यूपी में कांग्रेस के नये अध्यक्ष खुद अपना चुनाव दो बार से हार रहे हैं, वह पार्टी को कैसे खड़ा कर पाएंगे?

Brijlal Khabri
Prabhasakshi
अजय कुमार । Oct 3 2022 3:14PM

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उत्तर प्रदेश में दलित नेता को अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस की नजर मायावती के वोटबैंक पर है। पिछले कुछ चुनाव में बीएसपी से दलित वोट बैंक छिटका है, जिस पर अब कांग्रेस ने नजरें गड़ा ली हैं।

कांग्रेस के रणनीतिकारों पर तरस आता है। ऐसा लगता है कि उनको राजनीति की एबीसीडी भी नहीं मालूम है। एक तरफ राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव चल रहा है तो दूसरी तरफ उसने उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष सहित 6 प्रांतीय अध्यक्षों के नाम की घोषणा कर दी। जब 6 महीने से प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी खाली पड़ी हुई थी तो कुछ दिन और रुक के पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव हो जाने के बाद प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और प्रांत अध्यक्षों के नामों की घोषणा की जाती तो कौन-सा पहाड़ टूट पड़ता। यही परंपरा भी रही है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होने के बाद ही प्रदेश अध्यक्षों के नाम तय किए जाते हैं। लेकिन कांग्रेस तो तानाशाही रूप से फैसले लेने के लिए ही जानी जाती है।

खैर, कांग्रेस ने दिल्ली और उत्तर प्रदेश दोनों ही जगह दलित नेता को पार्टी का अध्यक्ष बना दिया है। कांग्रेस का यह प्रयोग 2024 के लोकसभा चुनाव में कितना सफल होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन यह कहा जा सकता है कि गांधी परिवार ने जिस दलित नेता को राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की कमान सौंपी है वह खाटी कांग्रेसी नेता हैं। पार्टी में उनकी अपनी पहचान है। लेकिन पार्टी आलाकमान ने उत्तर प्रदेश कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष ऐसे नेता को बना दिया जिसका पार्टी के अंदर कोई खास पुराना इतिहास नहीं है। मात्र 6 साल पहले बसपा छोड़कर कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण करने वाले नवनियुक्त कांग्रेस अध्यक्ष पिछली दो बार से अपना ही विधानसभा चुनाव नहीं जीत पाए हैं। नवनियुक्त कांग्रेस अध्यक्ष की बस यही योग्यता है कि वह दलित बिरादरी से आते हैं।

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दलितों पर बसपा की कमजोर पकड़ का अहसास होने के बाद सपा हो या कांग्रेस, सभी दलितों को लुभाने में लगे हैं। वहीं भाजपा भी इसमें पीछे नहीं है। वैसे तो उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर बृजलाल खाबरी की नियुक्ति 2024 के लोकसभा चुनाव को देखकर हुई है लेकिन इससे पहले उन्हें 2 महीने के भीतर होने वाले नगर निकाय चुनाव में भी अपनी काबिलियत सिद्ध करना होगी। उत्तर प्रदेश के तमाम चुनावों में कांग्रेस का जिस तरह का लचर प्रदर्शन रहा है उसको देखते हुए खाबरी के लिए राह आसान नहीं है। यूपी में कांग्रेस राहुल गांधी, प्रियंका गांधी सहित तमाम दिग्गज नेताओं को अपना चुकी है, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी है।

बहरहाल, 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस में सियासी हलचल तेज हो गई है। राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया के बीच उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर भी अध्यक्ष की नियुक्ति कर दी गई है। इसी साल हुए विधानसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद प्रदेश में कांग्रेस के अध्यक्ष का पद खाली था। जालौन के रहने वाले और एक समय में बसपा सुप्रीमो मायावती के करीबी रहे बृजलाल खाबरी की उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर ताजपोशी को लेकर कहीं कोई उत्साह नहीं दिखाई दे रहा है। राजनीतिक पंडित भी इसे गंभीरता से नहीं ले रहे हैं क्योंकि अभी बृजलाल की पहचान अभी काफी सीमित है। उनको प्रदेश का चेहरा बनने में टाइम लगेगा। इसके लिए संघर्ष भी करना होगा।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यूपी में दलित नेता को अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस की नजर मायावती के वोटबैंक पर है। पिछले कुछ चुनाव में बीएसपी से दलित वोट बैंक छिटका है, जिस पर अब कांग्रेस ने नजरें गड़ा ली हैं। लेकिन पंजाब में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का दलित कार्ड बुरी तरह फेल हो चुका है। वहीं, सिर्फ प्रदेश में ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी कांग्रेस दलित वोटर्स को मल्लिकार्जुन खड़गे के जरिए साधने जा रही है। गौरतलब है कि यूपी में विधानसभा से लेकर लोकसभा चुनाव तक में दलित वोटर्स काफी अहम जगह रखते हैं। प्रदेश में दलित वोटर्स का प्रतिशत तकरीबन 21 फीसदी है, जिसमें बड़ा हिस्सा बसपा की ओर जाता था। दलित में जाटव और गैर-जाटव की बात करें तो 50-55 फीसदी आबादी जाटव की है, जिससे खुद बसपा सुप्रीमो मायावती भी आती हैं। ऐसे में जाटव मतदाताओं पर बसपा की पकड़ काफी मजबूत रही है। वहीं, अन्य में पासी, कनौजिया, खटीक, वाल्मीकि जैसी उपजातियां आती हैं।

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सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटी के अनुसार, साल 2017 में बीएसपी को 87 फीसदी जाटव ने वोट किया था, जबकि साल 2022 के चुनाव में यह प्रतिशत कम होकर 65 फीसदी पर आ गया। यह साफ दर्शाता है कि अन्य पार्टियां दलित वोट बैंक में लगातार सेंधमारी कर रही हैं। इसी के मद्देनजर कांग्रेस ने भी दलित वोट हासिल करने के लिए प्रदेश की कमान बृजलाल खाबरी को दी है। भले ही कांग्रेस लंबे समय से उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर रही हो, लेकिन कई दशकों पहले पार्टी प्रदेश में सबसे बड़े दल के रूप में जानी जाती थी। लंबे समय तक उसकी यूपी में सरकार रही है। इसमें एक बड़ा वोट बैंक दलितों का भी रहा। लेकिन समय के साथ धीरे-धीरे यह वोट बैंक बसपा की ओर जाता रहा। इस समय दलित वोटरों में भाजपा की काफी अच्छी हिस्सेदारी हो गई है। 2019 के लोकसभा और 2022 के विधानसभा चुनाव में यह बात साबित भी हो चुकी है। अब एक बार फिर से पार्टी खुद को मजबूत करने के लिए दलित वोटर्स की तरफ देख रही है।

  

खैर बात बृजलाल खाबरी की कि जाए तो वह यूपी के जालौन के रहने वाले हैं। कभी खाबरी बसपा सुप्रीमो मायावती के काफी करीबी नेताओं में गिने जाते थे, लेकिन बाद में बसपा से इस्तीफा देकर साल 2016 में कांग्रेस में शामिल हो गए थे। हालांकि, कांग्रेस से वह अब तक दो बार चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन 2017 और 2022 के दोनों ही विधानसभा चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। पिछला चुनाव उन्होंने ललितपुर जिले की महरौनी (सुरक्षित) सीट से लड़ा था, जहां बीजेपी उम्मीदवार ने पराजित कर दिया था।

-अजय कुमार

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