मतपत्रों से चुनाव कराने की मांग देश को पीछे ले जाने वाली सोच

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यह कैसी विडंबना है कि देश के 17 राजनीतिक दल चुनाव आयोग से मतपत्रों के माध्यम से चुनाव कराने की मांग करने जा रहे हैं। इसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के राजनीतिक दलों की प्रतिगामी सोच ही माना जा सकता है।

यह कैसी विडंबना है कि देश के 17 राजनीतिक दल चुनाव आयोग से मतपत्रों के माध्यम से चुनाव कराने की मांग करने जा रहे हैं। इसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के राजनीतिक दलों की प्रतिगामी सोच ही माना जा सकता है। इस सोच के पीछे जो कारण बताया जा रहा है वह है इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन से छेड़छाड़ की संभावनाएं। मजे की बात यह है कि जो दल हारता है वहीं इलेक्ट्रेनिक वोटिंग मशीन की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठाता है। यदि आशानुकूल सीटें मिल जाती हैं तो उस राज्य या स्थान पर ईवीएम की विश्वसनीयता को लेकर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं उभारा जाता है। इसका सीधा सीधा मतलब मीठा मीठा गप्प, खट्टा खट्टा थू वाली कहावत चरितार्थ होना है।

दरअसल हारने वाले दलों को देश के आम मतदाता पर विश्वास है ही नहीं। उत्तर प्रदेश में भाजपा की विजय के बाद ईवीएम को लेकर अधिक प्रश्न उठाए गए। हालात यहां तक हुए कि चुनाव आयोग को ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने वालों को खुली चुनौती देने को बाध्य होना पड़ा। परिणाम सबके सामने है। हाल ही में कर्नाटक के चुनाव परिणामों को लेकर ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान उस गर्मजोशी से नहीं उठे जो पहले उठाए जाते रहे हैं। इसी तरह से पंजाब के परिणामों पर प्रश्न नहीं उठाया गया। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि राजनीतिक दलों की ईवीएम को लेकर इतनी बोखलाहट क्यों है ? ऐसे में यह प्रश्न भी उभरता है कि कुछ राजनीतिक दलों को अभी से ही लगने लगा है कि चुनावों में उनकी पराजय निश्चित है। ऐसे में ईवीएम या चुनाव आयोग के सर पर ठीकरा अभी से फोड़ने की कवायद शुरु हो गई है। दरअसल होना तो यह चाहिए कि ईवीएम में किसी तरह की खामी है तो उसे दूर करने के उपायों पर विचार मंथन हो। उसे दूर कराने के प्रयास हों। जिस तरह से चुनाव आयोग ने अनवरत प्रयासों से मतपत्रों से मतदान की प्रकिया से आगे बढ़ते हुए निरंतर सुधार के प्रयास करते हुए ईवीएम की यात्रा तय की है और अब तो प्रायोगिक तौर पर चुनिंदा केन्द्रों पर वीवीपीएटी का प्रयोग शुरु कर दिया गया है, उसकी सराहना ही की जानी चाहिए। हमारी चुनाव प्रक्रिया और चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली का ही परिणाम है कि टीएन शेषन आज दुनिया भर में जाने जाते हैं।

दुनिया में सबसे बड़े और लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर सारी दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाए हुए हमारा देश है। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं मानी जानी चाहिए कि आज लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर दुनिया में कहीं कोई बात होती है तो सारी दुनिया के देश हिन्दुस्तान की और देखते हैं। दुनिया के देशों या संगठनों द्वारा भी कभी भी भारत के चुनावों या चुनाव प्रक्रिया या चुनाव परिणामों को लेकर किसी तरह के प्रश्न नहीं उठाए गए हैं। देश की निर्वाचन प्रक्रिया और निष्पक्ष चुनावों के लिए देशवासियों को गर्व रहा है। आज दुनिया के देशों में कहीं लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए चुनाव कराए जाते हैं तो भारत से पर्यवेक्षक बुलाए जाते हैं।

