कमल और कमलनाथ का समीकरण बिगाड़ रहा है हाथी-साइकिल गठबंधन

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संतोष पाठक । May 3 2019 12:35PM

परिसीमन के बाद हुए 2009 और 2014 के दोनो ही लोकसभा चुनाव में बीजेपी के बड़े नेता वीरेंद्र कुमार खटीक ने टीकमगढ से जीत हासिल की। केन्द्रीय मंत्री वीरेंद्र सिंह इस बार यहां से हैट्रिक लगाने के लिए मैदान में है। जबकि कांग्रेस ने इस बार यहां से किरण अहिरवार को मैदान में उतारा है।

6 मई को देश के 7 राज्यों की 51 लोकसभा सीटों पर पांचवे चरण के लिए मतदान होना है। हालांकि मध्य प्रदेश के लिए तो इसे दूसरे चरण का ही मतदान कहा जा सकता है। 6 मई को मध्य प्रदेश की 7 लोकसभा सीटों पर चुनाव होना है। इन सातों सीटों पर सपा-बसपा गठबंधन ने अपने उम्मीदवार को मैदान में उतारकर बीजेपी और कांग्रेस दोनों के राजनीतिक समीकरणों को गड़बड़ा दिया है।

1. टीकमगढ (कुल वोटर- 16.47 लाख)– लोकसभा संसदीय क्षेत्र 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आया। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित यह क्षेत्र जिला बुंदेलखंड क्षेत्र का एक हिस्सा है। परिसीमन के बाद हुए 2009 और 2014 के दोनो ही लोकसभा चुनाव में बीजेपी के बड़े नेता वीरेंद्र कुमार खटीक ने यहां से जीत हासिल की। केन्द्रीय मंत्री वीरेंद्र सिंह इस बार यहां से हैट्रिक लगाने के लिए मैदान में है। जबकि कांग्रेस ने इस बार यहां से किरण अहिरवार को मैदान में उतारा है। सपा ने अपने पूर्व घोषित उम्मीदवार का टिकट काटते हुए बीजेपी छोड़कर आए पूर्व विधायक आरडी प्रजापति को चुनावी मैदान में उतारा है। लगभग 77 फीसदी ग्रामीण आबादी वाले इस इलाके में अनुसूचित जाति की संख्या 23.6 फीसदी और अनुसूचित जनजाति की 4.5 फीसदी के लगभग है। इस सीट पर 13 फीसदी के लगभग अहिरवार और यादव के अलावा खटीक भी चुनावी हार-जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 

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2. खजुराहो (कुल वोटर- 18.42 लाख)– संसदीय क्षेत्र तीन जिलों में बंटी हुई है। बुंदेलखंड के खजुराहो से शुरू होकर यह संसदीय क्षेत्र कटनी जिले के महाकौशल तक फैला हुआ है। बीजेपी ने पिछले दोनो लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी यहां से नया उम्मीदवार मैदान में उतारा है। वर्तमान सांसद के विधायक बन जाने के बाद बीजेपी की तरफ से पार्टी के प्रदेश महामंत्री वीडी शर्मा इस बार चुनावी मैदान में है। कांग्रेस ने पिछले दोनो लोकसभा चुनाव हारे हुए उम्मीदवार को इस बार बदलकर कविता सिंह को मैदान में उतारा है। सपा-बसपा गठबंधन की तरफ से बुंदेलखंड के कुख्यात दस्यू ददुआ के बेटे वीर सिंह चुनावी लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं। कुर्मी वोटरों के साथ-साथ वीर सिंह सपा-बसपा के पारंपरिक यादव-मुस्लिम और दलित को भी लुभाने की कोशिश कर रहे हैं। ओबीसी मतदाता खासतौर से कुर्मी निर्णायक भूमिका में हैं। 2.5 लाख से ज्यादा ब्राह्मण और 80 हजार के लगभग ठाकुर मतदाता भी जीत-हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं।

3. दमोह (कुल वोटर- 17.68 लाख)– संसदीय क्षेत्र में बीजेपी ने वर्तमान सांसद प्रह्लाद पटेल को फिर से अपना उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने दमोह से पूर्व विधायक प्रताप सिंह लोधी को उम्मीदवार बनाया है। इस तरह से इस सीट पर मुकाबला लोधी बनाम लोधी ही बन गया है। हालांकि बीजेपी के प्रह्लाद पटेल का यह 8 वां लोकसभा चुनाव है तो वहीं कांग्रेस के प्रताप सिंह पहली बार लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमा रहे हैं। बसपा ने यहां से बुंदेली गायक जीत्तू खरे उर्फ बादल को मैदान में उतारकर चुनावी लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है। इस सीट पर 2.6 लाख के लगभग लोधी, 2.3 लाख कुर्मी, 1.5 लाख से ज्यादा ब्राह्मण मतदाता है। 

