Kashi-Mathura: भाजपा के एजेंडे से दूर काशी-मथुरा लेकिन दिल के है करीब

Krishna Janmabhoomi Kashi Vishwanath
Prabhasakshi
अजय कुमार । Dec 28 2022 1:07PM

बहरहाल, भले ही बीजेपी के एजेंडे में अयोध्या के अलावा काशी-मथुरा नहीं रहा हो, लेकिन इसका राजनैतिक फायदा लेने से बीजेपी कभी पीछे नहीं रही। इसी के बल पर बीजेपी ने मार्च 2022 में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में एक बार फिर उत्तर प्रदेश उत्तराखंड की सत्ता बरकरार रखी।

अयोध्या में रामलला का भव्य मंदिर निर्माण का कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है। 2023 में इसके पूरा हो जाने की भी उम्मीद लगाई जा रही है, लेकिन अभी काशी-मथुरा का विवाद बना हुआ है। उम्मीद तो यही है कि अयोध्या की तरह काशी-मथुरा मामले में भी हिन्दू पक्षकारों को न्याय मिलेगा। क्योंकि यह तीन स्थान (अयोध्या-मथुरा-काशी) हिन्दुओं के आस्था के सबसे बड़े धार्मिक प्रतीक हैं। किसी को भले ही यह धार्मिक स्थल तीन शहरों के नाम जैसे लगते हों, लेकिन रामलला, भोलेनाथ और भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों के लिए लिए यह स्थान उनका (भक्तों के लिए) सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है। यह वह तीन देव स्थान हैं, जिसको मुगल काल में काफी नुकसान पहुंचाया गया था और जिसे पाने के लिए हिन्दू समाज लम्बे समय से नहीं कई सदियों से कोर्ट से लेकर सड़क तक पर ‘जंग’ लड़ रहा था। मगर तुष्टीकरण की राजनीति के चलते उसे हर तरह से तिरस्कार और अपमान मिल रहा था। कोई भी राजनैतिक दल हिन्दुओं के आस्था के इन प्रतीकों को उन्हें वापस दिलाने के लिए कोई कोशिश तो कर ही नहीं रहा था,बल्कि अड़ंगे भी लगा रहा था। अपवाद के रूप में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) एवं भारतीय जनता पार्टी जरूर हिन्दू पक्ष के साथ खड़ी नजर आती थीं, लेकिन उसने भी अयोध्या में प्रभु रामलला के मंदिर के लिए संघर्ष करने के अलावा काशी-मथुरा से अपने आप को दूर ही रखा था। बीजेपी और आरएसएस ने काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा ईदगाह विवादों से दूरी तो बनाए रखी, लेकिन उसने अपनी इमेज इस तरह की जरूर बनाए रखी जैसे वह काशी-मथुरा की ‘लड़ाई में भी हिन्दुओं के साथ खड़ी हो। क्योंकि जब भी उसके नेताओ से काशी-मथुरा के विवाद की बात की जाती तो उसके, “सच्चाई सामने आनी चाहिए” और “लोगों को अदालत में जाने से नहीं रोका जा सकता” के बयानों को छोड़कर, संगठनात्मक स्तर पर दोनों सीधे मामलों में उलझने से परहेज करते रहे। हालाँकि, 1950 के दशक से काशी संघ परिवार की मुख्य चिंताओं में से एक रहा है। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि वास्तव में मथुरा-काशी विवाद अयोध्या-राम जन्मभूमि मुद्दे से भी पुराना है। आरएसएस ने पहली बार 1959 में अपनी अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा (एबीपीएस) बैठक में काशी विश्वनाथ पर एक प्रस्ताव पारित किया था। अयोध्या पर एक प्रस्ताव 1987 में ही आया था।

1950 के बाद से, जब आरएसएस ने प्रस्ताव पारित करना शुरू किया, काशी, मथुरा और अन्य जगहों पर मंदिर जो कथित तौर पर “मुस्लिम आक्रमणकारियों” द्वारा नष्ट किए गए थे, प्रस्तावों में तीन बार, या तो सीधे या एक तिरछी संदर्भ में 1959, 1987 और 2003 में शामिल हुए हैं। हालांकि संघ परिवार के अन्य मंचों में इन मुद्दों के कई संदर्भ हैं। 2003 के प्रस्ताव में, आरएसएस ने सरकार से अयोध्या, काशी और मथुरा में विवादित स्थलों को हिंदुओं को बहाल करने के लिए एक कानून लाने का आग्रह किया।

