Modi के Mission Apple से कश्मीर के लोगों को हुआ कितना फायदा ?

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पिछले तीन दशकों में कश्मीर ने आतंकवाद का दंश झेला इसके बावजूद यहाँ बागवानी उद्योग ने लगातार प्रगति की और यह प्रगति पूरी तरह सेब की बदौलत ही हुई। सेब का व्यापार कश्मीर को सालाना 1200 करोड़ रुपये की आय कराता है।

देश ही नहीं दुनिया भर में अपने सेब की मिठास के लिए मशहूर कश्मीर में लगभग 18 लाख टन सेब की पैदावार होती है और अगर भारत में सेब की कुल पैदावार के मुकाबले अकेले कश्मीर में सेब की पैदावार को देखें तो यह पूरे देश की कुल पैदावार का 75 प्रतिशत बैठता है। इस बार तो कश्मीर घाटी में सेब की बंपर पैदावार हुई है और पिछले वर्ष की तुलना में यह 10 फीसदी ज्यादा है। जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ पर्यटन के अलावा सेब भी है। पिछले तीन दशकों में कश्मीर ने आतंकवाद का दंश झेला इसके बावजूद यहाँ बागवानी उद्योग ने लगातार प्रगति की और यह प्रगति पूरी तरह सेब की बदौलत ही हुई। सेब का व्यापार कश्मीर को सालाना 1200 करोड़ रुपये की आय कराता है। हालाँकि इस वर्ष 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 हटाये जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में जो हालात बने उससे सेब उत्पादकों की आय पर असर तो पड़ा ही साथ ही मौसम की मार ने भी सेब कारोबार पर बुरा असर डाला है।

इस धरती पर जन्नत के खिताब से नवाजे जा चुके कश्मीर में जवाहर सुरंग से लेकर उत्तरी कश्मीर में एलओसी से सटे कुपवाड़ा तक चले जाइये, आपको सिर्फ सेबों के बाग ही बाग दिखेंगे। कश्मीर में सोपोर, शोपियां, बारामुला, पुलवामा और कुलगाम सेब उत्पादन के सबसे बड़े केंद्र माने जाते हैं। वैसे तो अगस्त माह से ही कश्मीर से सेब देश की अन्य मंडियों में पहुँचना शुरू हो जाता है लेकिन इस बार पहले तो कई दिनों तक सब कुछ बंद रहा फिर उसके बाद बाहरी श्रमिक घाटी से चले गये जिससे पेड़ों से सेब पूरी तरह उतारा नहीं जा सका और जो सेब पेड़ों से उतर कर मंडियों के लिए रवाना हुआ तो उसकी राह में आतंकवादी खड़े हो गये...सेब लेने के लिए दूसरे राज्यों से आने वाले व्यापारियों ने मुँह मोड़ लिया तो सेब उत्पादकों के चेहरे पर चिंता की लकीरें आ गईं। रसदार और खुशबूदार सेब की मुश्किलें यहीं कम नहीं हुईं, बर्फबारी ने पेड़ों पर लदी सेब की फसल को भी बड़ा नुकसान पहुँचाया जिस कारण सेब उत्पादकों ने सरकार से मदद की गुहार लगायी जिसको देखते हुए मोदी सरकार ने मिशन APPLE शुरू किया।

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इस मिशन के तहत केंद्र सरकार ने किसानों से सीधे सेब खरीदने का काम नैफेड को सौंप दिया और सेब उत्पादकों को पैसे सीधे उनके खाते में मिलने लगे। नैफेड ने सेबों की किस्मों की ग्रेडिंग तय कर उसकी कीमत तय करने का काम शुरू किया। बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत नैफेड ने उत्पादकों को उचित कीमत देकर अब तक 8500 मीट्रिक टन से ज्यादा सेब खरीद लिया है। हालांकि बताया जा रहा है कि अभी भी 50 प्रतिशत सेब की फसल बागानों में मौजूद है और इसकी भी जल्द ही खरीद की जायेगी। सरकार का कहना है कि सेब उत्पादक इस योजना का लाभ 15 फरवरी, 2020 तक उठा सकते हैं। फिलहाल तो बर्फबारी से परेशान सेब उत्पादक सरकार से और मदद की आस लगाये बैठे हैं।

-नीरज कुमार दुबे

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