मोदी सरकार 2.0 पर पहले साल में लगे यह बड़े आरोप, चतुराई से दे रही जवाब

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विपक्ष ने भाजपा पर विधायकों की खरीद-फरोख्त का आरोप लगाया था। जबकि महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस को फिर से मुख्यमंत्री बनाने के लिए रातों-रातों राष्ट्रपति शासन हटा दिया गया ऐसे भी आरोप लगे। हालांकि बाद में विपक्षी खेमा सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और कोर्ट ने देवेंद्र फडणवीस को बहुमत साबित करने को कहा।

केंद्र की मोदी सरकार को 6 साल पूरे होने वाले हैं...इसी का जश्न मनाते हुए भारतीय जनता पार्टी ने 16 मई को 9 मिनट 1 सेकण्ड का एक वीडियो जारी किया जिसका टाइटल था- मोदी सरकार के 6 साल... बेमिसाल। यह वो दौर है जब पूरा देश कोरोना महामारी से जूझ रहा है और मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का एक साल पूरा हो रहा है। ऐसे में विपक्षी पार्टियों का हमला बोलना तो स्वाभाविक ही था। समय-समय पर विपक्षी पार्टियों ने मोदी सरकार पर कई सारे आरोप भी लगाए तो चलिए आज हम आपको दूसरे कार्यकाल के एक साल पूरे होने के बीच में लगे बड़े आरोपों के बारे में बताते हैं।

अनुच्छेद 370

बीते साल मोदी सरकार ने आतंकवादी हमले की तरफ इशारा करते हुए अचानक से अमरनाथ यात्रा रोक दी थी। जम्मू-कश्मीर में मौजूद तमाम श्रद्धालुओं को वापस जाने के निर्देश दे दिए गए थे। घाटी में धीरे से सुरक्षाबलों की तैनाती बढ़ा दी गई और फिर संसद के दोनों सदनों में अनुच्छेद 370 के कुछ प्रावधानों को निरस्त कर आजाद जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश में तब्दील कर दिया गया। संसद में जब गृह मंत्री अमित शाह भाषण दे रहे थे उस दौरान उन्होंने एक बात पर जोर दिया कि हालात सही होने पर जम्मू कश्मीर को वापस उसका दर्जा दे दिया जाएगा। मतलब कि राज्य का दर्जा।

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5 सितंबर को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के कुछ प्रावधानों को निरस्त कर दिया गया। वहां के नेताओं पर जन सुरक्षा कानून (PSA) के तहत कार्रवाई की गई और घाटी के तमाम बड़े नेताओं को यह कहते हुए हालात न बिगड़े इसलिए नजरबंद कर दिया गया। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और कुछ अन्य नेताओं को छोड़कर बाकी तमाम नेताओं को रिहा कर दिया गया। रिहा किए जाने वालों में पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला समेत कई नाम हैं।

जब सरकार यह कार्रवाई कर रही थी तब विपक्षी पार्टियां उन पर लोकतंत्र की हत्या का आरोप लगा रही थी। इतना ही नहीं कश्मीर के हालातों की समीक्षा करने के लिए राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी समेत अन्य नेताओं को श्रीनगर से वापस भेज दिया गया था।

इतना ही नहीं गुलाम नबी आजाद ने कश्मीर जाने की इजाजत के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दाखिल कर इजाजत मांगी थी और उन्हें मिली भी लेकिन एक शर्त पर। कोर्ट ने कहा कि आप बयानबाजी नहीं करेंगे। इसके अलावा कश्मीर टाइम्स की संपादक भी मीडिया के कामकाज में हो रही तकलीफों के बारे में कोर्ट को बताया था कि वहां पर इंटरनेट बंद है।

हालांकि, केंद्र का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने बताया था कि कश्मीर में न्यूज पेपर 5 अगस्त से पब्लिश हो रहे हैं। दूरदर्शन, लोकल टीवी चैनल और रेडियो भी चालू हैं और मीडियाकर्मियों को इंटरनेट और टेलीफोन समेत सभी सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं। लंबे समय तक घाटी के मसले पर बहस चलती रही और धीरे-धीरे केंद्र सरकार ने पाबंदियां कम भी कर दीं।

सत्ता का दुरुपयोग

एक साल के कार्यकाल में सत्ता में काबिज केंद्र की मोदी सरकार पर विपक्ष सत्ता का दुरुपयोग करने का लगातार आरोप लगाता रहा। चाहे कर्नाटक हो, महाराष्ट्र हो या फिर मध्य प्रदेश का मामला।

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विपक्ष ने केंद्र सरकार पर कर्नाटक और मध्य प्रदेश की सरकार को गिराकर भाजपा की सरकार बनाने का आरोप लगाया और रातों-रातों महाराष्ट्र से राष्ट्रपति शासन हटाकर तड़के सुबह देवेंद्र फडणवीस को सत्ता में काबिज करने के मामले में लोकतंत्र की हत्या की बात कही।

