- |
- |
दिल दहला देने वाली है बल्लभगढ़ की घटना, क्या यही है 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' ?
- दीपक कुमार त्यागी
- नवंबर 4, 2020 15:17
- Like

जिस तरह से देश की राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा के जनपद फरीदाबाद के बल्लभगढ़ में 26 अक्तूबर सोमवार की शाम को बी.कॉम फाइनल ईयर की एक छात्रा की सिरफिरे युवक तौसीफ ने गोली मारकर हत्या कर दी थी, वह समाज को भयभीत करने वाला अक्षम्य अपराध है।
हरियाणा के बल्लभगढ़ में घटित घटना पर पर ओछी राजनीति की जा रही है। वोट बैंक के लिए समाज को बांटने वाली राजनीति करने वाले चंद राजनेता व अन्य तथाकथित बुद्धिजीवी लोग हमारे समाज को बेहद चालाकी के साथ हिंदू, मुस्लिम, अगड़े-पिछड़े, शहर-गांव, अमीर-गरीब में विभाजित करके, अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए बेहद ज्वंलत मुद्दों पर भी समाज को बांटने का कार्य कर रहे हैं। अफसोस व चिंताजनक बात यह है कि हमारे देश की नौकरशाही में बैठे बहुत सारे लोग भी उसी उपरोक्त आधार पर कार्य करके लोगों से भेदभाव करते हैं और आम लोगों के अधिकारों का हनन करते हैं। इस तरह की कार्यशैली से हमारा सिस्टम व व्यवस्था पूरी तरह प्रभावित हो जाती है और किसी भी क्षेत्र में आशानुरूप सफलता प्राप्त नहीं हो पाती है। जिन लोगों, बुद्धिजीवियों राजनेताओं व नौकरशाहों पर ‘सबका साथ सबका विकास’ करने की जिम्मेदारी है उसमें से अधिकतर अपनी सीमित सोच के चलते, भेदभाव वाले रवैये के चलते वोट बैंक के अनुसार कार्य करने में विश्वास रखते हैं, जो स्थिति देश व समाज हित में बिल्कुल भी ठीक नहीं है। देश में इस तरह की यह हालात हमारे सभ्य समाज के अस्तित्व के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बन रहे हैं, इस सोच के चलते देश में अपराध व भ्रष्टाचार अपने चरम पर पहुंच गया है। इंसान का तेजी से पतन हो रहा है, इंसानियत व मानवीय संवेदनाओं की आये दिन सरेआम सड़कों पर हत्या हो रही है।
इसे भी पढ़ें: यदि ‘लव’ है तो ‘जिहाद’ कैसा ? लाभ-हानि की सोचने पर ही धर्म परिवर्तन होता है
जिस तरह से देश की राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा के जनपद फरीदाबाद के बल्लभगढ़ में 26 अक्तूबर सोमवार की शाम को बी.कॉम फाइनल ईयर की एक छात्रा की सिरफिरे युवक तौसीफ ने गोली मारकर हत्या कर दी थी, वह समाज को भयभीत करने वाला अक्षम्य अपराध है। पुलिस सूत्रों के अनुसार यह घटना एकतरफा प्यार के चक्कर में घटित हुई है। जिस तरह से सरेआम दिनदहाड़े बल्लभगढ़ के अग्रवाल कॉलेज से परीक्षा देकर अपनी सहेली के साथ निकली छात्रा को कॉलेज के पास ही एक आई-20 कार में सवार एक दुस्साहसी युवक ने अपने साथी के साथ जबरदस्ती खींचकर जबरन गाड़ी में बैठाने की कोशिश की थी, वह देश में महिलाओं की सुरक्षा की स्थिति को दर्शाती है, लेकिन छात्रा को कार में बैठाने से नाकाम रहने पर नाराज होकर तौसीफ नामक युवक ने उसे गोली मार दी थी और अपराधी घटना को अंजाम देकर तमाशबीन बनी कायर भीड़ के चलते बेखौफ होकर घटनास्थल से अपने साथी रेहान के साथ कार लेकर मौके से फरार हो गया था। इसके बाद छात्रा को तुरंत इलाज के लिए नजदीकी अस्पताल ले जाया गया, जहां पर डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया था। जिसके बाद से क्षेत्र में बेहद तनावपूर्ण माहौल बना हुआ है। हालांकि फरीदाबाद के पुलिस-प्रशासन के लिए राहत की बहुत बड़ी बात यह रही कि पूरी घटना स्पष्ट रूप से घटनास्थल के पास में लगे एक सीसीटीवी के कैमरे में कैद हो गई थी, जिसके आधार पर ही पुलिस ने तत्काल बेहद तत्परता दिखाते हुए हत्यारोपी तौसीफ व उसके सहयोगी रेहान को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया और बाद में हत्यारोपी तौसीफ को अवैध हथियार उपलब्ध करवाने वाले बदमाश अजरु को भी गिरफ्तार करके जेल भेज दिया है। जिसके बाद अब हालात सामान्य हैं और प्रशासन के नियंत्रण में हैं।