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बहरहाल, भले ही बीजेपी के एजेंडे में अयोध्या के अलावा काशी-मथुरा नहीं रहा हो, लेकिन इसका राजनैतिक फायदा लेने से बीजेपी कभी पीछे नहीं रही। इसी के बल पर बीजेपी ने मार्च 2022 में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में एक बार फिर उत्तर प्रदेश उत्तराखंड की सत्ता बरकरार रखी, लेकिन इतने मात्र से पार्टी स्पष्ट रूप से संतुष्ट नहीं हैं क्योंकि वह जानती है कि 2023 में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिजोरम और राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं, जो बीजेपी के दबदबे वाले क्षेत्र हैं। इसी के साथ 2024 में लोकसभा चुनावों में पार्टी को मतदाताओं के बीच अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए हर संभव प्रयास करने ही होंगे। इसलिए मथुरा-काशी से बीजेपी मुंह नहीं मोड़ सकती है। खैर, अयोध्या में राम मंदिर 2023 के अंत तक तैयार होने की संभावना है, लेकिन बीजेपी के लिए यह स्पष्ट रूप से पर्याप्त नहीं है। एक अनुभवी बीजेपी नेता ने कहा प्रत्यक्ष तौर पर तो नहीं लेकिन घुमाफिरा कर हमारा भी यही नारा था, ‘अयोध्या की तैयारी है, काशी मथुरा बाकी है, और हम इसी पर चल रहे हैं। अयोध्या तैयार होगी और हम काशी और मथुरा को आक्रमणकारियों से मुक्त करने के अपने वादे को निभाएंगे. देवताओं की हमारी त्रिमूर्ति- राम, शिव और कृष्णा के लिए समर्पित भव्य मंदिर होंगे।

पार्टी के रणनीतिकारों को लगता है कि केवल शासन-प्रशासन में अच्छा काम करके ही वह सत्ता में वापस नहीं आ रहे हैं, यह हिंदू वोटर हैं जो उन्हें चुनावों में बार-बार भारी बहुमत दे रहे हैं। बीजेपी इस तथ्य से अवगत है कि काशी और मथुरा पर मुस्लिम समुदाय की अपेक्षित प्रतिक्रियाओं से पार्टी के पक्ष में हिंदू वोटों को मजबूत करने में मदद मिल रही है। बीजेपी नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि हमने अभी तक काशी या मथुरा पर एक शब्द नहीं बोला है, और हमारे किसी भी जिम्मेदार नेता ने अब तक उन पर कोई बयान नहीं दिया है, लेकिन मुस्लिम नेताओं को देखें, वे पहले से ही तीखी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। यह स्वाभाविक रूप से हिंदुओं को इस मुद्दे पर मजबूत करेगा। उन्होंने आगे कहा कि यूपी विधानसभा चुनाव में पार्टी को सुशासन पर 200 सीटें मिलीं, लेकिन बाकी सीटें ‘बुलडोजर‘ अभियान के कारण आईं, जो जाहिर तौर पर मुस्लिम माफिया के खिलाफ लक्षित थी।

बात यहीं तक सीमित नहीं है। काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी खुल कर बोलने की बजाए संकेतों में ज्यादा कुछ कहते हैं। जेपी कहते है कि पार्टी ने हमेशा देश के सांस्कृतिक विकास की बात की है। लेकिन इन मुद्दों (काशी-मथुरा) का हल अदालतों के द्वारा और संविधान के तहत किया जाएगा। इन फैसलों को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अक्षरशः लागू करेगी।

यह और बात है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जरूर काशी-मथुरा पर बोलने से ज्यादा गुरेज नहीं करते हैं। करीब साल भर पूर्व विधान सभा चुनाव से पहले एक समाचार चौनल के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा भी था कि जिसमें दम होगा वही मथुरा को बनाएगा। हम में दम हैं हम मथुरा को बनाएंगे जैसे अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाया। उत्तर प्रदेश भाजपा ने इस बयान को अपने टिट्रर हैंडल से ट्वीट किया तो कयास लगाए जाने लगा कि भाजपा के एजेंडा में अब अयोध्या, काशी के बाद मथुरा है। साधु संत इस बयान का स्वागत करने में पीछे नहीं रहे।

बता दें कि इस समय वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि मंदिर से जुड़े विवादों से जुड़ी कई याचिकाओं पर निचली अदालतें में सुनवाई चल रही है। बीजेपी नेता ने कहा कि बुलडोजर फैक्टर ने हिंदुओं को अपने पक्ष में कर लिया और हम आधे रास्ते से काफी आगे निकल गए हैं। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि काशी और मथुरा में जाति बाधाओं को तोड़ने और हिंदू कार्ड को मजबूत करने की ताकत है। अयोध्या 2014 और 2019 में एक तुरुप का पत्ता था और अब 2024 में, काशी और मथुरा हमें सत्ता में वापस लाएगा। गौरतलब हो, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण चल रहा है। वहीं, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण हो चुका है, जबकि मथुरा का मुद्दा भी इन दिनों काफी सुर्खियों में है। मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद में जिला कोर्ट ने 24 दिसंबर को बड़ा आदेश दिया था। यहां भी वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर की तरह मस्जिद का सर्वे होगा। सीनियर डिवीजन की कोर्ट ने हिंदू सेना की याचिका पर यह आदेश दिया। रिपोर्ट 20 जनवरी को कोर्ट में पेश की जाएगी।