अभी इसी माह जिम्बाब्बे के चुनावों में भी हिन्दुस्तान से 8 अधिकारियों के दल को बुलाया गया। यह दूसरी बात है कि जिम्बाब्बे के चुनावों में हिंसा और परिणामों को लेकर प्रश्न उठाए गए हैं। निर्वाचन आयोग के अनवरत प्रयासों का ही परिणाम है कि आज चुनाव अधिक निष्पक्ष और प्रभावी तरीके से होने लगे हैं। एक समय था जब मतपत्रों से मतदान होता था, मतपत्र फाड़ दिए जाते थे, मतदान बूथों पर थोक के भाव कब्जे हो जाते थे, मतपेटियां कुओं में ड़ाल दी जाती थीं। दंबगों द्वारा आम मतदाताओं को मतदान केन्द्र तक ही नहीं जाने दिया जाता था। बड़े स्तर पर हिंसा होती थी। यह सब इस देश ने देखा है। मतगणना में एक-दो दिन लगना आम होता था। आज स्थितियों में बदलाव आया है। चुनाव आयोग के अथक प्रयासों से व्यवस्था में सुधार आया है। राजनीतिक दलों और दंबगों का प्रभाव कम हुआ है। ऐसे में अब वापस उसी अराजकता वाले हालात बनाने के प्रयास किया जाना कहां तक उचित हो सकता है ? 

यह कोई किसी दल के प्रति सहानुभति या पक्षपात की बात नहीं है पर वास्तविकता तो यह है कि खासतौर से 2014 के चुनाव परिणाम और उसके बाद के चुनाव परिणामों ने राजनीतिक दलों की चूलें जिस तरह से हिलाई हैं उसमें राजनीतिक दलों का मतदाता या व्यवस्था पर विश्वास नहीं रहा है। ऐसे में मतपत्रों के माध्यम से वापस पुरानी व्यवस्था लागू करने की मांग की जा रही है। एक समय था जब पुरानी व्यवस्था को नकारा जाने लगा था। अत्यंत बोझिल, खर्चीली और हिंसा से भी व्यवस्था में बदलाव करके जो मुकाम हासिल किया गया है उसमें सुधार की पूरी गुंजाइश है और चुनाव आयोग खुली सोच के साथ संवाद बनाता रहा है ऐसे में सवालिया निशान या प्रतिगामी व्यवस्था की मांग उचित नहीं मानी जा सकती। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णामूर्ति ने भी मतपत्रों से चुनाव कराने की मांग को सिरे से नकारते हुए कहा है कि ''यह कहना कि हमें दोबारा मतपत्रों का इस्तेमाल करना चाहिए, मुझे लगता है कि यह ना केवल प्रतिगामी है बल्कि संभवतः इस देश के लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।''

इतना अवश्य है कि चुनाव आयोग को भी ईवीएम मशीन से चुनाव को लेकर फैली भ्रांतियों को दूर करने के लिए आगे आना चाहिए। देश भर में गैर सरकारी संगठनों के सहयोग से जागरुकता और अवेयरनेस अभियान चलाकर आम लोगों को अवगत कराना चाहिए। किसी के भी द्वारा कहीं कोई सुधार की बात की जाती है तो उसे यदि व्यावहारिक व सकारात्मक है तो निःसंकोच स्वीकारना भी चाहिए। जिस तरह से आज मतदाता मतदान केन्द्र पर जाते समय पहचान के लिए किसी राजनीतिक दल की परची पर निर्भर नहीं है उसी तरह से मतदान प्रक्रिया में राजनीतिक दलों की पहुंच व प्रभाव को पूरी तरह से समाप्त किया जाना चाहिए। राजनीतिक दल अपने पक्ष में मतदान के लिए कैंपेन चलाएं, अपनी बात रखें पर मतदान प्रक्रिया को प्रभावित नहीं कर सकें इस दिशा में और प्रयास होने चाहिए।

-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

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