लेकिन इस घटना के बाद हम सभी लोगों के लिए निष्पक्ष रूप से और शांतचित्त मन से विचारणीय बात यह है कि हाल ही में महिलाओं के खिलाफ अलग-अलग प्रदेशों में घटित अपराध की घटनाओं पर देश में जमकर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति हुई थी। उत्तर प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ की हाल ही में घटित महिलाओं के प्रति घटनाओं पर देश के कुछ दिग्गज पत्रकारों, कुछ बुद्धिजीवियों, कुछ समाजसेवियों व बहुत सारे राजनेताओं ने जमकर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति की थी, कई दिनों तक न्यूज चैनल, समाचारपत्र, सोशल मीडिया व सड़कों पर जमकर हंगामा बरपाया था। लेकिन राजनीति करने वाले इन सभी लोगों के साथ पक्ष व विपक्ष के अधिकांश राजनेताओं की अचानक बल्लभगढ़ की घटना पर बोलती क्यों बंद हो गयी है। हर मुद्दे का राजनीतिकरण करके राजनीति करने के शौकीन हमारे देश के बहुत सारे लोग व राजनेता इस घटना से बिल्कुल अंजान बनने का नाटक आखिर क्यों कर रहे हैं। स्थिति को देखकर लगता है कि इन सभी लोगों के लिए इंसान की जान व इंसानियत की रक्षा से ज्यादा अपने आकाओं के दिशानिर्देश, वोट बैंक व अपनी राज्य सरकार की छवि बेहद महत्वपूर्ण है। जिसके चलते यह सभी लोग, पक्ष व विपक्ष के अधिकांश राजनेता बल्लभगढ़ की घटना पर आँख बंद करके चुपचाप बैठ गये हैं। हाथरस कांड व राजस्थान कांड पर आये दिन जमकर बवाल करने वाले राजनेताओं के द्वारा बल्लभगढ़ की घटना में शामिल अपराधियों को सख्त सजा देने की मुहिम सोशल मीडिया में चलाने व पीड़ित परिवार के लिए संवेदना तक व्यक्त करने के लिए एक ट्वीट करने तक समय नहीं है। स्थिति देखकर लगता है कि वोट बैंक व किसी अज्ञात भय में उन लोगों के हाथ एक ट्वीट तक करने में कांप रहे है।
इसे भी पढ़ें: बढ़ते जा रहे लव जिहाद के मामलों के बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला बनेगा नजीर
वैसे तो किसी भी हाल में देश में आपराधिक घटनाओं पर राजनीति बिल्कुल भी नहीं होनी चाहिए, बल्कि पुलिस के द्वारा बिना किसी जोर दबाव के समय रहते सख्त व निष्पक्ष कार्यवाही होनी चाहिए, जिससे बिना किसी भेदभाव व हंगामे के पीड़ित पक्ष को वास्तव में जल्द से जल्द न्याय मिल सकें। लेकिन अफसोस हमारे देश में पुलिस की कार्यप्रणाली व जाति-धर्म की ओछी राजनीति के चलते हर आपराधिक घटना में कार्यवाही करने का मापदंड ना जाने क्यों अलग-अलग हो जाता है। हर आपराधिक घटना पर कार्यवाही करने के लिए घटना को जाति-धर्म के चश्मे से देखने वाले हमारे सिस्टम में बैठे चंद लोगों, तथाकथित बुद्धिजीवियों व कोई इन चंद ताकतवर राजनेताओं को अब तो समझाओ कि अपराध व अपराधी का कोई जाति-धर्म नहीं होता, वो तो केवल इंसान, इंसानियत व समाज का सबसे बड़ा दुश्मन होता है और केवल सजा प्राप्त करने के योग्य अपराधी होता है। वैसे भी सभ्य समाज में आपराधिक घटना पर किसी जाति या धर्म विशेष के आधार पर बुद्धिजीवी वर्ग व राजनेताओं का चुप्पी साध लेना भी पीड़ित पक्ष के साथ बहुत बड़ा अन्याय होता है। जाति-धर्म के आधार पर अपराध में कार्यवाही होना भी सरासर गलत है और बहुत बड़ा अन्याय है। देश के कर्ताधर्ताओं व सिस्टम में बैठे लोगों को देश व समाज हित में जल्द से जल्द अपनी यह सोच बदलनी होगी, तब ही देश में अपराध व अपराधियों पर नकेल कसी जा सकती है।
वैसे देश में महिलाओं के प्रति घटित इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए परिवार व समाज में संस्कारों के बहुत तेजी से होते क्षरण और लोगों की मानसिक व वैचारिक विकृति सबसे बड़ा कारण है, जिसके लिए हम स्वंय सबसे बड़े दोषी हैं। आज हमारे सामने सबसे बड़ी सोचने वाली बात यह है कि हम लोग अपने स्वयं के बच्चों को किस तरह का संस्कार व परिवेश दे रहे हैं। हमारे समाज को भी यह विचार करना होगा कि वो बढ़ते अपराध और अपराधियों के प्रति कितना सजग है, क्योंकि बिना समाज की सजगता के अकेले पुलिस के बलबूते कोई भी अपराध रोका नहीं जा सकता है, क्योंकि पुलिस के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है, जिसे घुमाओ और अपराध का खात्मा करवाओ। देश से अपराध का खात्मा करने के लिए राजनीतिक दलों व समाज का सहयोग बेहद जरूरी है और इनके द्वारा अपराधियों का महिमामंडन ना करके बल्कि उनका पूर्ण रूप से सामाजिक तिरस्कार होना चाहिए। अपराध पर अंकुश लगाने के लिए हम लोगों को अपनी सोच में बदलाव करना होगा, जिस तरह से किसी आपराधिक घटना में शामिल आरोपी अगर हमारी जाति या धर्म का कोई व्यक्ति होता है तो हम उसके पक्ष में सड़़क पर आकर खड़े हो जाते हैं, उसको सुरक्षित रखने के लिए संरक्षण देते हैं, लेकिन अब समय आ गया है कि हमको इस सोच को देश व समाज हित में तत्काल बदलना होगा। अपराधी को जाति-धर्म का प्रतीक बनाना बंद करना होगा, वोट बैंक की राजनीति को छोड़कर सत्य को सत्य कहना सीखना होगा, जाति-धर्म के वोट बैंक के लालच को त्याग कर अपराधी को अपराधी कहना सीखना होगा, तब ही देश में अपराधों पर अंकुश लगेगा और हमारा सभ्य समाज सुरक्षित रहेगा।
-दीपक कुमार त्यागी
Related Topics
