मोदी नापसंद हैं तो लोकतांत्रिक तरीके से हटाइए, हत्या की साजिश क्यों?

PM Modi Assassination Plot Revealed In Maoist Letter
राकेश सैन । Jun 15 2018 4:57PM

परंतु मोदी की हत्या की साजिश की खबरें बता रही हैं कि होता इसके विपरीत दिख रहा है। सरकार हटाने के नाम पर नेता को हटाने की योजना बन रही है और मनपसंद सरकार के लिए लोकतंत्र की छाती पर बंदूक तानी जा रही है।

देश में मोदी हटाओ अभियान तेज हो गया है। वैसे तो यह लोकतांत्रिक रीति रिवाज है कि हर पांच साल बाद लोगों को नई सरकार चुनने का अवसर मिलता है। हर राजनीतिक दल स्थापित सत्ता को उखाड़ अपनी सरकार बनाने व सत्तारूढ़ दल अपना दबदबा कायम रखने के लिए संघर्ष करता है। देश में पिछले चार सालों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठजोड़ की सरकार चल रही है। कइयों को मोदी पसंद हैं तो नापसंद करने वाले भी कम नहीं और वे ही चला रहे हैं 'मोदी हटाओ अभियान'। अभियान चलाओ, अच्छी बात है पसंद नहीं है तो चलता करो ऐसी सरकार को लेकिन ईवीएम से न कि मशीन गन से, मत का प्रयोग करके न कि किसी की मौत पर यज्ञ करो, जन मुद्दे उठाओ किसी का जनाजा उठाने की साजिश करना ठीक नहीं। साल 2019 जैसे-जैसे देहरी पर आता दिख रहा है मोदी हटाओ अभियान और भी तेजी पकड़ता जा रहा है। अभियान नया नहीं है। पहले इसका नाम मोदी रोको था, जो धाराशायी हो कर अंधनिंदा व अवरोध में बदला और अब मोदी रोको का रंग ले चुका है। गणतंत्र में विश्वास रखने वाले अपनी तैयारी में हैं और गनतंत्र वाले अपनी परंतु कहीं-कहीं दोनों के बीच दुरभी संधि की दुर्गंध भी आ रही है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी कहते थे कि सरकारों के आने-जाने का सिलसिला तो चलता रहेगा परंतु सबसे महत्त्वपूर्ण है देश का लोकतंत्र। परंतु मोदी की हत्या की साजिश की खबरें बता रही हैं कि होता इसके विपरीत दिख रहा है। सरकार हटाने के नाम पर नेता को हटाने की योजना बन रही है और मनपसंद सरकार के लिए लोकतंत्र की छाती पर बंदूक तानी जा रही है।  

हाल ही में कुछ लोगों की गिरफ्तारी भी हुई है और उनके पास से एक चिट्ठी बरामद हुई है जिससे पता चलता है कि नक्सली लोग मोदी की हत्या करने का षड्यंत्र रच रहे थे। चिट्ठी की भाषा अत्यंत चिंताजनक है फिलहाल पुलिस मामले की जांच कर रही है। दिल्ली में सोमवार को केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने प्रधानमंत्री की सुरक्षा की समीक्षा भी की और नए खतरे से निपटने के लिए एक योजना तैयार करने की भी बात कही गई है। षड्यंत्र के तार जुड़े महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव से जहां एल्गान परिषद् के एक कार्यक्रम के बाद हिंसा भड़क उठी थी जिसमें एक व्यक्ति की मौत भी हो गई। इस संबंध में एक प्राथमिकी में कबीर कला मंच नाम को अभियुक्त बनाया गया जबकि दूसरी में गुजरात के नेता जिग्नेश मेवाणी और जेएनयू में भारत को टुकड़े-टुकड़े करने के नारे लगाने के आरोपी उमर खालिद को। पुलिस का कहना है कि कबीर कला मंच का संबंध माओवादियों से है।

