लोकसभा चुनावों की टिकटों को लेकर परिवार में मची उठापटक से अखिलेश परेशान

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अजय कुमार । Jan 31 2019 4:22PM

बात कुनबे से टिकट मांगने वालों की कि जाए तो भले ही अखिलेश ने मायावती से गठबंधन की गुत्थी आसानी से सुलझा ली हो लेकिन घर में टिकट के लिए फैला घमासान लगातार सुर्खियां बटोर रहा है। इस घमासान की शुरुआत अखिलेश के लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा से हुई।

उत्तर प्रदेश में सपा−बसपा गठबंधन के बाद लोकसभा चुनाव के लिए राहत महसूस कर रहे समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव राहत की सांस नहीं ले पा रहे हैं। एक तरफ पार्टी के नेता टिकट के लिये दबाव बना रहे हैं तो मुलायम कुनबे में भी टिकट के दावेदारों की मांग बढ़ती जा रही है। उस पर चचा शिवपाल यादव के आरोप, मुलायम सिंह को बंधक बना लिया गया है। नई तरह की मुश्किलें पैदा खड़ी कर रहे हैं। बात कुनबे से टिकट मांगने वालों की कि जाए तो भले ही अखिलेश ने मायावती से गठबंधन की गुत्थी आसानी से सुलझा ली हो लेकिन घर में टिकट के लिए फैला घमासान लगातार सुर्खियां बटोर रहा है। इस घमासान की शुरुआत अखिलेश के लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा से हुई। जैसा की विदित हो, अखिलेश फिलहाल फिलहाल विधान परिषद के सदस्य हैं, लेकिन इस बार वह लोकसभा का चुनाव लड़ना चाह रहे थे। 2009 में अखिलेश कन्नौज से सांसद रह चुके हैं।

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अखिलेश ने मई 2009 के लोकसभा उप−चुनाव में फिरोजाबाद सीट से अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी एस०पी०एस० बघेल को 67,301 मतों से हराकर सफलता प्राप्त की। इसके अतिरिक्त वे कन्नौज से भी जीते थे। बाद में उन्होंने फिरोजाबाद सीट से त्यागपत्र दे दिया और कन्नौज सीट अपने पास रखी। 2012 में मुख्यमंत्री बनने के बाद कन्नौज की लोकसभा सीट से अखिलेश ने इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद हुए उप−चुनाव में उनकी पत्नी डिंपल यादव चुनाव लड़ीं और जीत भी गईं। 2014 में मोदी लहर में भी डिंपल यादव यहां से सांसदी बचाने में सफल रहीं थीं, लेकिन अभी कुछ समय पूर्व डिंपल के हवाले से खबर आई थीं कि वह चुनाव की राजनीति से दूर रहेंगी। उधर, अखिलेश की इच्छा को ध्यान में रखकर जब उनके लिए नई सीट की तलाश शुरू हुई तो सवाल उठा कि घर में उनके लिए सीट छोड़ेगा कौन?

अखिलेश को पहला नाम कन्नौज संसदीय सीट का ही सुझाया गया। इस सीट पर 2012 में हुए उप−चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव में कन्नौज से डिंपल यादव चुनाव जीती थीं। चर्चा गर्म हुई और अखिलेश कन्नौज से चुनाव लड़ेंगे। कन्नौज में पोस्टर भी लग गए, परंतु डिंपल यादव का मन तब तक बदल चुका था। सूत्रों की मानें तो डिंपल यादव ने अखिलेश से खुद के कन्नौज से चुनाव लड़ने की इच्छा जताई जिसे  अखिलेश यादव मान भी गए। इसके बाद अखिलेश के लिए नई सीट की तलाश शुरू हुई और सीट तय हुई आजमगढ़ की। आजमगढ़ से मुलायम सिंह यादव सांसद हैं। ऐसे में चर्चा उठना लाजमी थी कि क्या मुलायम चुनाव नहीं लड़ेगे और अगर लड़ेंगे तो आजमगढ़ के अलावा कहां जाएंगे ? इस पर कहा यह गया कि मुलायम सिंह यादव चुनाव तो लड़ेंगे, मगर उनके स्वास्थ्य को देखते हुए उनको उनकी परंपरागत सीट मैनपुरी से चुनाव लड़ाए जायेगा, जहां उनके लिए जीत की राह आसान रहेगी। बताते चलें कि 2014 में मुलायम आजमगढ़ के अलावा मैनपुरी से भी चुनाव जीते थे। बाद में उन्होंने मैनपुरी की सीट छोड़ दी और वहां से मुलायम परिवार के ही तेज प्रताप यादव ने उप−चुनाव लड़ा और मुलायम के विश्वास के चलते उन्हें जीत भी हासिल हुई।

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कहा जाता है कि सियासत में न दोस्ती चलती है और न दुश्मनी का दौर लम्बा चलता है। सियासत में तो परिवार को भी लड़ते−झगड़ते देखा जा सकता है। आगामी चुनाव में मैनपुरी से मुलायम को चुनाव लड़ाने के बारे में सोचा जाने लगा तो सवाल फिर खड़ा हुआ कि मैनपुरी से सांसद तेज प्रताप सिंह आखिर किस रास्ते लोकसभा पहुंचेंगे। तेज प्रताप का टिकट काटना आसान भी नहीं है। टिकट कटने का मतलब परिवार का कोई भी सदस्य बागी होकर चाचा शिवपाल के खेमे में जा सकता है।


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सूत्रों की मानें तो मैनपुरी से मुलायम को चुनाव लड़ाने के साथ यहां के सांसद तेज प्रताप यादव को जौनपुर से चुनाव लड़ने पर परिवार और पार्टी दोनों में सहमति बनाई गई। पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव तेज प्रताप को इस सीट से लड़ा कर एक साथ कई निशाना साधना चाहते हैं। दरअसल जौनपुर सीट पर पारसनाथ यादव और उमाकांत यादव दोनों टिकट के दावेदार हैं। ऐसे में अगर एक को टिकट दिया जाता है तो दूसरा खेमा नाराज हो सकता था लेकिन अगर तेज प्रताप यहां से चुनाव लड़ते हैं तो दोनों गुट उनके साथ रहते। मगर तेज प्रताप अपनी सीट बदलने के लिये आनाकानी कर रहे है। उधर, मुलायम के बाद सबसे वरिष्ठ लोकसभा सदस्य धर्मेन्द्र यादव फिलहाल अपनी पुरानी बदायूं सीट से ही चुनाव लड़ेंगे। लेकिन फिरोजबाद से शिवपाल यादव के चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद रामगोपाल यादव अपने बेटे अक्षय के लिए सुरक्षित सीट तलाशने में जुट गए हैं। साफ है बाकी टिकटों पर फैसला तभी होगा जब परिवार का मामला निपट जायेगा, जो इतनी आसानी से सुलटता नहीं दिख रहा है। समय रहते अखिलेश परिवार के सियासी चक्रव्यूह से बाहर नहीं आए तो परिवार की कलह एक बार फिर सड़क पर दिखाई पड़ सकती है।

अजय कुमार

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