Nikita tomar murder case nikita tomar nikita tomar faridabad nikita tomar news nikita tomar faridabad news nikita tomar killed nikita tomar caste nikita tomar ballabgarh nikita tomar shot dead crime in faridabad murder in ballabgarh bcom girl shot dead in faridabad nikita murder case ballabgarh police faridabad police faridabad news faridabad latest news faridabad news today today news faridabad ballabgarh news लव जिहाद निकिता तोमर बल्लभगढ़ फरीदाबाद love jihadउत्तर भारतीयों पर राहुल के बयान को भूली नहीं है भाजपा, बस सही समय का हो रहा है इंतजार
- अजय कुमार
- मार्च 4, 2021 12:12
- Like

सियासत में टाइमिंग का महत्व इसी से समझा जा सकता है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा उत्तर भारतीयों पर दिए गए बयान पर कहीं कोई खास प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिल रही है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि राहुल का बयान ‘नेपथ्य’ में चला गया है।
राजनीति में टाइमिंग का बेहद महत्व होता है। कब कहां क्या बोलना है और कब किसी मुद्दे या विषय पर चुप्पी साध लेना बेहतर रहता है। इस बात का अहसास नेताओं को भली प्रकार से होता है, जो नेता यह बात जितने सलीके से समझ लेता है, वह सियासत की दुनिया में उतना सफल रहता है और आगे तक जाता है। मौजूदा दौर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस मामले में अव्वल हैं तो कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं है कि कब कहां, क्या बोलना सही रहता है। यही वजह है कि सियासत की दुनिया में मोदी नये मुकाम हासिल कर रहे हैं, वहीं राहुल गांधी हाशिये पर पड़े हुए हैं। राहुल की बातों को सुनकर लगता ही नहीं है कि उन्हें सियासत की गहराई पता है जबकि उन्होंने जन्म से ही घर में सियासी माहौल देखा था। राहुल गांधी से पूर्व नेहरू-गांधी परिवार ने जनता की नब्ज को पहचानने में महारथ रखने के चलते ही वर्षों तक देश पर राज किया था।
इसे भी पढ़ें: सियासी दंगल में किसका होगा मंगल? नेताओं के वार-पलटवार में दिख रही तकरार
पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर नेहरू हों या फिर इंदिरा गांधी या पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी, यह सभी यह बात जानते-समझते थे कि कैसे जनता से संवाद स्थापित किया जाता है। राजीव गांधी ही की तरह सोनिया गांधी को भी तमाम लोग एक सफल राजनेत्री मानते थे, लेकिन राहुल-प्रियंका इस मामले में कांग्रेस की सबसे कमजोर कड़ी साबित हो रहे हैं, लेकिन अब कांग्रेस के पास कोई विकल्प ही नहीं बचा है। राहुल गांधी की असफलता के बाद कांग्रेस प्रियंका वाड्रा को ‘ट्रम्प कार्ड’ के रूप में लेकर आगे आई थी, लेकिन अब प्रियंका की भी सियासी समझ पर सवाल उठने लगे हैं। सियासत का एक दस्तूर होता है, यहां हड़बड़ी से काम नहीं चलता है। बल्कि पहले मुद्दों को समझना होता है फिर सियासी दांवपेंच चले जाते हैं।
यह कहना अतिशियोक्ति नहीं होगा कि जनता की नब्ज पहचानने की कूवत जमीन और जनता से जुड़े नेताओं में समय के साथ स्वतः ही विकसित होती रहती है। इसके लिए कोई पैमाना नहीं बना है। इसी खूबी के चलते ही तो बाबा साहब अंबेडकर, डॉ. राम मनोहर लोहिया, सरदार पटेल, जयप्रकाश नारायण, चौधरी चरण सिंह, देवीलाल, जगजीवन लाल, अटल बिहारी वाजपेयी, मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, सुश्री मायावती, ममता बनर्जी, नीतिश कुमार, अरविंद केजरीवाल जैसे तमाम नेताओं को आम जनता ने फर्श से उठाकर अर्श पर बैठा दिया। यह सब नेता जनता की नब्ज और परेशानियों को अच्छी तरह से जानते-समझते थे। जनता के साथ रिश्ते बनाने की कला इनको खूब आती थी। उक्त तमाम नेता जन-आंदोलन से निकले थे। राहुल गांधी, प्रियंका वाड्रा, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, चिराण पासवान की तरह उक्त नेताओं को अपने पिता या परिवार से किसी तरह की कोई सियासी विरासत नहीं मिली थी। किसी तरह की सियासी विरासत का नहीं मिलना ही, उक्त नेताओं की राजनैतिक कामयाबी का मूलमंत्र था।
बहरहाल, सियासत में टाइमिंग का महत्व इसी से समझा जा सकता है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा उत्तर भारतीयों पर दिए गए बयान पर कहीं कोई खास प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिल रही है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि राहुल का बयान ‘नेपथ्य’ में चला गया है। बीजेपी नेता यदि राहुल पर हमलावर नहीं हैं तो इसकी वजह है दक्षिण के राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनाव। बीजेपी उत्तर भारतीयों पर दिए राहुल गांधी के बयान पर हो-हल्ला करके दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में होने वाले विधानसभा में होने वाले चुनाव में कांग्रेस को कोई सियासी फायदा नहीं पहुंचाना चाहती है, लेकिन अगले वर्ष जब उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव होंगे तब जरूर बीजेपी राहुल गांधी के बयान को बड़ा मुद्दा बनाएगी और निश्चित ही इसका प्रभाव भी देखने को मिलेगा। बीजेपी नेताओं को तो वैसे भी इसमें महारथ हासिल है।
