क्या अपने भाई को ''बचाने'' के लिए भाजपा के दबाव में हैं मायावती ?

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अजय कुमार । Oct 8 2018 1:19PM

एक जानकारी के मुताबिक मायावती के भाई आनंद कुमार ने रियल इस्टेट में पैसा लगा रखा है। उनके खिलाफ पहले भी अवैध ट्रांजेक्शन के आरोप लग चुके हैं। मायावती की सरकार के समय तो वे 50 कंपनियों के मालिक थे।

बसपा सुप्रीमो मायावती की एक चाल ने 2019 के लोकसभा चुनाव की बिसात पलट दी है। तीसरे मोर्चे के चर्चा तेज हो गई है तो कांग्रेस को अपने लिये खतरे की घंटी सुनाई पड़ने लगी है। मायावती ने गैर भाजपा−गैर कांग्रेस वाले तीसरे मोर्चे की वकालत क्या की, उनके साथ सुर में सुर मिलाने वालों की लिस्ट में समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, पश्चिम बंगाल की नेत्री ममता बनर्जी और लालू यादव की पार्टी का भी नाम शामिल हो गया। तीसरा मोर्चा बिना कांग्रेस के साकार हो गया तो कम से कम उत्तर प्रदेश में तो कांग्रेस मोदी को चुनौती देना तो दूर मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहेगी। उसके लिये दहाई का आंकड़ा छूना भी मुश्किल हो जायेगा। इसी के चलते यूपी कांग्रेस के हाथ−पाव फूल गये हैं।

2014 में तो सोनिया और राहुल गांधी किसी तरह अपनी सीट बचा ले गये थे, लेकिन 2019 में अमेठी फतह करना राहुल के लिये आसान नहीं लग रहा है। पांच वर्षों के बाद भी कांग्रेस यहां कोई ऐसा नेता नहीं तैयार कर पायी है जो योगी आदित्यनाथ, मायावती और अखिलेश के कद जैसा नहीं भी हो तो उसके समकक्ष तो टिकता हो। घूम फिरके एक ही चेहरा राज बब्बर के रूप में सामने आता है, लेकिन यह चेहरा भी कोई छाप नहीं छोड़ पाया है। इसकी वजह है राहुल गांधी का यूपी पर कभी कोई खास ध्यान नहीं देना। यूपी में उनके दौरे काफी कम और अक्सर अमेठी तक ही सीमित रहते हैं। इस वजह से कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा हुआ है। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के तमाम नेताओं को हर समय आलाकमान का गठबंधन राग अलापना भी नहीं अच्छा लगता है। एक समय था जब कांग्रेस में शीर्ष के पदों पर उत्तर प्रदेश के नेताओं का बोलबाला होता था, परंतु अब यहां तलाशने पर भी उत्तर प्रदेश का कोई नेता नजर नहीं आता है जो उत्तर प्रदेश कांग्रेस को ऊर्जा प्रदान कर सके, जबकि बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार यूपी में सक्रियता बनाये रखते हैं। चुनाव में अभी छह माह का समय बाकी है, लेकिन मोदी की यहां कई मंडलों में सभाएं हो चुकी हैं। केन्द्र की कई योजनाएं यहां लागू की गई हैं। मोदी का कोई न कोई मंत्री उत्तर प्रदेश के दौरे पर रहता है।

  

