72 सालों से भ्रष्टाचार पर सफाई दे रही है कांग्रेस, आखिर कब होगा यह खत्म

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ऐसे में भ्रष्टाचार का भूत कांग्रेस का आसानी से पीछा नहीं छोड़ेगा। कांग्रेस को ऐसे मामलों में पादर्शिता और साफ−सुथरी नीति का परिचय देते हुए यह घोषणा करनी चाहिए थी कि जिन पर आरोप लगे हैं, जब तो वो बरी नहीं हो जाते तब तक पार्टी से निलम्बित रहेंगे।

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त खा चुकी कांग्रेस ने इस हार से कोई सबक नहीं सीखा। इस चुनाव में प्रमुख मुद्दा कांग्रेस के नेताओं पर लगने वाले भ्रष्टाचार के आरोप थे। इस चुनाव में हार के बाद भी कांग्रेस ने भूल सुधार करने के बजाए इस मुद्दे पर पर्दादारी करने का ही प्रयास किया। मीडिया और सोशल मीडिया की मुखरता के इस दौर में जहां बाल की खाल तक निकाली जाती है, वहां कांग्रेस के लिए ऐसे मामलों से पीछा छुड़ाना आसान नहीं रहा। 

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इसके बावजूद कांग्रेस ने भ्रष्टाचार के मामलों पर कोई स्पष्ट और ठोस निर्णय नहीं किया। नया मामला मघ्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के करीबियों का है। आयकर विभाग ने छापा मार कर भारी तादाद में टैक्स चोरी पकड़ी है। इस पर भी कांग्रेस कानून को काम करने देने के बजाए बचाव और आरोपों पर उतर आई। आयकर विभाग के साथ आई केन्द्रीय रिर्जव पुलिस बल की टीम के स्थानीय पुलिस की तकरार हो गई। स्थानीय पुलिस अघोषित तौर पर आयकर र्कारवाई का विरोध कर रही थी। पुलिस की कमान राज्य सरकार के हाथों में होती है, इसलिए राज्य की कांग्रेस सरकार पर बाधा पैदा करने का आरोप लगना स्वभाविक है। 

यह संभव है कि चुनाव के दौरान ऐसी र्कारवाई राजनीतिक मंश को दर्शती हो। चुनाव आयोग ने भी प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग को संयम रखकर कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। सवाल यह उठता है कि भ्रष्टाचार के विरूद्ध होने वाली ऐसी र्कारवाईयों का कांग्रेस विरोध क्यों कर रही है। जबकि ऐसे मामलों में कांग्रेस पूर्व में ही बुरी तरह घिरी रही है। आयकर विभाग या प्रवर्तन निदेशालय की र्कारवाई यदि गलत है तो इसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है। वैसे भी आयकर या प्रवर्तन निदेशालय मनगढ़ंत सबूत बना कर र्कारवाई नहीं कर सकता। आयकर की कार्रवाई में सीधे गिरफ्तारी नहीं की जाती। 

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सवाल यह है कि कांग्रेस को देश की अदालतों पर भरोसा क्यों नहीं है। यदि र्कारवाई द्वेषतावश की गई है तो अदालत दूध का दूध पानी का पानी कर देगी। इसके बाद कांग्रेस यह कहने की हकदार है कि केन्द्र की भाजपा सरकार ने राजनीतिक शत्रुता से छापे डलवाए। मतदाताओं में भी कांग्रेस के निर्दोश होने का गंभीर संदेश जाएगा। सिर्फ कार्रवाई होते ही आरोप लगाने से तो यही संदेश जाएगा कि कांग्रेस में भ्रष्टाचार के प्रति अभी लचीला रुख अपना रखा है। प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग पी चिदम्बरन, राबर्ट वाड्रा सहित कई कांग्रेसी नेताओं और उनके करीबियों पर कार्रवाई कर चुका है। अभी तक अदालत ने एक भी मामले में किसी निर्दोष नहीं माना है। इन सभी पर मनी लॉडि्रंग और जमीनों में हेराफेरी के गंभीर आरोप लगे हुए हैं।

