मोदी को कहां जनता की परवाह, वह तो सरकार का खजाना भरने में लगे हैं

modi is not thinking about poor people
विजय शर्मा । May 7 2018 12:18PM

भारत में पैट्रोल और डीजल के दाम अपने चरम पर हैं और पूरे देश की जनता इससे त्रस्त है लेकिन सरकार अपने ही मद में मस्त है। पेट्रोल व डीजल की कीमतों में लगातार हो रही वृद्धि से युवा वर्ग के साथ−साथ आमजन परेशान है।

भारत में पैट्रोल और डीजल के दाम अपने चरम पर हैं और पूरे देश की जनता इससे त्रस्त है लेकिन सरकार अपने ही मद में मस्त है। पेट्रोल व डीजल की कीमतों में लगातार हो रही वृद्धि से युवा वर्ग के साथ−साथ आमजन परेशान है। पेट्रोल, डीजल की इस बढ़ती महंगाई ने आम लोगों का जीवन त्रस्त कर रखा है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में आज भी पैट्रोल और डीजल की कीमतें मोदी सरकार बनने से पहले यानि 2013 के मुकाबले 40 प्रतिशत कम हैं। एक समय तो ऐसा भी आया कि जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पैट्रोल और डीजल की कीमतें 65 प्रतिशत से अधिक गिर गई थीं लेकिन शायद ही भारतीय उपभोक्ताओं का इसका अहसास हुआ हो क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में ज्यों−ज्यों पैट्रोल और डीजल की कीमतें कम होती थीं मोदी सरकार चुपके से इन पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ा देती थी ताकि सारा मुनाफा तेल कम्पनियों और सरकारी खजाने में जाए।

मोदी सरकार बनने के बाद करीब 9 बार केन्द्रीय एक्साइज डयूटी बढ़ाई गई है, जिसके कारण आज मुम्बई में पैट्रोल 82 रूपए से अधिक और डीजल 71 रूपए से अधिक के भाव में बिक रहा है और इसमें कोई हैरत नहीं होनी चाहिए कि आने वाले दिनों में यह 100 रूपए के भाव मिले। दरअसल मोदी सरकार ने बड़ी चतुराई पहले पैट्रोल−डीजल पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई और बाद में तेल के दाम प्रतिदिन तय करने का नियम बना दिया जिससे तेल की कीमतों में लगभग हर रोज इजाफा होता गया और आज हालत यह हो गई है कि आम आदमी पैट्रोल−डीजल के नाम पर खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है। पैट्रोल−डीजल के दामों में पहले सरकार का नियंत्रण रहता था लेकिन 2010 से सरकार ने इसे नियंत्रण मुक्त करते हुए बाजार आधारित मूल्य पर बेचने का ऐलान किया था लेकिन वास्तविक नियंत्रण आज भी सरकार के पास है क्योंकि तीनों प्रमुख तेल उत्पादक कम्पनियां सरकारी हैं।

गत सोमवार को नई दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 74.63 रुपए प्रति लीटर थी, जबकि डीजल 65.93 रुपए प्रति लीटर के स्तर पर था और यह रेट 27 अप्रैल से है। कहा जा रहा है कि कर्नाटक चुनावों के चलते सरकार ने दाम स्थिर रखने का मौखिक निर्देश दिया है। अब पैट्रोल और डीजल का अंतर घटकर 8.70 रुपए प्रति लीटर रह गया है जबकि दो वर्ष पहले यह अंतर 13.92 रुपए प्रति लीटर था। पेट्रोल और डीजल की कीमतों में इतना कम अंतर पहले कभी नहीं रहा है। ऐसा इसलिए किया गया है ताकि लोगों का झुकाव सिर्फ डीजल की गाडि़यों की तरफ ही न हो। एक दशक पहले पेट्रोल व डीजल की कीमतों में 20 रुपए का अंतर था। पहले सरकार डीजल पर अधिक सब्सिडी देती थी लेकिन अक्टूबर 2014 में सरकार ने डीजल को सरकारी नियंत्रण से बाहर कर कंपनियों को लागत आधार पर इसकी बाजार कीमत तय करने का अधिकार दे दिया है जिससे कीमत का अंतर तेजी से घट रहा है।