मायावती, कांग्रेस को लेकर इतना सख्त रूख क्यों अपना रही हैं, इसकी वजह छिपी नहीं है। एक तो मायावती को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर भरोसा नहीं है, दूसरे उन्हें राहुल के सॉफ्ट हिन्दुत्व वाले फॉर्मूले से भी डर लग रहा है, जिसके चलते बसपा का दलित वोट बैंक नाराज है इससे मुसलमानों का बसपा के प्रति लगाव कम हो सकता है। चर्चा यह भी है कि बसपा का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा बचाये रखने के लिये पार्टी सुप्रीमो मायावती अलग−अलग राज्यों में अपना वोट आधार बढ़ाने की कोशिश में लगी हैं। वैसे, कहने वाले यह भी कह रहे हैं कि बसपा सुप्रीमो दबाव में हैं। वह नहीं चाहती हैं कि बीजेपी से बेवजह व्यक्तिगत नाराजगी मोल ली जाये। मायावती के भाई आनंद के ऊपर आय से अधिक संपत्ति रखने का आरोप है। आयकर विभाग और ईडी इसकी जांच कर रहा है। आनंद कभी नोएडा में क्लर्क हुआ करते थे और उनकी एक कम्पनी थी, लेकिन 2007 में बसपा सरकार बनने के बाद आनंद ने 49 कंपनियां खोलीं। इस काम में बसपा महासचिव सतीश मिश्रा के बेटे कपिल मिश्रा ने भी आनंद का पूरा साथ दिया था। नोटबंदी के दौर में बैंक खातों में रकम जमा कर सुर्खियों में आए मायावती के भाई आनंद कुमार की संपत्ति 2007 से लेकर 2012 तक 1300 करोड़ के पार पहुंच गई थी। नोटबंदी के बाद बसपा के खाते में 104 करोड़ रुपए और आनंद के खाते में 1.43 करोड़ रुपए जमा हुए थे। उस समय मायावती को अचानक जमा हुई इस राशि को लेकर स्पष्टीकरण भी देना पड़ा था। गत वर्ष बेनामी संपत्ति के मामले में मायावती के भाई को आयकर विभाग की ओर से नोटिस भी जारी किया गया था। 

एक जानकारी के मुताबिक मायावती के भाई आनंद कुमार ने रियल इस्टेट में पैसा लगा रखा है। उनके खिलाफ पहले भी अवैध ट्रांजेक्शन के आरोप लग चुके हैं। मायावती की सरकार के समय तो वे 50 कंपनियों के मालिक थे। इस दौरान उन्होंने 760 करोड़ रुपए का कैश लेन−देन किया था। जानकारों के मुताबिक आनंद कुमार ने 2007 से लेकर 2014 तक व्यवसाय में जो रफ्तार हासिल की, वैसी देश में शायद ही किसी बिजनेसमैन ने हासिल की होगी। एक रिपोर्ट के मुताबिक 2007 से 2014 के बीच आनंद कुमार की नेटवर्थ 7.5 करोड़ रुपए से बढ़कर 1,316 करोड़ रुपए हो गई। गौर करने वाली बात यह है कि 2007 से 2012 तक उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार थी। आनंद के विवादों में घिरने के बाद मायावती ने आनंद को बसपा उपाध्यक्ष पद से हटाते हुए घोषणा की थी कि बसपा की कमान उनके परिवार के किसी सदस्य के हाथों में नहीं रहेगी।

कांग्रेस से दूरी बनाए रखने की बीएसपी नेत्री मायावती की घोषणा ने आगामी लोकसभा चुनावों में कांग्रेस−बीएसपी गठबंधन की अटकलों पर विराम लगा दिया। गौरतलब है कि इस महागठबंधन की चर्चा वैसे तो उत्तर प्रदेश के लोकसभा उप−चुनावों से शुरू हुई थी, लेकिन कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में सोनिया गांधी और मायावती की नजदीकी दर्शाती तस्वीरें मीडिया में आने के बाद इसे पंख लग गए थे। मायावती ने साफ कर दिया कि कांग्रेस के साथ वह फिलहाल कोई गठबंधन नहीं करने जा रहीं। कांग्रेस को ना कहकर बीएसपी प्रमुख मायावती तीसरे मोर्चे को मजबूी देने में जुट गई हैं। अलग−अलग राज्यों में गैर−कांग्रेसी और गैर−बीजेपी दलों से गठबंधन की शुरुआत मायावती बहुत पहले ही कर चुकी हैं। बसपा ने कर्नाटक में जेडीएस से गठबंधन करके चुनाव लड़ा। छत्तीसगढ़ में अजित जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (छत्तीसगढ़−जे) के साथ बसपा का समझौता है। मध्य प्रदेश में 22 प्रत्याशी उतारकर कांग्रेस के साथ गठबंधन की संभावनाएं भी उन्होंने पहले ही खत्म कर दी थीं।