खासकर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव के समय ही विपक्ष के खिलाफ मुखर होते हैं, तब वह विरोधियों के अतीत में दिए गए बयानों की खूब धज्जियां उड़ाते हैं। सोनिया गांधी के गुजरात में मोदी पर दिए गए बयान ‘खून का सौदागार’ को कौन भूल सकता है, जिसके बल पर मोदी ने गुजरात की सियासी बिसात पर कांग्रेस को खूब पटखनी दी थी। इसी प्रकार कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पूर्व जब मीडिया से रूबरू होते हुए यह कहा कि एक चाय वाला भारत का प्रधानमंत्री नहीं हो सकता है तो इसी एक बयान के सहारे मोदी ने लोकसभा चुनाव की बिसात ही पलट दी। मोदी ने मणिशंकर अय्यर के बयान को खूब हवा दी।
इसे भी पढ़ें: अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश कर रही उत्तर प्रदेश कांग्रेस को राहुल ने दिया बड़ा झटका
दरअसल, जनवरी 2014 में मणिशंकर अय्यर ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा था, '21वीं सदी में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन पाएं, ऐसा मुमकिन नहीं है। मगर, वह कांग्रेस के सम्मेलन में आकर चाय बेचना चाहें, तो हम उनके लिए जगह बना सकते हैं।’ इस बयान पर ऐसा बवाल हुआ था कि कांग्रेस को जवाब देते नहीं बन रहा था। कांग्रेस की सहयोगी पार्टियां भी अय्यर के इस बयान के खिलाफ खड़ी हो गई थीं और कहा था कि मोदी को चाय वाला कहना गलत है।
इसी प्रकार 2014 के लोकसभा चुनाव के समय ही एक जनसभा में भाषण देते हुए प्रियंका वाड्रा ने मोदी को नीच कह दिया था। प्रियंका गांधी ने मोदी की राजनीति को नीच बताया था। तब मामला नीच जाति तक पहुंच गया था। हुआ यूं कि अमेठी में नरेंद्र मोदी ने स्व. राजीव गांधी पर सीधा हमला बोला था, जिसके बाद उनकी बेटी प्रियंका गांधी ने कहा था कि मोदी की ‘नीच राजनीति’ का जवाब अमेठी की जनता देगी। मोदी ने प्रियंका के इस बयान को नीच राजनीति से निचली जाति पर खींच लिया और बवंडर खड़ा कर दिया। मोदी ने तब प्रियंका की नीच राजनीति वाले बयान पर कहा था कि सामाजिक रूप से निचले वर्ग से आया हूं, इसलिए मेरी राजनीति उन लोगों के लिये ‘नीच राजनीति’ ही होगी। हो सकता है कुछ लोगों को यह नजर नहीं आता हो, पर निचली जातियों के त्याग, बलिदान और पुरुषार्थ की देश को इस ऊंचाई पर पहुंचाने में अहम भूमिका है। प्रियंका के बयान पर कांग्रेस सफाई देते-देते परेशान हो गई, लेकिन इससे उसे कुछ भी हासिल नहीं हुआ और इसका खामियाजा कांग्रेस को सबसे बड़ी हार के रूप में भुगतना पड़ा।
लब्बोलुआब यह है कि राजनीति में कभी कोई मुद्दा या बयान ठंडा नहीं पड़ता है। आज भले ही बीजेपी के बड़े नेता राहुल गांधी के उत्तर भारतीयों पर दिए गए बयान को लेकर शांत दिख रहे हों, लेकिन राहुल के बयान के खिलाफ चिंगारी तो सुलग ही रही है। वायनाड से पहले अमेठी से सांसद रहे राहुल गांधी का केरल में उत्तर भारतीयों को लेकर दिया गया बयान न उनके पूर्व चुनाव क्षेत्र अमेठी के लोगों को रास आ रहा है न ही कांग्रेस के गढ़ रहे रायबरेली के लोगों को। लोगों का कहना है कि रायबरेली और अमेठी के लोगों ने गांधी परिवार को अपना नेता माना था और यह (अमेठी) उत्तर भारत में ही है। ऐसे में उनकी टिप्पणी उचित नहीं है। ऐसा बोल कर उन्होंने अपनों को पीड़ा पहुंचाई है। अमेठी से वह चुनाव जरूर हारे, लेकिन रायबरेली का प्रतिनिधित्व उनकी मां सोनिया गांधी के हाथ में है।
-अजय कुमार
Related Topics
rahul gandhi rahul gandhi controversy rahul gandhi north vs south rahul gandhi wayanad rahul gandhi speech in wayanad amethi vs wayanad amethi vs kerala smriti irani on rahul gandhi s jaishankar on rahul gandhi amethi news yogi adityanath on rahul gandhi Thiruvananthapuram North Indians north india news population political intelligence JP Nadda on rahul gandhi kiren rijiju on rahul gandhi divide and rule politics राहुल गांधी कांग्रेस उत्तर भारतीय अमेठी वायनाड कांग्रेस उत्तर प्रदेश priyanka gandhi politics in uttar pradesh up politics उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव इंदिरा गांधी प्रियंका गांधीविधानसभा चुनाव पास आये तो अखिलेश यादव ने भी मंदिरों में दर्शन शुरू कर दिये
