिल्ली आकर राहुल गांधी के साथ पहली बड़ी राजनीतिक मुलाकात की। यह सब इसलिए किया गया ताकि पूर्व में उन्होंने जिन दलों को धोखा दिया था, इस बार वह नीतीश कुमार पर विश्वास करें। इसके अलावा नीतीश कुमार ने उन अरविंद केजरीवाल के साथ भी मुलाकात की जिनके बारे में उनकी आम आदमी पार्टी कह चुकी है कि 2024 का लोकसभा चुनाव मोदी बनाम केजरीवाल होगा। एक और संभावित पीएम उम्मीदवार के. चंद्रशेखर राव से भी नीतीश कुमार मुलाकात कर ही चुके हैं। नीतीश कुमार ने अखिलेश यादव से मुलाकात कर जहां उत्तर प्रदेश की सियासी नब्ज को टटोलने की कोशिश की वहीं एनसीपी नेता शरद पवार से उनकी भेंट के भी गहरे मायने निकाले जा रहे हैं। गौरतलब है कि विपक्ष का पीएम उम्मीदवार तय करने में शरद पवार की भूमिका अहम रहने वाली है। हालांकि अभी नीतीश कुमार की एक और पीएम उम्मीदवार ममता बनर्जी से भेंट होनी बाकी है।

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देखा जाये तो नीतीश कुमार कुल मिलाकर सभी विपक्षी दलों को वर्ष 2024 के चुनाव में भाजपा का संयुक्त मुकाबला करने के लिए एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं और उनका विशेष जोर समाजवादी पृष्ठभूमि की पार्टियों को एक साथ लाने पर है। नीतीश के इस अभियान का क्या असर होगा यह तो वक्त ही बतायेगा लेकिन एक समय उनके करीबी रहे चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर का मानना है कि बिहार में हालिया उथल-पुथल “राज्य केंद्रित” घटना थी और इससे राष्ट्रव्यापी प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है। प्रशांत किशोर का कहना है कि हम केवल एक बात निश्चित रूप से कह सकते हैं कि कुछ भी हो, नीतीश कुमार बिहार की सत्ता पर काबिज रहेंगे जैसे कि वह इतने वर्षों से करते आ रहे हैं। साथ ही प्रशांत किशोर ने दावा करते हुए यह भी कहा है कि मैं आपको लिखित रूप में बता सकता हूं कि बिहार में वर्ष 2025 में होने वाले अगले विधानसभा चुनाव में एक और बदलाव देखने को मिलेगा। क्या यह बदलाव फिर से नीतीश का एनडीए का हाथ थामना हो सकता है? सवाल कई हैं लेकिन भाजपा का रुख देखते हुए लगता नहीं कि वह नीतीश कुमार को फिर कोई मौका देगी क्योंकि भाजपा ने साफ कह दिया है कि पार्टी के दरवाजे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए ‘‘स्थायी रूप से बंद’’ हैं।

बहरहाल, नीतीश कुमार साल 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले देशभर में विपक्षी एकता को मजबूत करने के मिशन पर निकले हैं लेकिन इस अभियान के दौरान उन्हें सतर्क भी रहना होगा। याद कीजिये 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने भी इसी तरह एनडीए से नाता तोड़ लिया था और विभिन्न राज्यों में घूम-घूम कर भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने में लगे हुए थे। लेकिन इस कवायद के दौरान चंद्रबाबू को पता भी नहीं चला कि उनकी खुद की जमीन आंध्र प्रदेश में कब पूरी तरह खिसक गई।

-नीरज कुमार दुबे

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