चौथे चरण के चुनाव में मध्य प्रदेश में होगी कमल बनाम कमलनाथ की लड़ाई

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संतोष पाठक । Apr 25 2019 3:23PM

लोकसभा सीट को महाकौशल क्षेत्र की राजनीति का केन्द्र माना जाता है। जबलपुर को मध्य प्रदेश की संस्कारधानी भी कहा जाता है। किसी जमाने में कांग्रेस का मजबूत किला रहा यह क्षेत्र अब बीजेपी का गढ़ माना जाता है क्योंकि 1996 से यहां लगातार बीजेपी ही जीत रही है।

29 अप्रैल से लोकसभा चुनाव की महाभारत शुरु होने जा रही है। लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में 29 अप्रैल को मध्य प्रदेश के जिन 6 सीटों पर चुनाव होने जा रहे हैं उनमें प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ की सीट छिंदवाड़ा भी शामिल है जहां से कमलनाथ 9 बार चुनाव जीते हैं। इस बार कमलनाथ यहीं से विधानसभा का उपचुनाव लड़ रहे हैं और लोकसभा के मैदान में उन्होने अपने बेटे नकुल नाथ को उतारा है। इसलिए यह कहा जा रहा है कि भले ही प्रदेश के मुखिया के तौर पर मध्य प्रदेश की सभी सीटों पर जीत हासिल करने की जिम्मेदारी राहुल गांधी ने उन्हे दी हो लेकिन 29 अप्रैल के चुनाव में मुख्यमंत्री कमलनाथ की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है।   

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1. छिंदवाड़ा (कुल वोटर- 15.14 लाख)– को किसी जमाने में शेरों की आबादी ज्यादा होने के कारण सिन्हवाड़ा कहा जाता था। छिंद (ताड़) के पेड़ो की भरमार के कारण इसका नाम छिंदवाड़ा पड़ा। यहां से 9 बार लोकसभा चुनाव जीतकर रिकॉर्ड बनाने वाले कमलनाथ अब राज्य के मुख्यमंत्री बन चुके हैं। इसलिए उन्होने अपनी विरासत अपने बेटे नकुल नाथ को सौंपते हुए इस बार कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर छिंदवाड़ा से लोकसभा चुनाव के मैदान में उतारा है। कमलनाथ स्वयं यहां से इस बार विधानसभा का उपचुनाव लड़ रहे हैं। दिग्विजय सिंह समेत कई कांग्रेसी नेता पार्टी के इस गढ़ से चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन आखिरकार कमलनाथ को अपने बेटे को उतारने में कामयाबी मिल ही गई। छिंदवाड़ा कांग्रेस का कितना मजबूत गढ़ है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आपातकाल के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में देशभर में चली जनता पार्टी की आंधी के बावजूद कांग्रेस को यहां जीत हासिल हुई थी। इस सीट से केवल एक बार 1997 में हुए उपचुनाव में कमलनाथ को बीजेपी के दिग्गज नेता सुंदरलाल पटवा से हार का सामना करना पड़ा था। बीजेपी ने इस सीट से पूर्व विधायक नाथन शाह को अपना उम्मीदवार बनाया है। छिंदवाड़ा में 34 फीसदी से ज्यादा आदिवासी मतदाताओं को साधने के लिए ही बीजेपी ने आदिवासी नेता शाह को चुनावी मैदान में उतारा है।  

2. सीधी (कुल वोटर- 18.45 लाख)– विंध्य क्षेत्र की इस लोकसभा सीट पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है। इस सीट पर कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद अब अजय सिंह के लिए यह लोकसभा सीट राजनीतिक अस्तित्व को बचाने की लड़ाई बन गया है। पिछले दो लोकसभा चुनाव लगातार जीतने वाली बीजेपी ने हैट्रिक की आस में यहां से अपने वर्तमान सांसद रीति पाठक को फिर से चुनावी मैदान में उतारा है। 87 फीसदी ग्रामीण आबादी वाले इस संसदीय क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति वर्ग के मतदाताओं की संख्या 32 फीसदी के लगभग है वहीं अनुसूचित जाति के मतदाता 12 फीसदी के लगभग है।

