आमदनी अठन्नी खर्च रुपय्या की नीति पर चलने वाले राहुल गांधी सरकार को अर्थव्यवस्था पर ज्ञान ना ही दें तो अच्छा है

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ANI

सवाल राहुल गांधी की राजनीति ही नहीं बल्कि उनकी परिपक्वता पर भी है। जब लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और सहयोगी दलों के बीच सीट बंटवारे से लेकर चुनावी अभियानों की रूपरेखा बनाने जैसे मुद्दों पर दिल्ली में बैठकर रणनीति बनाने की जरूरत है तो राहुल गांधी दूसरे प्रदेशों में यात्रा निकाल रहे हैं।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा लेकर जैसे ही निकले वैसे ही उनकी पार्टी और इंडी गठबंधन से नेताओं और दलों का निकलना शुरू हो गया। राहुल गांधी के यात्रा पर निकलने से पहले ही मिलिंद देवड़ा कांग्रेस छोड़ गये। राहुल गांधी अपनी यात्रा लेकर बिहार पहुँचते उससे पहले ही नीतीश कुमार गठबंधन का साथ छोड़ गये। राहुल गांधी बंगाल पहुँचे तो ममता बनर्जी ने भी गठबंधन से अलग होने का संकेत देते हुए कांग्रेस को सुना डाला कि उसकी 40 लोकसभा सीट जीतने की भी औकात नहीं है लेकिन फिर भी अहंकार कूट-कूट कर भरा है। राहुल गांधी अभी उत्तर प्रदेश पहुँचे नहीं हैं लेकिन उससे पहले ही वरिष्ठ नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम कांग्रेस छोड़ने की तैयारी में हैं। राहुल गांधी अभी महाराष्ट्र नहीं पहुँचे हैं लेकिन उससे पहले ही प्रकाश अंबेडकर की पार्टी इंडी गठबंधन छोड़ने की तैयारी में है। राहुल गांधी अभी दिल्ली और पंजाब नहीं पहुँचे हैं लेकिन उससे पहले ही आम आदमी पार्टी भी इंडी गठबंधन से दूरी बनाने के जतन करने लगी है। सवाल उठता है कि जो नेता अपनी पार्टी और गठबंधन को जोड़े नहीं रख पा रहा है, जो नेता अपने ही नेताओं को न्याय नहीं दे पा रहा है वह दूसरों को क्या जोड़ेगा और क्या न्याय देगा? यहां एक बात और गौर करने लायक है कि एक ओर जहां राहुल गांधी भारत को जोड़ने की बात कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर उनकी पार्टी के सांसद डीके सुरेश भारत को तोड़ने की बात कर रहे हैं।

यहां सवाल राहुल गांधी की राजनीति ही नहीं बल्कि उनकी राजनीतिक परिपक्वता पर भी है। जब लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और सहयोगी दलों के बीच सीट बंटवारे से लेकर चुनावी अभियानों की रूपरेखा बनाने जैसे मुद्दों पर दिल्ली में बैठकर रणनीति बनाने की जरूरत है तो राहुल गांधी दूसरे प्रदेशों में यात्रा निकाल रहे हैं। जब संसद का बजट सत्र चल रहा है और वर्तमान लोकसभा में यह मोदी सरकार को घेरने का आखिरी और बड़ा मौका है तो राहुल गांधी दिल्ली में ना होकर दूसरे प्रदेशों में यात्रा निकाल रहे हैं। यहां सवाल यह भी उठता है कि जब कांग्रेस के पास पैसा ही नहीं आ रहा है तो राहुल गांधी पार्टी की जमापूंजी को भी क्यों उड़ाने में लगे हुए हैं? हम आपको बता दें कि वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए कांग्रेस को 452.30 करोड़ रुपये का कुल चंदा मिला लेकिन उसमें से राहुल गांधी की कन्याकुमारी से कश्मीर तक निकाली गयी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ पर 71.80 करोड़ रुपये खर्च हो गये। अब जब लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस को पैसों की जरूरत है तो राहुल गांधी अपनी यात्रा का दूसरा पार्ट निकाल रहे हैं जिस पर भारी भरकम खर्च आ रहा है। राहुल गांधी की पहली यात्रा पर औसतन प्रतिदिन 49 लाख रुपये से ज्यादा का खर्च आया था जोकि कांग्रेस पार्टी के सालाना होने वाले खर्चों का 15 प्रतिशत बैठता है। बताया जा रहा है कि इस बार भी औसतन प्रतिदिन खर्च उतना ही आ रहा है। यानि आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपय्या। इसलिए अर्थव्यवस्था पर सरकार को बड़ा-बड़ा ज्ञान देने वाले राहुल गांधी को बताना चाहिए कि वह अपनी पार्टी की आर्थिक सेहत को क्यों बिगाड़ने पर तुले हैं?

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जहां तक इंडी गठबंधन की बात है तो सबको दिख ही रहा है कि यह टूट की कगार पर पहुँच चुका है। कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने जब अपने गठबंधन का नाम इंडिया रखा था तब कुछ लोगों ने आपत्ति जताई थी लेकिन कांग्रेस ने उनको खारिज करते हुए 'जीतेगा इंडिया' स्लोगन दे दिया था। अब जब यह गठबंधन टूट की कगार पर है तो कहा जा रहा है कि इंडिया गठबंधन बिखर गया, इंडिया गठबंधन धराशायी। जरा सोचिये इंडिया नाम के साथ ऐसी उपमाएं सुन कर और पढ़ कर कितना दुख होता है। जो लोग कहते थे कि इंडिया की बजाय इंडी गठबंधन बोलने वाले लोग गोदी मीडिया हैं शायद उनको भी आज समझ आ गया होगा कि इंडी नाम क्यों बोला जा रहा था। इंडी इसलिए बोला जा रहा था क्योंकि इस गठबंधन का यह हश्र होना पहले से नजर आ रहा था, इसलिए देश के नाम के साथ टूटने या बिखरने जैसा शब्द जोड़ना पड़े इससे बचने के लिए पहले से ही इंडी गठबंधन लिखा और बोला जा रहा था। बहरहाल, इंडी गठबंधन के हश्र को देखते हुए सरकार को कोई व्यवस्था करनी चाहिए ताकि भविष्य में गठबंधन बनाने वाली पार्टियां देश के नाम पर गठबंधन नहीं बना सकें। 

-नीरज कुमार दुबे

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