ऐसे में भ्रष्टाचार का भूत कांग्रेस का आसानी से पीछा नहीं छोड़ेगा। कांग्रेस को ऐसे मामलों में पादर्शिता और साफ−सुथरी नीति का परिचय देते हुए यह घोषणा करनी चाहिए थी कि जिन पर आरोप लगे हैं, जब तो वो बरी नहीं हो जाते तब तक पार्टी से निलम्बित रहेंगे। इससे कांग्रेस के दृढ़ निश्चय का परिचय मिलता। कांग्रेस यह भूल गई कि राष्ट्रीय स्तर की पार्टी का वजूद चुनिंदा नेताओं के भरोसे नहीं है, चाहे वे चिदंबरम हों या कमलनाथ के करीबी। कांग्रेस आरोपों से बरी होने तक इनकी सक्रियता पर रोक लगा देती तो देष के मतदाताओं में यह संदेश जाता कि कांग्रेस ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरा टॉलरेन्स की नीति अपना रखी है। कांग्रेस किसी भी रूप में किसी तरह के भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं करेगी। इसके विपरीत ऐसे मामलों का विरोध करने से कांग्रेस की वही पुरानी छवि और बिगड़ेगी, जिसे भाजपा नेता भुनाते रहे हैं। जिसकी वजह से कांग्रेस को गत लोकसभा चुनाव में भारी पराजय का सामना करना पड़ा। भ्रष्टाचार के मामलों में कोई स्पष्ट नीति नहीं होकर ढुलमुल रवैया अपनाए जाने की कीमत ही कांग्रेस को चुकानी पड़ रही है। कांग्रेस कभी यह घोषणा नहीं कर सकी कि उसके शासित राज्यों में में भ्रष्टाचार पूरी तरह समाप्त हो चुका है। राज्य तो दूर रहा बल्कि कांग्रेस यह दावा तक नहीं कर सकी कि उसके राज्यों कोई एक भी विभाग पूरी तरह भ्रष्टाचार से मुक्त हो चुका है। भ्रष्टाचार के इस संक्रामक रोग ने कांग्रेस की बलिष्ठ देह को जीर्ण−शीर्ण कर दिया है। कांग्रेस इस बुराई से लड़ने के बजाए अभी भी इसके बचाव के रास्ते ही खोज रही है।

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यह निश्चित है कि जब तक कांग्रेस भ्रष्टाचार के मुद्दों पर बचाव करती रहेगी, उसकी छवि पहले जैसी ही बनी रहेगी। यही वजह है कि कांग्रेस ने न सिर्फ केंद्र में सत्ता गंवाई बल्कि चुनिंदा राज्यों में सीमिट कर रह गई। आम लोगों को प्रभावित करने वाले ऐसे मुद्दों से कांग्रेस ने सबक सीखा होता तो सत्ता गंवाने की नौबत नहीं आती। भाजपा तब तक कांग्रेस पर हावी होती रहेगी जब तक कांग्रेस फ्रन्ट फुट पर आकर खुद ही इसके खिलाफ मोर्चा नहीं खोलेगी। कांग्रेस का बचाव ही उसकी कमजोरी बन गई है। भाजपा इसी का फायदा उठा रही है। 

आश्चर्य की बात तो यह है कि कांग्रेस भी भाजपा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा चुकी है। राजस्थान में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया था किन्तु सत्ता में आने के बाद एक भी बड़े भाजपा नेता के विरूद्ध कार्रवाई नहीं हो सकी। जबकि राज्यों में भ्रष्टाचार निरोधक विभाग कार्यरत हैं। इसके बावजूद कांग्रेस ने कोई कार्रवाई नहीं की। तत्कालीन भाजपा राज्य सरकारों पर लगाए गए आरोप हवा हो गए। कांग्रेस एक भी पूर्व मुख्यमंत्री और बड़े भाजपा नेता को जेल नहीं भेज सकी। ऐसे कांग्रेस पर सवाल उठना लाजिमी है कि उन आरोपों का क्या हुआ जो सत्ता में आने के लिए लगाए गए थे। यदि कांग्रेस भी केंद्र सरकार की तरह आरोपों के सबूत पेश कर पाती तो बचाव के लिए तरह−तरह की गलियां खोजने की नौबत नहीं आती। यह निश्चित है जब तक कांग्रेस अपने नेताओं और उनके करीबियों पर लगे आरोपों पर सफाई देती रहेगी, तब ऐसे आरोप उसकी छवि से चिपके रहेंगे। 

- योगेंद्र योगी

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