विपक्ष ने भाजपा पर विधायकों की खरीद-फरोख्त का आरोप लगाया था। जबकि महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस को फिर से मुख्यमंत्री बनाने के लिए रातों-रातों राष्ट्रपति शासन हटा दिया गया ऐसे भी आरोप लगे। हालांकि बाद में विपक्षी खेमा सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और कोर्ट ने देवेंद्र फडणवीस को बहुमत साबित करने को कहा। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने विधानसभा का विशेष सत्र भी बुलाया लेकिन इससे पहले मीडिया को संबोधित करते हुए देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी की सरकार बनी। महाविकास अघाड़ी शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस का एलाइंस दल है और इस दल में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाया। यह वहीं उद्धव ठाकरे हैं जो चुनाव से पहले भाजपा के साथ गठबंधन थे लेकिन बाद में गठबंधन तोड़ एनसीपी और कांग्रेस के साथ शामिल हो गए।

इसके बाद विपक्ष ने मध्य प्रदेश में 15 महीने तक सत्ता में रही कमलनाथ सरकार को गिराने के लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराया। जन्मजात खुद को कांग्रेसी कहने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जैसे भी भाजपा की सदस्यता ली उनके खेमे के विधायक भी भाजपा की शरण में आने को आतुर हो गए। हालांकि इससे पहले विधायकों को कभी गुड़गांव तो कभी कर्नाटक के रिजॉर्ट में रखा गया। कांग्रेस ने काफी कोशिशें की और मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा। लेकिन कमलनाथ अपनी सत्ता को बचा नहीं पाए और चौथी बार शिवराज सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश की सत्ता संभाली।

नागरिकता संशोधन कानून

मोदी सरकार ने नागरिकता अधिनियम 1955 को संशोधित किया। जिसमें पड़ोसी देश बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से भारत आए गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है। दरअसल, सरकार का कहना है कि हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोग पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यक हैं और उनका वहां पर उत्पीड़न होता है। इसलिए भारत में पांच साल पूरा कर चुके इन शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी जाएगी। हालांकि पहले नागरिकता हासिल करने के लिए 11 साल का वक्त पूरा करना होता था।

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सरकार द्वारा लाए गए इस कानून को विपक्षियों और जामिया मिलिया, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी सहित कई शिक्षण संस्थानों के छात्रों ने विरोध किया। इस दौरान सरकार पर मुस्लिमों के साथ भेदभाव का आरोप लगाया गया और दलीले दी गईं कि यह कानून संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। संविधान में धर्म के आधार पर भेदभाव की मनाही है। लेकिन सरकार ने अपनी मंशा साफ करते हुए कहा कि यह कानून पड़ोसी मुल्कों में उत्पीड़न का शिकार हुए लोगों के लिए ही लाया गया है। इसलिए हम इस कानून को वापस नहीं लेने वाले।

आर्थिक मंदी का सवाल

जुलाई के अंत तक ऐसे सवाल उठने लगे कि क्या भारतीय अर्थव्यवस्था में मंदी का असर दिखाई देने लगा है ? ऐसे बहुत से सवाल तैर रहे थे और कई सारी रिपोर्ट्स भी सामने आई थी। एक तरफ मोदी सरकार भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की बात कह रही है तो दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था के मोर्चे को उस वक्त झटका लगा था जब देश की आर्थिक वृद्धि दर 2019-20 की अप्रैल-जून तिमाही में घटकर 5 प्रतिशत रह गई। यह पिछले छह साल से अधिक अवधि का न्यूनतम स्तर था और विपक्ष यह आरोप लगा रहा था कि सरकार मानने के लिए तैयार ही नहीं कि आर्थिक मंदी है। इसके साथ ही सरकार पर आर्थिक मंदी जैसे मुद्दों से ध्यान भटकाने का भी आरोप लगा था।

तब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी बयान जारी किया था और मंदी से जुड़े विषय पर सुझाव भी दिए थे। उन्होंने कहा था कि इस समस्या के समाधान के लिए सबसे पहले सरकार को यह स्वीकार करना होगा कि हम आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहे हैं। साथ ही उन्होंने आर्थिक संकट से निकलने के लिए पांच सूत्री फॉर्मूला भी सुझाया था।

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पहला सुझाव: GST दरों में बदलाव...ऐसा करते समय सरकार को राजकोषीय घाटे के बारे में नहीं सोचना चाहिए।

दूसरा सुझाव: मांग बढ़ाने के लिए नए तरीके अपनाएं

तीसरा सुझाव: जिन क्षेत्रों में रोजगार पैदा हों, उन क्षेत्रों में निवेश को बढ़ावा दें।

चौथा सुझाव: बाजार में तरलता को बढ़ाया जाए।

पांचवां सुझाव: निर्यात की संभावनाओं को तलाश कर उनका इस्तेमाल करें।

हालांकि, आर्थिक मंदी से उबरने के लिए सरकार ने कुछ सुझावों पर ध्यान दिया भी लेकिन साल 2020 में कोरोना महामारी की मार पूरे विश्व पर ऐसी पड़ी कि हर एक देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई और अब मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था को धक्का देने के लिए 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज की घोषणा की है।

- अनुराग गुप्ता

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