मध्य प्रदेश में भाजपा को अपने कई सांसदों के टिकट काटने होंगे, वरना हार तय है

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आरएसएस ने भाजपा नेतृत्व को सलाह दी थी कि भाजपा के मौजूदा 26 सांसदों में से 16 सांसदों के टिकट काटकर हार से बचा जा सकता है। प्रदेश में कांग्रेस सरकार की नई चुनौती के कारण भाजपा को चुनाव जीतने के लिए कई सीटों पर संघर्ष करना पड़ सकता है।

2014 के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश की कुल 29 लोकसभा सीटों में से 26 सीटें जीतकर कांग्रेस को करारा झटका दिया था। मगर 2019 के आम चुनाव में भाजपा को अपनी सीटें बचाने के लिए जहां एडी-चोटी का जोर लगाना पड़ सकता है। प्रदेश में कांग्रेस सरकार की नई चुनौती के कारण भाजपा को चुनाव जीतने के लिए कई सीटों पर संघर्ष करना पड़ सकता है। हालांकि चुनाव के आते-आते जिस तरह की स्थितियां अदल-बदल रहीं हैं, उसके कारण भी चुनावी वातावरण किस ओर करवट लेगा और किस सियासी पार्टी को इसका फायदा मिल सकता है, यह अभी स्पष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता है। भाजपा को एंटी इनकम्बैंसी फैक्टर का सामना भी करना पड़ सकता है। भाजपा की कई ऐसी सीटें हैं जहां पर उसने यदि मौजूदा सांसदों को नहीं बदला तो उसे भारी हार का सामना करना पड़ सकता है। इसके लिए भाजपा ने यदि हालिया विधानसभा चुनाव में परिलक्षित हुए राजनीतिक समीकरणों को समझ कर रणनीति में बदलाव नहीं किया तो उसे मप्र से करारी हार का सामना करने को तैयार रहना पड़ सकता है।

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स्मरण रहे कि विधानसभा चुनाव में भाजपा के कई बागियों ने ऐसी लगभग 15 से 20 सीटों पर भाजपा के लिए समस्या खड़ी कर दी थी, जहां से उसका जीतना नामुमकिन नहीं था। इसका नतीजा यह रहा कि भाजपा को सरकार बनाने से हाथ धोना पड़ गया था। भाजपा के कई युवा नेता थे, जो विधानसभा चुनाव में टिकट मिलने को लेकर उम्मीद लगाए बैठे थे। किंतु प्रदेश में भाजपा जिस तरह से एक गुट विशेष के  पहली पंक्ति वाले नेताओं के कब्जे में है, उसके चलते कई युवा चेहरे टिकट पाने से वंचित रह गए थे, नतीजतन कई सीटों पर भाजपा को बागियों से दो-चार होना पड़ा और कई सीटों से हाथ धोना पड़ा।

इन सीटों पर भाजपा की डगर कठिन

मध्य प्रदेश की क्षेत्रवार लोकसभा सीटों पर यदि गौर किया जाए, तो 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सर्वाधिक चुनौती का सामना चंबल और मध्यभारत यानी ग्वालियर क्षेत्र में करना पड़ सकता है, जहां पर इस समय भाजपा के पास 3 और कांग्रेस के पास गुना की सिर्फ एक सीट है। इन क्षेत्रों में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन भाजपा के मुकाबले काफी बेहतर रहा है। इस अंचल में भिंड, मुरैना, ग्वालियर व गुना लोकसभा सीटें आती हैं। इन सीटों पर भाजपा को कांग्रेस के साथ सवर्ण संगठनों का भी सामना करना पड़ेगा।