- संजय सक्सेना
- मार्च 3, 2021 13:29
- Like

अखिलेश साल की शुरुआत में लखनऊ स्थित पार्टी कार्यालय में अयोध्या से आए महंत और मौलवियों से मिले। उन्होंने इस मौके पर ऐलान किया था कि अगर यूपी में एसपी की सरकार बनती है तो भगवान श्रीराम की नगरी में मठ-मंदिर, मस्जिद-गुरुद्वारा, गिरजाघर और आश्रम पर कोई टैक्स नहीं लगेगा।
2017 में सत्ता गंवाने के बाद पिछले चार वर्षों से सक्रिय राजनीति से दूर सोशल मीडिया पर ट्विट करके अपनी राजनीति चमका रहे सपा प्रमुख अखिलेश यादव चुनावी वर्ष में काफी सक्रिय हो गए हैं। अखिलेश घर से बाहर निकल कर लोगों से मिल रहे हैं। मंदिर जा रहे हैं। महापुरूषों को याद कर रहे हैं। समाजवाद के पुरोधा डॉ. राम मनोहर लोहिया का गुणगान कर रहे हैं। आश्चर्यजनक रूप से अब अखिलेश जहां भी जाते हैं, वहां कई समाजवादी नेताओं के साथ-साथ उन संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर का भी चित्र नजर आने लगा है। कहीं इसकी वजह यह तो नहीं कि उन्हें (अखिलेश) लग रहा हो कि बसपा सुप्रीमो मायावती सियासी रूप से कमजोर पड़ती जा रही हैं।
इसे भी पढ़ें: अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश कर रही उत्तर प्रदेश कांग्रेस को राहुल ने दिया बड़ा झटका
सपा प्रमुख में इतना ही बदलाव नहीं दिख रहा है। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि अगले वर्ष होने वाले विधान सभा चुनाव के लिए अखिलेश दरगाह या मस्जिद की जगह मंदिर-मंदिर घूमते दिख रहे हैं। अभी तक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, महासचिव प्रियंका गांधी को ऐसा करते हुए देखा गया था। अब समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव का भी नाम इसमें जुड़ गया है। ऐसा लगता है कि अखिलेश, बीजेपी के हिन्दुत्व की काट निकालने में लगे हों। समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव जो अपने पिता की तरह तुष्टिकरण की सियासत के चलते हमेशा हिंदुत्व की राजनीति करने वाले नेताओं के निशाने पर रहते थे, उनमें (अखिलेश) साफ्ट हिन्दुत्व की तरफ झुकाव तब देखने को मिला जब अखिलेश ने मिर्जापुर दौरे के दौरान विंध्यवासिनी देवी के दर्शन किए। अखिलेश ने मंदिर परिसर में समस्त देवी देवताओं की परिक्रमा करते हुए हवन कुंड में भी परिक्रमा की और आशीर्वाद लिया लेकिन यहां से कुछ ही दूरी पर स्थित कंतित शरीफ की दरगाह पर जाना उन्होंने उचित नहीं समझा। हालांकि पार्टी के लोग इसे समय की कमी का नतीजा बता रहे हैं तो वहीं राजनीतिक एक्सपर्ट इसे अखिलेश की बदली हुई रणनीति से जोड़कर देख रहे हैं।
दरअसल, होता यह आया है कि भारतीय जनता पार्टी को छोड़ अन्य दलों के मिर्जापुर आने वाले नेता धर्मनिरपेक्ष दिखने के लिए विंध्यवासिनी मंदिर में दर्शन के बाद कंतित शरीफ दरगाह में मत्था टेकने जरूर जाते हैं। यहां अखिलेश के चादर चढ़ाने का इंतजार भी होता रहा लेकिन अखिलेश वहां नहीं पहुंचे। इसको लेकर दरगाह के संचालक भी काफी असहज महसूस कर रहे हैं। बताते चलें कि मिर्जापुर पहुंचकर अखिलेश यादव ने स्थानीय सर्किट हाउस में रात्रि विश्राम किया और मां विंध्यवासिनी मंदिर पहुंचे और मां की चुनरी लेकर दर्शन किए। अखिलेश ने विंध्यवासिनी देवी को कुलदेवी बताकर दर्शन किए। इसके बाद सूचना थी कि अखिलेश कंतित शरीफ की हजरत इस्माइल चिश्ती दरगाह पर चादरपोशी के लिए जाएंगे लेकिन वह मिर्जापुर शहर रवाना हो गए। सपा इस पर सफाई दे रही है कि समय की कमी होने के कारण अखिलेश दरगाह नहीं पहुच सके क्योंकि अखिलेश जी को वाराणसी के संत रविदास मंदिर भी जाना था, इस कारण वह दरगाह तक नहीं जा सके। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मिर्जापुर दौरे पर सक्तेशगढ़ आश्रम में भी दर्शन पूजन किया थे।
दरगाह न जाकर अखिलेश माघ पूर्णिमा के अवसर पर वाराणसी स्थित रविदास मंदिर पहुंचे। यहां इससे पहले केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी दर्शन कर चुकी थीं। फिर अखिलेश ने भी यहां पूजा पाठ किया। इसे दलित राजनीति से जोड़कर देखा गया लेकिन समाजवादी पार्टी का कोर वोटबैंक यादव-मुस्लिम के गठजोड़ को माना जाता है। ऐसे में सवाल यही है कि क्या वाकई अखिलेश ने अपनी रणनीति बदल ली है। राजनैतिक पंडित बताते हैं कि अखिलेश यादव की सियासत में यह बदलाव ऐसे ही नहीं आया है।
इसे भी पढ़ें: छोटी बहू अपर्णा यादव ने मुलायम और अखिलेश, दोनों को दिखाया आईना
गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी की तुष्टिकरण की सियासत के चलते पिछले कुछ चुनावों से सपा का गैर मुस्लिम वोट बैंक खिसकता जा रहा था। यहां तक की यादव जिन्हें समाजवादी पार्टी का कोर वोटर माना जाता है, चुनाव के समय उसका भी झुकाव बीजेपी की तरफ हो गया था। जिस कारण समाजवादी पार्टी को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था। तात्पर्य यह है कि सपा को समझ में आ गया है कि जैसे बसपा सुप्रीमो मायावती केवल दलित वोटों के सत्ता की सीढ़ियां नहीं चढ़ पाती थीं, वैसे ही सपा भी सिर्फ मुस्लिम वोटरों के सहारे सरकार नहीं बना सकती है। मायावती ने जब ‘सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय’ का नारा दिया था, तभी यूपी में उनकी बहुमत के साथ सरकार बनी थी। सपा के पास मुस्लिम-यादव समीकरण था, लेकिन मोदी की हिन्दुत्व वाली सियासत ने सपा के यादव वोट बैंक में सेंधमारी कर दी थी, जिसके चलते ही अखिलेश अर्श से फर्श पर आ गए थे। इसी के बाद पिछले कुछ समय से अखिलेश सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति की ओर बढ़ते नजर आ रहे हैं। इसके पीछे उनकी योजना यही है कि अगर चुनाव में बीजेपी धर्म के कार्ड का इस्तेमाल करे तो वह उसका बखूबी जवाब दे सकें।
इससे पहले अखिलेश साल की शुरुआत में लखनऊ स्थित पार्टी कार्यालय में अयोध्या से आए महंत और मौलवियों से मिले। उन्होंने इस मौके पर ऐलान किया था कि अगर यूपी में एसपी की सरकार बनती है तो भगवान श्रीराम की नगरी में मठ-मंदिर, मस्जिद-गुरुद्वारा, गिरजाघर और आश्रम पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। इसी साल 8 जनवरी को अखिलेश चित्रकूट के लक्ष्मण पहाड़ी मंदिर पहुंचे थे और कामदगिरि मंदिर की परिक्रमा करते दिखाई दिए थे। इससे पूर्व 15 दिसंबर 2020 को अखिलेश यादव ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण वाली जगह का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने अपनी पार्टी की ओर किए गए धार्मिक कार्यों को गिनाने की कोशिश की। इसके बाद से अखिलेश लगातार मंदिरों को चक्कर लगा रहे हैं। अखिलेश जहां भी जा रहे हैं वहां के प्रमुख मंदिरों के दर्शन कर रहे हैं। यह बात उनके मुस्लिम वोटरों को कितनी रास आएगी, यह तो समय ही बताएगा।
-संजय सक्सेना
Related Topics
Vindhyavasini Devi Mirzapur Akhilesh Yadav Kantit Sharif Dargah Hazrat Ismail Chishti Dargah Sakteshgarh Ashram Samajwadi Party Uttar Pradesh Assembly Election 2022 Politics of Hindutva Soft Hindutva Modi Government Yogi Government Uttar Pradesh Congress Varanasi Sant Ravidas Temples appeasement politics Dalit voters Yadav Muslim vote banks विंध्यवासिनी देवी मिर्जापुर अखिलेश यादव कंतित शरीफ दरगाह हजरत इस्माइल चिश्ती दरगाह सक्तेशगढ़ आश्रम समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 हिंदुत्व की राजनीति सॉफ्ट हिंदुत्व मोदी सरकार योगी सरकार उत्तर प्रदेश कांग्रेस वाराणसी संत रविदास मंदिर तुष्टिकरण की राजनीति दलित वोटर यादव मुस्लिम वोटबैंक भगवान श्रीरामचौथी सालगिरह पर अपनी उपलब्धियाँ जनता को बताने की शुरुआत करेगी योगी सरकार
- अजय कुमार
- मार्च 2, 2021 13:08
- Like

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के चार वर्ष पूरे होने की खुशी में 19 मार्च से जिला व प्रदेश स्तर पर कई कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं ताकि सरकार की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुँचाया जा सके। चुनावी वर्ष में ऐसा करना बेहद जरूरी भी है।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अपना अंतिम पूर्ण बजट पेश करने के साथ ही चुनावी मोड में आ गई है। बजट के जरिए मिशन-2022 को फतह करने की कवायद शुरू हुई थी जिसे योगी सरकार के चार वर्ष पूरे होने की खुशी में पूरे प्रदेश में कार्यक्रम आयोजित करके और आगे बढ़ाया जाएगा। इसी कड़ी में 19 मार्च से योगी सरकार की उपलब्धियों को घर-घर तक पहुंचाने के लिए अभियान चलाया जाएगा। अंतिम बजट पेश करते समय जहां सरकार ने नौजवानों से लेकर किसानों और महिलाओं के साथ-साथ अपने मूल एजेंडे हिंदुत्व और अपने शहरी कोर वोट बैंक को साधे रखने के लिए बजट में पांच बड़े राजनीतिक संदेश देने की कवायद की थी। वहीं चार वर्ष पूरे होने की खुशी में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में किसानों और बेरोजगारी दूर करने के लिए उठाए गए कदमों पर ज्यादा फोकस रहेगा। कोरोना काल में योगी सरकार ने जिस तरह से मजदूरों की मदद की, लोगों के लिए अन्न के भंडार खोले, आर्थिक मदद की और इस दौरान भी विकास कार्योa को जारी रखा, यह योगी सरकार की बड़ी उपलब्धि थी, जिसे योगी सरकार चुनाव के समय भुनाना चाहेगी।