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3. शहडोल (कुल वोटर- 16.56 लाख)– संसदीय क्षेत्र अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित है। आदिवासी बाहुल्य इस सीट पर चुनावी मुकाबला उन दो महिला उम्मीदवारों के बीच ही है, जिन्होने इस बार अपनी मूल पार्टी का साथ छोड़ दिया है। 2014 के चुनाव में यहां से बीजपी के दलपत सिंह परस्ते जीते थे लेकिन उनके निधन के कारण यहां 2016 में उपचुनाव करवाना पड़ा। इस उपचुनाव में भी बीजेपी को ही जीत हासिल हुई और ज्ञान सिंह यहां से तीसरी बार सासंद चुने गए। लेकिन इस बार बीजेपी ने ज्ञान सिंह का टिकट काटते हुए हिमाद्री सिंह को उम्मीदवार बनाया है । कांग्रेसी परिवार से ताल्लुक रखने वाली ये वही हिमाद्री सिंह है जिसे ज्ञान सिंह ने 2016 के उपचुनाव में हरा दिया था। कांग्रेस ने बीजेपी का साथ छोड़कर आई प्रमिला सिंह को यहां से अपना उम्मीदवार बनाया है। दोनों ही उम्मीदवारों को अपने-अपने दलों में भीतरघात और विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है। 21 फीसदी के लगभग शहरी आबादी वाले इस संसदीय क्षेत्र में 44.76 फीसदी अनुसूचित जनजाति और 9.35 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति की है।

4. जबलपुर (कुल वोटर- 18.19 लाख)– लोकसभा सीट को महाकौशल क्षेत्र की राजनीति का केन्द्र माना जाता है। जबलपुर को मध्य प्रदेश की संस्कारधानी भी कहा जाता है। किसी जमाने में कांग्रेस का मजबूत किला रहा यह क्षेत्र अब बीजेपी का गढ़ माना जाता है क्योंकि 1996 से यहां लगातार बीजेपी ही जीत रही है। बीजेपी ने यहां से अपने प्रदेश अध्यक्ष और 2004 से लगातार चुनाव जीत रहे राकेश सिंह को फिर से चुनावी मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने अपने राज्यसभा सदस्य और दिग्गज नेता विवेक तन्खा को राकेश सिंह के खिलाफ उतारकर लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है। जबलपुर में 14.3 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति और 15.04 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति के हैं।

5. मंडला (कुल वोटर- 19.51 लाख)– लोकसभा सीट अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित है। आदिवासी बाहुल्य इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है। बीजेपी ने यहां से वर्तमान सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते को मैदान में उतारा है तो वहीं कांग्रेस की तरफ से कमल मरावी चुनाव मैदान में है। आदिवासियों के बीच लोकप्रिय नेता गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हीरासिंह मरकाम के मंडला से चुनावी मैदान में उतरने के बाद यहां चुनावी लड़ाई काफी दिलचस्प हो गई है। लगभग 91 फीसदी ग्रामीण आबादी वाले इस क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति के 52.3 फीसदी और अनुसूचित जाति के 7.67 फीसदी मतदाता है।

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6. बालाघाट (कुल वोटर- 17.67 लाख)– सीट से बीजेपी ने वर्तमान सांसद बोध सिंह भगत का टिकट काटकर पूर्व मंत्री ढ़ाल सिंह बिसेन को मैदान में उतारा है। बोध सिंह भगत की नाराजगी बीजेपी को भारी पड़ सकती है। कांग्रेस ने यहां से पूर्व विधायक मधु भगत को टिकट दिया है। बसपा ने इस सीट से आदिवासी उम्मीदवार को उतार कर मुकाबले को रोचक बना दिया है। वैसे यहां मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही माना जा रहा है। दिलचस्प तथ्य तो यह है कि दोनों ही मुख्य राजनीतिक दलों के उम्मीदवार ढाल सिंह बिसेन और मधु भगत विधानसभा चुनाव में हार का सामना कर चुके हैं। जातिगत समीकरणों की बात करे तो इस सीट पर एससी-एसटी दोनों वर्ग के कुल मिलाकर 55.7 फीसदी के लगभग मतदाता है। वहीं सामान्य श्रेणी के मतदाताओं की संख्या 13.5 फीसदी और मुस्लिम 8.3 फीसदी के लगभग है। पवार, लोधी, आदिवासी, मरारी और गोवारी मतदाता यहां जीत-हार में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

- संतोष पाठक

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