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अब यदि भोपाल अंचल अथवा उससे लगी हुई पांच लोकसभा सीटों- भोपाल, विदिशा, राजगढ, बैतूल और होशंगाबाद की बात करें तो भाजपा को यहां भी अपनी ही पार्टी के असंतुष्टों को मनाना होगा तथा उनके अनुकूल प्रत्याशी मैदान में उतार कर ही विजयश्री की उम्मीद की जा सकती है। भोपाल अंचल की इन पांचों सीटों पर अभी भाजपा का कब्जा है और विदिशा से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज सांसद हैं, जो इस बार चुनाव लड़ने से मना कर चुकी हैं। बैतूल के सांसद ज्योति धुर्वे फर्जी जाति प्रमाण पत्र के मामले में विवादों के घेरे में हैं। उधर विदिशा से यदि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की बात मान ली जाती है तो उनके स्थान पर किसे टिकट दिया जाए, यह बहुत कुछ पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर निर्भर करता है। यदि उन्हें स्वयं इस सीट से चुनाव लड़वाया जाता है तो भाजपा जीत की सौ फीसदी उम्मीद रख सकती है।

बुंदेलखण्ड में युवा प्रत्याशी पर उलझी राजनीति

उधर मप्र के बुंदेलखंड की भाजपा के कब्जे वाली सभी चारों सीटों में भी इस आम चुनाव में कांग्रेस से कड़े मुकाबले को तैयार रहना पड़ेगा, विधानसभा चुनाव में इस अंचल में भाजपा को पसीने छूट चुके हैं। यहां तक कि इस क्षेत्र के कद्दावर नेता पूर्व वित्त मंत्री जयंत मलैया को हार का सामना करना पड़ा था। भाजपा से बगावत करके निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले रामकृष्ण कुसमरिया ने दमोह जिले की दमोह सहित पथरिया और एक अन्य विधानसभा सीट पर भाजपा को जीतने से रोकने का काम किया था। कुसमरिया इस समय कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं और आने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए मुसीबत बनेंगे। बुंदेलखंड में लोकसभा की चार सीटों क्रमशः सागर, दमोह, टीकमगढ़ और खजुराहो आती हैं और केंद्रीय राज्यमंत्री वीरेन्द्र कुमार टीकमगढ़ से सांसद हैं। इस अंचल की दमोह लोकसभा सीट से प्रह्लाद पटेल के विरूद्ध भाजपा के युवा नेता मुखर हो चुके हैं और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव इस सीट से अपनी दावेदारी पेश कर चुके हैं। इसके अलावा स्थानीय भाजपा का एक बड़ा धड़ा प्रह्लाद पटेल को क्षेत्र से बाहर का मानकर उनकी टिकट काटकर किसी नए युवा को यहां से प्रत्याशी बनाए जाने को लेकर प्रयासरत है।

प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह की सीट पर भी सस्पेंस

महाकौशल से पिछले चुनाव में भाजपा को तीन और कांग्रेस को एक सीट मिली थी, लेकिन इस बार भाजपा ने यदि कुशल रणनीति बनाकर चुनाव नहीं लड़ा और नए प्रत्याशियों को मैदान में नहीं उतारा तो उसे अपनी तीनों सीटों से भी हाथ धोना पड़ सकता है। इसकी वजह है, महाकौशल का केंद्र जबलपुर सीट ही भाजपा के लिए खतरे की घंटी बन गई है। इस सीट पर पिछली तीन बार से भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह चुनाव जीतते आ रहे हैं और अब उनके खिलाफ माहौल निर्मित हो गया है। भाजपा का युवा नेतृत्व यहां किसी नए चेहरे को प्रत्याशी बनाने की मांग कर सकता है। भाजपा युवा मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष अभिलाष पांडे को इसके लिए आगे किया जा रहा है। जबलपुर के ही एक और युवा नेता और पूर्व भाजयुमो प्रदेशाध्यक्ष तथा भाजपा से बगावत कर विधानसभा चुनाव लड़ चुके धीरज पटेरिया को मनाकर लोकसभा चुनाव लड़वाया जा सकता है। महाकौशल की मंडला एवं बालाघाट सीट से भी मौजूदा लोकसभा सांसदों फग्गनसिंह कुलस्ते एवं बोधसिंह भगत का टिकट काटे जाने का दबाव भाजपा नेतृत्व पर डाला जा रहा है। इस अंचल से जबलपुर, मंडला, बालाघाट व छिंदवाड़ा लोकसभा सीटें हैं, इनमें से छिंदवाड़ा से मुख्यमंत्री कमलनाथ चुनाव जीतते रहे हैं।

