चीन और रूस ने हिमाकत का इतना तगड़ा जवाब मिलने की बात सोची भी नहीं होगी

Narendra Modi
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वैसे चीन और रूस ने अतीत में प्रशांत महासागर में सालाना युद्ध अभ्यास किये हैं। लेकिन इस बार की हवाई गश्त सीधा क्वॉड देशों को सख्त संदेश देने के लिए की गयी थी। खैर...चीन और रूस ने जो संदेश देना था वो दे दिया। अब बारी अमेरिका और जापान की थी।

हाल ही में संपन्न क्वॉड देशों की बैठक के बाद से चीन के होश उड़े हुए हैं। क्वॉड देशों से एक साथ तो चीन लड़ नहीं सकता इसीलिए अलग-अलग तरीकों से भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया को घेरने का विफल प्रयास करता है। इस बार क्वॉड बैठक चूँकि जापान में हुई तो चीन ने जापान पर अपनी नजरें टेढ़ी कर दी हैं। आपको ध्यान होगा कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के जापान में मौजूद होने के दौरान ही चीन ने अपने मित्र देश रूस के साथ मिलकर जापान सागर, पूर्वी चीन सागर और पश्चिमी प्रशांत महासागर के ऊपर संयुक्त हवाई गश्त की। इस हवाई गश्त के दौरान बमवर्षक विमानों का इस्तेमाल किया गया। चीन और रूस ने एकजुटता का संदेश देने के लिए यह कदम ऐसे समय उठाया जब क्वॉड देशों के सभी नेता जापान में मौजूद थे। उल्लेखनीय है कि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय आलोचना और चीन का दृढ़ता से उसका समर्थन करने की पृष्ठभूमि में अमेरिका इन दोनों देशों के खिलाफ मुखर है। इसके अलावा जापान और ऑस्ट्रेलिया के संबंध चीन के साथ पहले से ही खराब चल रहे हैं। 

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वैसे चीन और रूस ने अतीत में प्रशांत महासागर में सालाना युद्ध अभ्यास किये हैं। लेकिन इस बार की हवाई गश्त सीधा क्वॉड देशों को सख्त संदेश देने के लिए की गयी थी। खैर...चीन और रूस ने जो संदेश देना था वो दे दिया। अब बारी अमेरिका और जापान की थी इसलिए जवाब में जापान और अमेरिका ने जापान सागर के ऊपर अपने लड़ाकू विमानों की संयुक्त उड़ान को अंजाम दिया। जापान के रक्षा बलों ने कहा कि अमेरिका और जापान के आठ युद्धक विमानों ने उड़ान भरी। इस उड़ान में अमेरिका के एफ-16 और जापान के एफ-15 लड़ाकू विमान शामिल थे। जापानी सेना ने एक बयान में कहा कि संयुक्त उड़ान दोनों सेनाओं की संयुक्त क्षमताओं की पुष्टि करने तथा जापान-अमेरिका गठबंधन को और मजबूत करने के लिए थी।

बहरहाल, यह तो हुआ चीनी एक्शन पर अमेरिका का रिएक्शन। अब बात करते हैं चीन के मन में बैठते जा रहे एक नये डर की। हम आपको बता दें कि क्वॉड बैठक में अमेरिका द्वारा शुरू किए गए इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क से चीन घबरा गया है इसीलिए उसने इसकी आलोचना की है। हम आपको बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने 23 मई को क्वॉड शिखर सम्मेलन से पहले इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क की शुरुआत की। बाइडन की इस पहल को बड़े पैमाने पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते चीनी प्रभाव का मुकाबला करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। अमेरिका के नेतृत्व वाली पहल में शामिल होने वाले 12 देशों में भारत, ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई दारुस्सलाम, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, न्यूजीलैंड, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम हैं। इस मंच से चीन और उसके करीबी देशों- लाओस, कंबोडिया और म्यांमा को बाहर रखा गया है। इस संगठन के कार्य ढांचे में चार स्तंभ- व्यापार, आपूर्ति श्रृंखला, स्वच्छ ऊर्जा और बुनियादी ढांचा तथा कर और भ्रष्टाचार विरोध- शामिल हैं।

दरअसल इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क “इस क्षेत्र में अमेरिका का अब तक का सबसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंध है” और हिंद-प्रशांत देशों को चीन के अलावा व्यापार के लिए एक नया विकल्प देता है। इसीलिए चीन घबरा गया है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने तभी आरोप लगाया है कि यह मंच अमेरिका के नेतृत्व वाले व्यापार नियम स्थापित करता है, औद्योगिक श्रृंखलाओं की प्रणाली का पुनर्गठन करता है और चीनी अर्थव्यवस्था से क्षेत्रीय देशों को अलग करता है। 

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बहरहाल, चीन कितनी भी अफवाहें फैलाता रहे या कितनी भी गीदड़ भभकियां देता रहे, क्वॉड देशों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता तभी तो ड्रैगन पर नया शिकंजा कसने की शुरुआत भी हो चुकी है। हम आपको बता दें कि क्वॉड देशों ने आर्थिक संबंध मजबूत करने के अलावा हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिये जो बड़ी और नयी पहल शुरू की है उससे भी चीन की भौंहें चढ़ गयी हैं। क्वॉड देशों ने तय किया है कि हिंद-प्रशांत समुद्री क्षेत्र जागरूकता पहल शुरू की जायेगी। यह पहल साझेदार देशों को क्षेत्रीय जलक्षेत्रों की पूरी तरह से निगरानी करने और क्षेत्र में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने में मदद करेगी। क्वॉड देशों की यह पहल क्षेत्र में चीन की बढ़ती मौजूदगी से उपजी चिंताओं को कम करने में निश्चित ही सहायक होगी।

-नीरज कुमार दुबे

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