महामुकाबले को तैयार काशी: गंगा का बेटा बनाम गांधी की बेटी!

kashi-ready-for-big-battle-gangas-son-vs-gandhis-daughter
अभिनय आकाश । Apr 15 2019 8:58PM

2014 के चुनावी नतीजे पर गौर करें तो वह एक दौर था जब वाराणसी में केसरिया रंग के आगे बाकी सारे रंग फीके पड़ गए थे। हर हर मोदी घर घर मोदी के नारे के साथ बचपन में चाय बेचने वाले नरेंद्र मोदी ने जब काशी के लोगों को यह बताया कि उन्हें मां गंगा ने बुलाया है तो बनारस के नौजवान से लेकर हर तबके के इंसान ने सभी दलों की चुनावी केतली खाली करके भाजपा का प्याला वोटों से भर दिया था।

बनारस नरेश काशी विश्वनाथ की नगरी वाराणसी सुपरहिट मुकाबले के लिए तैयार हो रही है। तमिलनाडु के 111 किसानों से लेकर बीएसएफ के जवान तेज बहादुर भी वाराणसी से चुनाव लड़ने का एलान कर चुके हैं। इसके साथ ही संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र और जस्टिस कर्णन ने भी काशी के चुनावी अखाड़े में ताल ठोकने की बात कही है। इन तमाम दावों के बीच रायबरेली के कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस महासचिव और पूर्वी यूपी की प्रभारी से किसी सीट से चुनाव लड़ने की मांग की तो प्रियंका गांधी वाड्रा ने मुस्कुरा कर कहा बनारस से क्यों नहीं? जिसके बाद से भोलेनाथ की नगरी से प्रियंका के चुनाव लड़ने की अटकलें चढ़ते चुनावी पारे के साथ बढ़ती जा रही है। एक तरफ भाजपा के चाणक्य अमित शाह अपने चंद्रगुप्त नरेंद्र मोदी की ताजपोशी को दोबारा सुनिश्चित करने के लिए बनारस में डेरा डाले बैठे थे तो दूसरी तरफ कांग्रेस इस सीट पर अपने प्रत्याशी को लेकर अभी तक आश्वस्त नजर नहीं आ रही थी। वैसे तो 26 अप्रैल को नरेंद्र मोदी वाराणसी से नामांकन दाखिल करेंगे लेकिन कांग्रेस की ओर से प्रियंका को प्रत्याशी बनाए जाने के लिए कांग्रेस की रिसर्च टीम बनारस में जातीय समीकरण साधने पर काम कर रही है। खासकर ब्राह्मण, मुस्लिम को तो शुरू से पार्टी अपना मान रही है। गौरतलब है कि पूर्वाचल की चार संसदीय सीटों पर कांग्रेस ने प्रत्याशियों की घोषणा बीते दिनों ही कर दी थी, लेकिन वाराणसी सीट पर रहस्य बना हुआ है। दरअसल, प्रियंका के चुनाव लड़ने के कयास ऐसे ही नहीं लगाए जा रहे हैं। उसके पीछे की प्रमुख वजह खुद वह हैं। वह जब से पूर्वाचल प्रभारी बनाई गई हैं तभी से वाराणसी से चुनाव लड़ने की चर्चा जोर पकड़ने लगी है। खबरो के अनुसार कांग्रेस की महासचिव व पूर्वी यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी 'न्याय यात्रा' के जरिए पीएम नरेन्द्र मोदी को घेरने की तैयारी कर रही हैं। उनकी न्याय यात्रा वाराणसी से बलिया तक जाएगी। इस दौरान वह गंगा, किसान, महिला अधिकार के मुद्दों पर विभिन्न वर्गों के लोगों से संवाद करेंगी। यह यात्रा सड़क के साथ साथ गंगा में भी होगी। इसकी तिथि अभी घोषित नहीं हुई है पर सूत्रों के अनुसार प्रियंका गांधी पीएम के नामांकन के पहले यात्रा शुरू कर सकती हैं। एक महीने पहले भी प्रियंका ने 17 मार्च से 20 मार्च तक इसी तरह की एक यात्रा प्रयागराज से वाराणसी तक की थी और 140 किलोमीटर की दूरी तय की थी, ताकि वे गंगा की स्थिति जान सकें और गंगा के सहारे कांग्रेस के लिए प्रचार कर सकें।

इस अंदाज में हुई थी पहली भिड़ंत

बात 2014 के लोकसभा चुनाव की है। भाजपा की तरफ से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे। उन्होंने एक रैली में कहा, "‘कांग्रेस अब बूढ़ी हो चली है।’’ इसके जवाब में प्रियंका ने एक रैली में जनता से पूछा, "‘क्या मैं आपको बूढ़ी दिखाई देती हूं?’’ इस पर जनता ने जमकर तालियां बजाईं और प्रियंका मुस्कुराती रहीं।

इसे भी पढ़ें: 72 सालों से भ्रष्टाचार पर सफाई दे रही है कांग्रेस, आखिर कब होगा यह खत्म

मोदी को हराना मुमकिन?