विंध्य में भी जीत आसान नहीं

विंध्य क्षेत्र की चार लोकसभा सीटों क्रमशः सतना, रीवा, सीधी और शहडोल पर अभी भाजपा का कब्जा है। लेकिन जिस तरह से मौजूदा सांसदों के खिलाफ पार्टी में असंतोष उभरता हुआ देखा जा रहा है, उससे नहीं लगता है कि भाजपा की डगर यहां आसान रहेगी। सर्वाधिक असंतोष सतना लोकसभा सीट को लेकर है, जहां से लगातार तीन बार से गणेश सिंह सांसद हैं। यहां से भाजपा का युवा धड़ा चाहता है कि पार्टी को हार से रोकने के लिए नए चेहरे को मैदान में उतारा जाए। कमोबेश ऐसे ही हालात रीवा संसदीय क्षेत्र के भी हैं, यहां बेशक पूर्व मंत्री राजेन्द्र शुक्ल की लीडरशिप के चलते विधानसभा के चुनाव में आशातीत सफलता मिली है, मगर लोकसभा चुनाव में स्थितियां एकदम उलट रहने वाली हैं। सीधी और शहडोल में भी मौजूदा सांसदों के खिलाफ माहौल देखने में आ रहा है।

मालवा को ताई से अभी भी उम्मीदें

मालवा और निमाड की आठ लोकसभा सीटों क्रमशः इंदौर, देवास, उज्जैन, मंदसौर, रतलाम, खरगौन, खंडवा और धार में 2014 के आम चुनावों में भाजपा को विजय मिली थी, मगर रतलाम से भाजपा सांसद दिलीपसिंह भूरिया के दिवंगत होने के उपरांत इस सीट पर उपचुनाव होने पर 24 नवंबर 2015 को यहां से कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया चुनाव जीत गए थे। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि इंदौर से अभी भी ताई यानी सुमित्रा महाजन की छवि बरकरार है और उन्हें अभी भी इस सीट से टिकट मिलने पर जीत की पूरी उम्मीद है। मगर रतलाम सहित खंडवा, खरगौन और मंदसौर में भाजपा की हालत ठीक समझ में नहीं आ रही है। उसे इन सीटों पर रणनीति बनाकर चुनावी मैदान में उतरना पड़ेगा।

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लब्बोलुआब यही है कि भाजपा को लोकसभा चुनाव जीतने के लिए आरएसएस की ताजा रिपोर्ट को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, वरना उसे लोकसभा चुनावों में भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। आरएसएस ने एक रिपोर्ट देकर भाजपा नेतृत्व को सलाह दी थी कि भाजपा के मौजूदा 26 सांसदों में से 16 सांसदों के टिकट काटकर हार से बचा जा सकता है। इसके उलट, मौजूदा परिदृश्य पर विचार करें तो भाजपा के 26 में से लगभग 20 ऐसे सांसद हैं जो अपने-अपने क्षेत्रों में जनता को खुश करने में नाकाम रहे हैं, कई सांसद तो ऐसे हैं, जो सिर्फ और सिर्फ भाजपा के वोटबैंक और उसके अनुकूल माहौल के कारण ही चुनाव जीतते आ रहे हैं और उनकी अपनी अहमियत कोई खास नहीं रही है। मगर इस बार स्थितियां अनुकूल नजर नहीं आती हैं।

-राजेन्द्र तिवारी

(वरिष्ठ पत्रकार, जबलपुर)

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