तेल कंपनियां अब रोजाना पेट्रोल−डीजल की कीमतों का निर्धारण करती हैं। 14 सितंबर 2013 को जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल 110 डालर प्रति बैरल था तब रेट 76.06 रुपये प्रतिलीटर हो गया था। अब जबकि क्रूड ऑयल करीब 75 डालर है तब पैट्रोल की मुम्बई में कीमत 82 रूपए से अधिक हो गई है। डीजल का रेट 71.20 रुपये प्रति लीटर है जो अब तक की सबसे ज्यादा कीमत है। लेकिन मोदी सरकार के दौर में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में यह मूल्य गिरकर 50 डॉलर तक पहुँच चुका था। इस हिसाब से पेट्रोल 50 रूपए व डीजल 40 रूपए में मिलना चाहिए था। मोदी सरकार द्वारा पेट्रोल पर एक्साईज ड्यूटी 9.48 रूपए से बढ़ाकर 21.48 एवं डीजल पर 3.56 से बढ़ाकर 17.33 रूपए कर दी गयी थी। 2014−2016 के बीच वित्त मंत्री द्वार पूरे 9 बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई जा चुकी है, वहीं टैक्स में कटौती सिर्फ एक बार अक्टूबर में की गई थी और वह भी सिर्फ दो रुपये की और ऊपर से एक लीटर पर करीब 8 रूपए का रोड़ एंड इंफ्रास्ट्रक्चर सैस लगा दिया गया है, जिसने आम उपभोक्ता की कमर तोड़ दी है। हालत यह है कि भारत में पैट्रोल और डीजल के दाम अपने पड़ोसी देशों- नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, चीन, भूटान से भी अधिक है।

2013 के मुकाबले अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें बहुत कम हैं लेकिन भारत में पेट्रोल−डीजल 2013 के भाव बिक रहा है। सितंबर 2013 में अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में कच्चे तेल की कीमत 109.45 डॉलर प्रति बैरल थी। तब पेट्रोल के दाम दिल्ली में 76.06 पैसे प्रति लीटर, कोलकाता में 83.63 पैसे प्रति लीटर, मुंबई में 83.62 पैसे हो गए थे और भारतीय जनता पार्टी ने देशभर में धरना−प्रदर्शन करके खूब पुतले फूंके थे और कई बार लोकसभा तथा राज्यसभा की कार्यवाही बाधित की थी। पैट्रोल और डीजल मंहगे दामों पर बेचने और बजट में मध्यम वर्ग को कोई राहत न मिलने से आम जनता में मोदी सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही है। बजट की प्रतिक्रिया शेयर बाजार में अभी भी दिखाई दे रही है जिसमें शेयर कारोबार करने वालों के लाखों करोड़ रोज डूब रहे हैं और बजट के दिन घोषित राजस्थान के उपचुनाव परिणामों ने सरकार को आइना दिखाकर यह कहावत चरितार्थ की है कि थोथा चना बाजे घना। आम जनता विपक्षी पार्टियों के रवैये से भी नाराज है क्योंकि पूरा विपक्ष इसे मुद्दा बनाने में विफल रहा है।

भारत में पड़ोसी देशों के मुकाबले पेट्रोल और डीजल के दाम सबसे अधिक हैं क्योंकि मोदी सरकार मानती है कि भारत अपने सभी पड़ोसी देशों से अधिक विकसित है इसलिए सरकार को अधिक वसूली का अधिकार है। विपक्ष को चारों खाने चित करने और जनता के रोष से बचने के लिए मोदी सरकार ने पिछले कुछ दिनों से प्रतिदिन पेट्रोल और डीजल के रेट तय करने शुरू किये हैं और इसी दौरान पेट्रोल और डीजल के भाव 15 रूपए प्रति लीटर तक बढ़ गये और किसी को कानों कान खबर भी नहीं हुई। अब जब आम आम जनता पर इसका असर दिखना शुरू हुआ है तब तक तो लाखों करोड़ रूपए से वारे न्यारे हो चुके हैं। सरकार का दावा है कि पेट्रोल−डीजल के दाम पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है, यह बात सही है लेकिन पैट्रो उत्पादों पर टैक्स के नाम पर जो वसूली हो रही है, वह केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के नियंत्रण में है और तेल की घटी कीमतों का लाभ उपभोक्ताओं को न देकर सरकार उनसे छल कर रही है। 

सरकार कह रही है कि पेट्रोल ख़रीदने वाले भूखे नहीं मर रहे हैं। हम उन्हीं लोगों पर कर लगा रहे हैं जो कर अदा कर सकते हैं। जिनके पास कार है, बाइक है, निश्चित रूप से वह भूखे नहीं मर रहे हैं। जो चुका सकता है उसे चुकाना चाहिए। ऐसे मंत्रियों को जमीनी जानकारी नहीं है। किसान से लेकर सफाई कर्मचारी तक के पास आज मोटरसाइकिल है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि वे अमीर हो गये हैं। अपने घरों से 20 से 40 किलोमीटर दूर जाकर अपनी रोजी रोटी कमी रहे हैं लेकिन सरकार को वे चुभने लगे हैं। मोदी सरकार रोजगार के मोर्चे पर पूरी तरह विफल रही है और अब मेहनत मजदूरी से रोजी रोटी कमा रहे निम्न एवं मध्यम वर्ग पर सीधे चोट कर रही है। एक्साइज ड्यूटी के नाम पर हजारों करोड़ों के मोदी सरकार वारे न्यारे कर चुकी है लेकिन वह पैट्रोल और डीजल उत्पादों पर टैक्स बढ़ाकर कल्याणकारी योजनाओं के नाम पर निम्न एवं मध्यम वर्ग से ही वसूली कर रही है।

-विजय शर्मा

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