4. सतना (कुल वोटर- 15.75 लाख)– से बीजेपी ने अपने 3 बार के लोकसभा सांसद गणेश सिंह को फिर से चुनावी मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने यहां के मतदाताओं की सबसे बड़ी आबादी ब्राह्मणों को लुभाने के लिए राजाराम त्रिपाठी को चुनावी मैदान में उतारा है। वहीं बसपा ने एक लाख से ज्यादा कुशवाहा वोटरों की संख्या को ध्यान में रखते हुए बीजेपी के इस गढ़ से अच्छेलाल कुशवाहा को उम्मीदवार बनाया है। इस सीट पर 3.5 लाख ब्राह्मण, 1.5 लाख अनुसूचित जाति, 1.3 लाख अनुसूचित जनजाति, 1.2 लाख पटेल के अलावा 1.1 लाख के लगभग कुशवाहा मतदाता है।

5. रीवा (कुल वोटर– 16.8 लाख)– विंध्य की पहचान कही जाने वाली रीवा सीट पर 2014 के चुनाव में बीजेपी के जनार्दन मिश्रा यहां से रिकॉर्ड मतो से चुनाव जीते थे। बीजेपी ने एक बार फिर से जनार्दन मिश्रा को ही चुनावी मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने इस सीट से पिछला लोकसभा और विधानसभा चुनाव हारे स्व. सुंदरलाल तिवारी के बेटे और श्रीनिवास तिवारी की तीसरी पीढ़ी के सिद्धार्थ तिवारी को मैदान में उतारकर मामले को रोचक बना दिया है। 2009 में इस सीट पर बसपा को जीत हासिल हुई थी। बसपा ने यहां से विकास पटेल को उम्मीदवार बनाया है। इस सीट से अतीत में 3 बार बसपा जीत चुकी है। जाहिर है कि बसपा ने अपना उम्मीदवार उतारकर लड़ाई को रोचक बना दिया है कि क्योंकि बसपा यहां तीसरे से ज्यादा पहले और दूसरे स्थान के लिए ही लड़ती आई है। इस सीट पर निर्णायक भूमिका में सबसे ज्यादा 29 फीसदी के लगभग ब्राह्मण मतदाता हैं। कुर्मी, पटेल और कुशवाहा जैसी ओबसी वोटरों की कुल आबादी 19 फीसदी, अनुसूचित जाति की 15 फीसदी ,अनुसूचित जनजाति 10 फीसदी और ठाकुर 8 फीसदी के लगभग है। 

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6. होशंगाबाद (कुल वोटर– 17.06 लाख)– नर्मदा नदी के किनारे स्थित होशंगाबाद गेंहू और सोयाबीन की खेती के लिए जाना जाता है। इस सीट पर 1989 से लेकर 2004 तक लगातार 6 बार बीजेपी को जीत हासिल हुई थी। 2009 में कांग्रेस ने यह सीट बीजेपी से छीन ली लेकिन 2014 में बीजेपी के उदय प्रताप सिंह ने कांग्रेस उम्मीदवार को हरा कर फिर से इस सीट को बीजेपी के झोले में डाल दिया था। बीजेपी की तरफ से एक बार फिर उदय प्रताप सिंह चुनावी मैदान में है वहीं कांग्रेस ने प्रदेश सचिव शैलेन्द्र दीवान को उम्मीदवार बनाया है। बसपा की तरफ से एमपी चौधरी चुनावी मैदान में है। इस सीट पर ओबीसी मतदाता की संख्या 30 फीसदी के लगभग है जबकि ब्राह्मण 25 फीसदी, ठाकुर 20 फीसदी, अनुसूचित जाति 6 और अनुसूचित जनजाति 5 फीसदी के लगभग है।

7. बैतूल (कुल वोटर 17.37 लाख)– ताप्ती नदी के उद्गम स्थल के रूप में मशहूर यह लोकसभा सीट अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित है। पिछले 8 लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने के कारण इसे राज्य में बीजेपी का गढ़ भी माना जाता है। पिछले 2 लोकसभा चुनावों में जीत हासिल करने वाली ज्योति ध्रूव का जाति प्रमाण निरस्त होने के कारण बीजेपी ने इस बार दुर्गा दास उइके को चुनावी मैदान में उतारा है। जबकि लगातार इस सीट पर चुनाव हार रही काग्रेस ने रामू टेकाम को मैदान में उतारा है। बसपा की ओर से अशोक भलावी मैदान में है। छिंदवाड़ा से सटे होने के कारण मुख्यमंत्री कमलनाथ बीजेपी के इस गढ़ को जीतने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं। यहां अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा 41 फीसदी के लगभग है। अनुसूचित जाति के मतदातओं की संख्या 11.2 फीसदी के लगभग है। 

- संतोष पाठक

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