बात उत्तर प्रदेश की कि जाये तो यहां के उप−चुनावों में बसपा−सपा की जुगलबंदी पहले ही गुल खिला चुकी है। बसपा के सहयोग से सपा तीन लोकसभा और एक विधान सभा सीट पहले ही जीत चुकी है। जबकि तीनों ही जगह कांग्रेस प्रत्याशी जमानत भी नहीं बचा पाये थे। बिहार में लालू यादव की आरजेडी और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस भी बसपा की करीबी बनी हुई है। जब मायावती ने राज्य सभा से इस्तीफा दिया था तब आरजेडी ने उनको बिहार के कोटे से राज्य सभा भेजने की पेशकश की थी। मायावती द्वारा कांग्रेस से दूरी बनाए जाने की घोषणा के बाद आरजेडी और तृणमूल कांग्रेस की प्रतिक्रिया पर गौर करना जरूरी है जिसमें इन दलों के नेताओं ने चेताया था कि कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों को अहमियत देनी होगी।

मायावती की रणनीति यह है की कि तमाम राज्यों के विधान सभा चुनावों में क्षेत्रीय दलों से समझौता किया जाये। इससे सीटों में हिस्सेदारी को लेकर ज्यादा माथापच्ची नहीं करनी पड़ती है, जबकि कांग्रेस का व्यवहार ऐसा होता है मानो वह बसपा को खैरात दे रही हो। इसी तरह से लोकसभा चुनाव में जो पार्टी जिस राज्य में मजबूत होगी, वह अपने दम पर चुनाव लड़ेगी। चुनाव बाद त्रिशंकु की स्थिति आती है तो उसमें सभी क्षेत्रीय दल साथ आकर तीसरा मोर्चा बना सकते हैं। ऐसे में कांग्रेस और बीजेपी दोनों की मजबूरी होगी कि एक−दूसरे को रोकने के लिए तीसरे मोर्चे का साथ दें।

बहरहाल मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बीजेपी के अलावा कुछ ताकत बीएसपी से निपटने में भी लगानी होगी। यहां कुछ सीटों पर समाजवादी पार्टी भी ताल ठोंक रही है। जिसके चलते कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है। बात उत्तर प्रदेश की कि जाये तो मायवती के तेवरों से उत्तर प्रदेश कांग्रेस 'कोमा' में चली गई है। बसपा−सपा के कंधे पर चढ़कर कुछ सीटें जीतने का सपना देख रही कांग्रेस समझ ही नहीं पा रही है कि वह क्या करे। इसकी वजह है कांग्रेस का यूपी में कोई जनाधार नहीं होना। यहां संगठन का काम पूरी तरह से ठप पड़ा है। कांग्रेस के नेता अपने आप को बयानों से आगे ले जाकर जमीनी लड़ाई के लिये तैयार ही नजर नहीं आ रहे हैं। मायावती के तेवरों ने राहुल गांधी तक को हिला दिया है। यही वजह है एक तरफ बीएसपी सुप्रीमो कांग्रेस को तेवर दिखा रही हैं, तो दूसरी तरफ राहुल गांधी अभी ना−उम्मीद नहीं हुए हैं। दिल्ली में एक संवाद कार्यक्रम में राहुल ने उम्मीद जताई कि आगामी लोकसभा चुनाव में बीएसपी हमारे साथ आएगी।

राहुल गांधी ने कहा कि बीएसपी के अलग होने से मध्य प्रदेश में कांग्रेस की संभावनाओं पर बहुत फर्क नहीं पड़ेगा। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि यह बेहतर होता, अगर हम गठबंधन बनाने में सफल हो पाते। उनका कहना था कि राज्यों व राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन दो अलग−अलग चीजें हैं। मायावती ने इस बारे में संकेत दिए हैं। उम्मीद है कि आम चुनावों में और पार्टियां साथ होंगी। राहुल ने माना कि बीएसपी के साथ तालमेल में उनकी पार्टी के कुछ नेताओं का रुख उतना लचीला नहीं था, जितना उनका अपना था।

- अजय कुमार

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