इसे भी पढ़ें: अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश कर रही उत्तर प्रदेश कांग्रेस को राहुल ने दिया बड़ा झटका
योगी सरकार के चार वर्ष पूरे होने की खुशी में 19 मार्च से जिला व प्रदेश स्तर पर कई कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, ताकि सरकार की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुँचाया जा सके। चुनावी वर्ष में ऐसा करना बेहद जरूरी भी है। चुनाव का समय ज्यों जो नजदीक आता जाएगा बीजेपी का मिशन-2022 त्यों त्यों तेजी पकड़ता जाएगा। फिलहाल भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश स्तर के पदाधिकारी/कार्यकर्ता और योगी सरकार के मंत्री ही मिशन-2022 में ‘हवा’ भरते नजर आएंगे, क्योंकि अभी बीजेपी आलाकमान का सारा ध्यान मार्च-अप्रैल में होने वाले पांच राज्यों- तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, असम, केरल और पुदुचेरी (केन्द्र शासित प्रदेश) चुनाव जीतने पर लगा हुआ। बीजेपी आलाकमान को विश्वास है कि पांच में से तीन राज्यों में बीजेपी की ही सरकार बनेगी। उक्त पांच राज्यों में बीजेपी बेहतर प्रदर्शन करने में कामयाब रही तो उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव पर भी इसका असर पड़ना तय है।
बहरहाल, योगी सरकार को सबसे अधिक मेहनत किसानों की नाराजगी दूर करने में लगानी होगी तो बढ़ती महंगाई, पेट्रोल-डीजल और गैस के दामों में बेतहाशा वृद्धि के चलते गृहणियों की एवं बेरोजगारी के कारण नौजवानों की नाराजगी भी भाजपा के मिशन-2022 के लिए बड़ा सियासी खतरा नजर आ रहा है। भाजपा इन मुद्दों से कैसे निपटेगी या फिर वह (भाजपा) विराट हिन्दुत्व की सियासत के सहारे इन मुद्दों को नेपथ्य में डाल देने में कामयाब रहेगी। यह भी देखना होगा।
बात किसानों की कि जाए तो नये कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का गुस्सा केन्द्र की मोदी सरकार के खिलाफ बढ़ता जा रहा है। इसकी तपिश अगले वर्ष होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिल सकती है। अभी तक बीजेपी द्वारा किसान आंदोलन को पश्चिमी यूपी के तीन-चार जिलों तक सीमित बताया जा रहा था, लेकिन अब भारतीय किसान यूनियन के नेता पूरे प्रदेश का भ्रमण करके नये कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों को आंदोलित करने में लग गए हैं, जिसके चलते धीरे-धीरे किसान आंदोलन मध्य और पूर्वांचल के इलाके को अपने जद में लेने लगा है। गौरतलब है कि किसान राज्य की करीब 300 सीटों की दशा और दिशा तय करने में सक्षम हैं। समस्या यह है कि चाहे मोदी सरकार हो या फिर योगी सरकार दोनों किसानों के हित की बड़ी-बड़ी बातें और दावे तो कर रहे हैं, लेकिन किसानों का विश्वास दोनों ही सरकारें नहीं जीत पा रही हैं। किसानों का सरकार से विश्वास उठता जा रहा है।
बात सरकार की कि जाए तो उसने किसानों की आय को साल 2022 तक दोगुना करने का लक्ष्य रखा है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री कृषक दुर्घटना कल्याण योजना के अन्तर्गत 600 करोड़ रुपये की व्यवस्था बजट में प्रस्तावित है, जिसमें सरकार किसान का 5 लाख का बीमा कराएगी। योगी सरकार के अंतिम बजट में किसानों को मुफ्त पानी की सुविधा के लिए 700 करोड़ रुपये और रियायती दरों पर किसानों को फसली ऋण उपलब्ध कराए जाने हेतु अनुदान के लिए 400 करोड़ रुपये की व्यवस्था प्रस्तावित है। सरकार ने एक फीसदी ब्याज दर पर किसानों को कर्ज मुहैया कराने का ऐलान भी किया है। वहीं प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान के अन्तर्गत वित्तीय वर्ष 2021-22 में 15 हजार सोलर पम्पों की स्थापना का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके अलावा योगी सरकार ने गन्ना किसानों के चार साल में किए भुगतान का भी जिक्र कर यह बताने की कोशिश की है कि अब तक की सभी सरकारों से ज्यादा बीजेपी के कार्यकाल में भुगतान किए गए हैं। वैसे अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव से पूर्व जल्द ही होने जा रहे पंचायत चुनाव के नतीजों से बीजेपी को काफी कुछ सियासी 'संदेश’ मिल जाएगा। अगर पंचायत चुनाव के नतीजे बीजेपी के मनमाफिक आए तो यह माना जाएगा कि जितना प्रचार किया गया, उतना किसान सरकार से नाराज नहीं है।
इसे भी पढ़ें: उत्तर प्रदेश विधानसभा में चर्चा के दौरान फँस जाने के डर से विपक्ष करता है हंगामा
