1984 के दंगों पर जरा इन सवालों के जवाब भी दे दीजिए राहुलजी

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गत सप्ताह लंदन में एक थिंक टैंक को संबोधित करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा था कि घटना (सिख विरोधी दंगे) ‘‘बहुत ही दुखद त्रासदी’’ थी, लेकिन उन्होंने इस बात से असहमति जताई कि इसमें कांग्रेस शामिल थी।

- क्या कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपने बयानों से सिखों के जख्मों पर नमक छिड़क रहे हैं ?

- क्या वाकई राहुल गांधी की पार्टी के नेताओं की 1984 के दंगों में कोई भूमिका नहीं थी ?

- तो फिर कौन हैं वो परिवार जो 1984 में अपने परिजनों के मारे जाने आज भी न्याय मिलने का इंतजार कर रहे हैं?

- यदि कांग्रेस नेताओं की 1984 के दंगों में कोई भूमिका नहीं थी तो क्यों 2009 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने अपने दो उम्मीदवारों सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर का नाम घोषित होने के बावजूद उनका टिकट काट दिया था?

- यदि कांग्रेस नेताओं की कोई भूमिका नहीं थी तो 1984 के दंगों पर क्यों तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है?

- यदि कांग्रेस नेताओं की कोई भूमिका नहीं थी तो क्यों प्रधानमंत्री रहते हुए डॉ. मनमोहन सिंह ने 1984 के दंगों के लिए माफी मांगी थी?

- यदि कांग्रेस नेताओं की कोई भूमिका नहीं थी तो क्यों कांग्रेस अध्यक्ष पद पर रहते हुए सोनिया गांधी ने 1984 के दंगों के लिए खेद जताया था?

दरअसल 1984 के सिख विरोधी दंगों का मामला एक बार फिर चर्चा में इसलिए है क्योंकि गत सप्ताह लंदन में एक थिंक टैंक को संबोधित करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा था कि घटना (सिख विरोधी दंगे) ‘‘बहुत ही दुखद त्रासदी’’ थी, लेकिन उन्होंने इस बात से असहमति जताई कि इसमें कांग्रेस शामिल थी। उनके यह कहते ही विवाद शुरू हो गया और शिरोमणि अकाली दल ने राहुल गांधी की टिप्पणी के लिये उन पर निशाना साधते हुए कहा कि उनकी पार्टी के सिख विरोधी ‘‘नरसंहार’’ में शामिल होने के नजरिये से असहमति जताकर उन्होंने सिख समुदाय के जख्मों पर नमक छिड़क दिया है। सुखबीर सिंह बादल ने आरोप लगाया कि गांधी उन कांग्रेसी नेताओं को बचाने की कोशिश कर रहे हैं जो इस ‘‘नरसंहार’’ में संलिप्त थे। 

वहीं भाजपा का आरोप है कि राहुल दंगे में अपनी पार्टी के गुनाह को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। पार्टी का कहना है कि इंसाफ नहीं होने से सिख पहले से परेशान हैं और राहुल के इस तरह के बयान से माहौल खराब होगा और कुछ लोग हिंसा के उस कुचक्र में धकेले जा सकते हैं जैसा 1980 के दशक में दिखा था।

दूसरी ओर कांग्रेस का कहना है कि एक पार्टी के रूप में कांग्रेस कभी इस नरसंहार में शामिल नहीं रही। लेकिन पार्टी और नेता एक दूसरे से कैसे अलग हो सकते हैं ? नेताओं और कार्यकर्ताओं से ही तो पार्टी है। जिन लोगों पर 1984 के दंगे के आरोप हैं उनमें से बड़ी संख्या में लोग आज भी कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता के तौर पर काम कर रहे हैं। दंगों के मामले में कुछ ऐसे भी नाम हैं जोकि जेल में हैं और कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। तो फिर कैसे ये नेता कांग्रेस पार्टी से अलग हो गये? इस मामले में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की ओर से आई सफाई बड़ी मासूम-सी लगी जिसमें उन्होंने कहा कि जब ‘‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’’ हुआ था और उसके बाद दंगे हुए थे, तब वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष स्कूल में थे। यही नहीं पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम जैसे वरिष्ठ नेता भी कह रहे हैं कि ऐसी किसी चीज के लिए राहुल गांधी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है जो तब हुई जब वह 13-14 साल के थे।

कांग्रेस ने विवाद बढ़ने पर अब उन कदमों को गिनाया है कि दंगे के बाद पार्टी ने क्या क्या कदम उठाये। कांग्रेस का कहना है कि वह पार्टी मंच से और समूचे देश में त्रासद घटनाक्रम की कम से कम हजारों बार निंदा कर चुकी है, इसे अत्यंत दुखद घटनाक्रम बताया गया और परोक्ष या अपरोक्ष रूप से कभी इसके समर्थन का भाव नहीं रहा है। यही नहीं उस समय के प्रधानमंत्री ने भी इस पर अफसोस प्रकट किया था। पार्टी प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा है कि इस घटना से जुड़े होने के आरोपों के चलते कई वरिष्ठ नेताओं के कॅरियर को नुकसान पहुंचा। उन्होंने कहा कि "बड़ी संख्या में आपराधिक मुकदमे चलाए गए। कई को दोषी ठहराया गया, कुछ अभी लंबित हैं, लेकिन कांग्रेस ने कभी भी हस्तक्षेप नहीं किया।'

बहरहाल, लोकसभा चुनावों से कुछ माह पहले 1984 के सिख विरोधी दंगों का मामला जिस तरह एक फिर से उठ खड़ा हुआ है और उसको लेकर जिस तरह राजनीति तेज हो गयी है उससे साफ है कि कांग्रेस ने अपनी मुश्किलें खुद ही बढ़ा ली हैं। अब काफी कुछ दारोमदार वर्तमान सरकार पर भी है कि वह दंगा पीड़ितों को जल्द से जल्द न्याय दिलाये क्योंकि न्याय के लिए 34 वर्षों का इंतजार बहुत लंबा होता है, एक व्यक्ति के गुनाह की सजा पूरी कौम को देना बहुत बड़ा अपराध था। दोषी चाहे कितनी भी बड़ी ताकत रखता हो यदि उसे सजा जरूर दिलायी जानी चाहिए साथ ही सरकारों को पीड़ित परिवारों की यथासंभव मदद भी करते रहना चाहिए।

-नीरज कुमार दुबे

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