हिंदू पक्ष का दावा है कि शाही ईदगाह में स्वास्तिक का चिह्न, मंदिर होने के प्रतीक के साथ मस्जिद के नीचे भगवान का गर्भ गृह है। पक्षकार मनीष यादव और वकील महेंद्र प्रताप ने कहा कि शाही ईदगाह में हिंदू स्थापत्य कला के सबूत मौजूद हैं। ये वैज्ञानिक सर्वे के बाद सामने आ जाएंगे। अर्जी मथुरा के जिला अदालत में एक साल पहले दाखिल की गई थी।दाखिल किए गए वाद में हिंदू सेना ने 1968 में श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह कमेटी के बीच हुए समझौते को चुनौती दी गई है। श्रीकृष्ण जन्मस्थान और शाही ईदगाह को लेकर मथुरा कोर्ट में 12 से ज्यादा मामले चल रहे हैं। इनमें सभी में भगवान श्रीकृष्ण की 13.37 एकड़ भूमि कब्जा मुक्त करने की मांग की गई है। कोर्ट में श्रीकृष्ण विराजमान, श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास, अखिल भारत हिंदू महासभा, भगवान केशवदेव के अलावा व्यक्तिगत वाद दाखिल हैं। शाही ईदगाह मस्जिद मथुरा शहर में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर से सटी हुई है। इस स्थल को हिंदू धर्म में भगवान कृष्ण की जन्मस्थली माना जाता है। मुगल काल में औरंगजेब ने श्रीकृष्ण जन्मस्थली पर बने प्राचीन केशवनाथ मंदिर को नष्ट कर 1669-70 में शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण करा दिया था। 1935 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 13.37 एकड़ की विवादित भूमि बनारस के राजा कृष्ण दास को आवंटित कर दी थी। 1951 में श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने ये भूमि अधिग्रहीत कर ली थी। ये ट्रस्ट 1958 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और 1977 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के नाम से रजिस्टर्ड हुआ। 1968 में श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह कमेटी के बीच हुए समझौते में इस 13.37 एकड़ जमीन का स्वामित्व ट्रस्ट को मिला और ईदगाह मस्जिद का मैनेजमेंट ईदगाह कमेटी को दे दिया गया।

अब इस मामले में दाखिल याचिका में मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद का सर्वे और वीडियोग्राफी कराई जायेगी। इससे पहले वाराणसी के ज्ञानवापी सर्वे का फैसला आया था। ज्ञानवापी मामले में भी सिविल जज सीनियर डिविजन ने फैसला सुनाते हुए कोर्ट कमिश्मन नियुक्त करने का आदेश दिया था। कोर्ट कमिश्नर ने 10 दिन तक सर्वे किया था। जिसके बाद रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी थी। ज्ञानवापी में हुए सर्वे की रिपोर्ट लिक करने के मामले में हटाए गए पूर्व एडवोकेट कमिश्नर अजय मिश्रा ने 2 पन्नों की रिपोर्ट में बताया था कि मस्जिद के भीतर शेषनाग की आकृति के अलावा खंडित देव विग्रह, मंदिर का मलबा, हिंदू देवी-देवताओं और कमल की आकृति, शिलापट्ट मिले हैं।

लब्बोलुआब यह है कि जिस तरह से काशी-मथुरा विवाद सुलझाने के लिए कोर्ट में सुनवाई हो रही है, उसमें केन्द्र की मोदी और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की अप्रत्यक्ष तौर पर ही सही महत्वपूर्ण भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है। इसी के आधार पर यह कहा जा सकता है कि 2024 के आम चुनाव से पहले काशी-मथुरा का विवाद यदि सुलझा नही तो सुलझने के करीब जरूर पहुंच जायेगा, जिसका बीजेपी न केवल पूरा फायदा उठाएगी, उसके लिए लोकसभा में काशी-मथुरा तुरूप कार्ड भी साबित हो सकते हैं। यह कहने में संकोच नहीं है कि भले ही अयोध्या की तरह काशी-मथुरा बीजेपी के एजेंडे में नहीं शामिल हो, लेकिन यह दोनों देवस्थान बीजेपी वालों के दिल के काफी करीब हैं।

- अजय कुमार

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