पंचायत चुनाव को योगी सरकार अगले वर्ष होने जा रहे विधानसभा चुनाव का पूर्वाभ्यास मान रही हैं। पंचायत चुनाव जीतने के लिए भी योगी सरकार ने कम मेहनत नहीं की है। सरकारी खजाने का मुंह गांवों की तरफ मोड़ दिया गया है। पंचायती राज के लिए करीब 712 करोड़ रुपये, प्रत्येक न्याय पंचायत में चंद्रशेखर आजाद ग्रामीण विकास सचिवालय की स्थापना के लिये 10 करोड़ रुपये, इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री पंचायत प्रोत्साहन योजना के अन्तर्गत उत्कृष्टग्राम पंचायतों को प्रोत्साहित किये जाने हेतु 25 करोड़ रुपये, ग्राम पंचायतों में बहुउद्देशीय पंचायत भवनों के निर्माण हेतु 20 करोड़ रुपये की व्यवस्था और राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान योजना के अंतर्गत पंचायतों की क्षमता संवर्धन, प्रशिक्षण एवं पंचायतों में संरचनात्मक ढांचे के निर्माण हेतु 653 करोड़ रुपये की बजट व्यवस्था प्रस्तावित है। योगी सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के अन्तर्गत 7000 करोड़ रुपये की बजट व्यवस्था तो मुख्यमंत्री आवास योजना-ग्रामीण के अंतर्गत 369 करोड़ रुपये का ऐलान किया है। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के अन्तर्गत 35 करोड़ मानव दिवस का रोजगार सृजन का लक्ष्य रखा गया है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 5548 करोड़ रुपये की बजट व्यवस्था रखी गई है। यह सब करके योगी सरकार ने यूपी के गांवों को साधने का बड़ा दांव चला है।
चुनाव कोई भी और किसी भी स्तर का हो, भाजपा अपने तरकश से हिन्दुत्व का तीर जरूर चलती है। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी इसे खूब धार देगी। वैसे भी योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही हिंदुत्व से जुड़े हुए एजेंडे को खास अहमियत दी जा रही है। सूबे में हिंदू धर्म से जुड़े धार्मिक स्थलों पर सरकार दिल खोलकर पैसा लुटा रही है। गाय, गुरुकुल, गोकुल, सब बीजेपी के चुनावी मिशन का हिस्सा बन गए हैं। जब से योगी सरकार बनी है तब से उसका अयोध्या और काशी पर फोकस बना हुआ है। योगी अक्सर अयोध्या और काशी पहुंच जाते हैं। यानी योगी राज में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का परचम खूब लहराया जा रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार चुनाव के बाद कहा था कि देश की महिलाएं, नारी शक्ति हमारे लिए साइलेंट वोटर हैं। ग्रामीण से शहरी इलाकों तक, महिलाएं हमारे लिए साइलेंट वोटर का सबसे बड़ा समूह बन गई हैं। बिहार चुनाव में भी साफ दिखा था कि महिलाओं ने बड़ी तादाद में बीजेपी के पक्ष में वोट किया था। यही वजह है कि योगी सरकार द्वारा भी महिला मतदाताओं का खास ध्यान रखा जाता रहा है। योगी सरकार के गठन के तुरंत बाद एंटी रोमियो स्कवॉड बनाकर महिलाओं का विश्वास जीतने की कोशिश की गई थी तो चौथे वर्ष में जब प्रदेश में महिलाओं के साथ अपराध की घटनाएं बढ़ी तों महिलाओं के सम्मान और स्वाभिमान के लिए मिशन शक्ति चलाया गया।
इसे भी पढ़ें: नवरात्रि के आसपास प्रियंका गांधी को यूपी में मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश कर सकती है कांग्रेस
अबकी बजट में महिला सामर्थ्य योजना नाम से दूसरा प्लान योगी सरकार ने शुरू किया है, जिसके लिए बजट में 200 करोड़ रुपए दिए हैं। महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए प्रदेश की सरकार मिशन शक्ति चला रही है, जिसके तहत उनको आत्मसुरक्षा और आत्मनिर्भरता दोनों की ट्रेनिंग दी जाती है। महिला शक्ति केंद्रों की स्थापना के लिए 32 करोड़ रुपए दिए हैं। बजट में ऐसी कई घोषणाएं की गई है जिनका फायदा महिलाओं और छात्राओं को मिलेगा। प्रदेश के प्रतिभाशाली छात्र-छात्राओं को पढ़ाई के लिए टैबलेट देने की घोषणा की गई है। रोजगार के लिए जनपदों में काउंसलिंग सेंटर बनाने की बात बजट में है। सामर्थ्य योजना के तहत महिलाओं को स्किल ट्रेनिंग दी जाएगी ताकि वो किसी काम में ट्रेंड हो सकें और उनके लिए रोजगार के अवसर बढ़ें।
-अजय कुमार
Related Topics
Yogi Adityanath Yogi Sarkar Uttar Pradesh News Uttar Pradesh Budget Uttar Pradesh BJP Uttar Pradesh Assembly Elections 2022 Modi Government Akhilesh Yadav Mayawati BSP SP Hindutva Agenda Yogi Government's Welfare Schemes Mahila Samarthi Yojana Uttar Pradesh Panchayat Election योगी आदित्यनाथ योगी सरकार उत्तर प्रदेश समाचार उत्तर प्रदेश बजट उत्तर प्रदेश भाजपा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 मोदी सरकार अखिलेश यादव मायावती बसपा सपा हिंदुत्व का एजेंडा योगी सरकार की कल्याणकारी योजनाएं महिला सामर्थ्य योजना उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव बीजेपी किसान आंदोलन प्रधानमंत्री मोदी