2014 के चुनावी नतीजे पर गौर करें तो वह एक दौर था जब वाराणसी में केसरिया रंग के आगे बाकी सारे रंग फीके पड़ गए थे। हर हर मोदी घर घर मोदी के नारे के साथ बचपन में चाय बेचने वाले नरेंद्र मोदी ने जब काशी के लोगों को यह बताया कि उन्हें मां गंगा ने बुलाया है तो बनारस के नौजवान से लेकर हर तबके के इंसान ने सभी दलों की चुनावी केतली खाली करके भाजपा का प्याला वोटों से भर दिया था। नरेंद्र मोदी अपने निकटम प्रतिद्वंदी अरविंद केजरीवाल से 3 लाख 71 हजार 785 वोटों से जीते थे। नरेंद्र मोदी को कुल 5 लाख 81 हजार 22 वोट हासिल हुए थे जबकि दूसरे स्थान पर रहे अरविंद केजरीवाल को 2 लाख 9 हजार 238 मत प्राप्त हुए थे। कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय 75 हजार 614 मतों के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे। तवहीं बसपा के प्रत्याशी विजय प्रकाश जायसवाल 60 हजार 579 और उस समय यूपी की सत्ता पर काबिज सपा के प्रत्याशी को 45 हजार 291 मतों से ही संतोष करना पड़ा था। ऐसे में मोदी विरोधी मतों के अंतर को जोड़ दें तो भी हार का अंतर 1 लाख 90 हजार 300 होता है। 2014 में नरेंद्र मोदी बनारस की जनता के बीच पहली बार उतरे थे लेकिन पीएम बनने के बाद उन्होंने लगातार काशी की यात्रा की है और जिस तरह से पिछले पांच सालों में वाराणसी में विकास के जो काम किया है उसे नजरंदाज किया जाना मुमकिन नहीं लगता। 

महागठबंधन के दांव पर नजर

बीते 5 सालों में गंगा में काफी पानी बह गया है और सवाल इस बात का है कि क्या काशी फिर से 'नमो' के लिए तैयार है या फिर किसी और विकल्प में तलाश में है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में सपा और बसपा के गठबंधन ने वोटों के गणित को बदल दिया। दोनों के संयुक्त वोटबैंक ने कई सीटों के समीकरण बदल दिए हैं। वाराणसी भी इससे अछूती नहीं है। ऐसे में सपा-बसपा-रालोद की तिकड़ी अमेठी, रायबरेली की तर्ज पर बनारस की सीट छोड़ेगी। अंदर खाने यह चर्चा जोरों पर है कि मोदी विरोधी वोटों को एकजुट कर दिया जाए और मैदान में प्रियंका जैसा मजबूत चेहरा हो तो काशी का किला फतह किया जा सकता है। 

इसे भी पढ़ें: चुनाव के समय मतदाता को जागरूक करने में लगे राजनैतिक दल

क्या कहता है जाति का गणित

वाराणसी के जातिगत समीकरण को देखें तो बनिया मतदाता करीब 3.25 लाख हैं, वहीं ब्राह्मण मतदाता 2.5 लाख के करीब है। यादवों की संख्या 1.5 लाख है। वाराणसी में मुस्लिमों की संख्या 3 लाख के आसपास है। इसके बाद भूमिहार 1 लाख 25 हज़ार, राजपूत 1 लाख, पटेल 2 लाख, चौरसिया 80 हज़ार, दलित 80 हज़ार और अन्य पिछड़ी जातियां 70 हज़ार हैं। 

प्रियंका चुनाव लडेंगी या नहीं, कांग्रेस पार्टी प्रियंका को चुनाव लड़ाएगी या नहीं वक्त के साथ-साथ इसकी तस्वीर साफ हो जाएगी। लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा की प्रियंका कांटो भरी राह पर चलकर कमल का फूल उखाड़ने का जोखिम लेती हैं या नहीं?

- अभिनय आकाश

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़