पुणे की पुलिस के अनुसार, एल्गार परिषद् के सदस्यों और कार्यकर्ताओं की जाँच के दौरान नेताओं की ईमेलों की भी जांच की गई। इसी दौरान वो ई-मेल भी सामने आया, किसी कॉमरेड प्रकाश को किसी एम ने लिखा था। इसी मेल में राजीव गांधी हत्याकांड की तर्ज पर मोदी पर हमला करने की बात कही गई है। पुलिस ने कहा है कि माओवादियों ने ही भीमा कोरेगाँव में पेशवा की हार की 200वीं बरसी के आयोजन में आर्थिक मदद की थी। पूरे प्रकरण में दिल्ली, मुंबई, पुणे और नागपुर में की गई इन छापामारियों के बाद पुलिस को माओवादियों के शहरी नेटवर्क का पता लगाने में सफलता हासिल की है। आरोपियों में सुधीर ढलवे मराठी पत्रिका विद्रोही के संपादक हैं। ढवले माओवादियों के शहरी नेटवर्क का हिस्सा है। पेशे से अंग्रेजी की प्राध्यापक शोमा सेन की गिरफ्तारी नागपुर से की गई। उनके पति तुषार भट्टाचार्य को पिछले साल ही माओवादी समर्थक होने के आरोप में गिरफ्तार किए जा चुके हैं। सेन पर भी माओवादियों का समर्थक होने का आरोप है। तीसरे आरोपी पेशे से वकील सुरेंद्र गडलिंग है जो इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीपल्स लॉयर्स के महासचिव हैं। एक अन्य अभियुक्त रोना विल्सन माओवादी नेता प्रोफेसर जीएन साईंबाबा का नजदीकी साथी है। साईंबाबा को भी माओवादियों के शहरी नेटवर्क में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया जा चुका है। पुलिस ने दिल्ली में उनके घर पार छापा मारा और उन्हें गिरफ्तार कर लिया। छापामारी अप्रैल में ही की गई थी, मगर जब्त की गई चीजों से उनके माओवादियों से संबंध का पता चला। जिस ई-मेल में प्रधानमंत्री पर हमला करने की बात कही गयी है वो विल्सन के यहाँ छापामारी में ही बरामद हुई है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस को भी माओवादियों की ओर से धमकियां दी जा चुकी हैं।

देश इस बात से भलिभांति परिचित है कि वामपंथी विचारधारा को संघ परिवार, भाजपा और मोदी फूटी आंख नहीं सुहाते। रोचक बात है कि संघ और देश में वामपंथी दलों का जन्म एक ही साल हुआ और आरंभ से ही दोनों के बीच के रिश्ते तल्खी वाले रहे हैं। ज्यादा इतिहास में न जाते हुए केवल देश की राजनीति में मोदी के उदयकाल से लेकर अब तक की ही बात करें तो वामपंथियों ने सच्चे-झूठे आरोप लगा कर मोदी को केवल देश ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भी बदनाम करने का कोई अवसर नहीं छोड़ा। गुजरात दंगों के बाद तो वामपंथियों ने मानो मोदी के खिलाफ जेहाद का ही ऐलान कर दिया। सभी को याद है कि मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने पर वामपंथियों ने कितनी हायतौबा मचाई। विगत लोकसभा चुनाव के दौरान वामपंथी लेखकों, बुद्धिजीवियों व नेताओं ने एक समाचारपत्र में खास अपील देश के लोगों को की कि वह मोदी को पराजित करने में कोई कसर बाकी न छोड़ें। इन्हीं वामपंथियों ने देश में असहिष्णुता की बात फैला कर पुरस्कार वापसी अभियान चलाया और देश-दुनिया में मोदी सरकार के खिलाफ खूब जहर उगला।

अभी-अभी समाचार आए हैं कि देश में माओवाद व नक्सलवाद समाप्त होने के करीब आ चुका है। ऊपर से भाजपा ने त्रिपुरा में लगभग अढ़ाई दशकों से चले आ रहे वामपंथ के गढ़ को पूरी तरह से धराशायी ही कर दिया। कहने का भाव कि मोदी सरकार व भाजपा ने बैलेट और बुलेट दोनों मोर्चे पर वामपंथ को करारी चोट पहुंचाई है। शायद यही कारण है कि वामपंथी आतंकी इतने खिसियाए हुए हैं कि वे मोदी को अलोकतांत्रिक ढंग से रास्ते से हटाने की जुगत में हैं। देश में बढ़ रही जातीय हिंसा, किसान के नाम पर हिंसक आंदोलन शंका पैदा करते हैं कि वामपंथी विचारधारा मुखौटा पहन कर अपना खेल खेल रही हैं। चुनावी वर्ष है, देश और समाज को जागरुक रहना होगा।

-राकेश सैन

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