इंटरनेट शटडाउन के मामले में दुनिया की राजधानी बनता जा रहा है भारत

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पिछले साल दुनिया के सभी देशों के मुकाबले अकेले भारत में इंटरनेट बंद होने का आंकड़ा 67 प्रतिशत दर्ज किया गया है। अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले छह वर्षों में 2016 तक भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ता में 324 फीसदी की वृद्धि हुई है।

इंटरनेट के इस्तेमाल को सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद-19 के तहत जन्मसिद्ध अधिकार माना है। साथ ही कहा कि इंटरनेट पर अनिश्चितकाल के लिए पाबंदी मौलिक अधिकारों का हनन है। जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने कहा- ‘बोलने की आजादी और भिन्न राय दबाने के लिए धारा 144 इस्तेमाल नहीं की जा सकती है। यह सत्ता का दुरुपयोग कहलाता है।’ कोर्ट ने कहा- व्यापार, शिक्षा, आजीविका और अभिव्यक्ति के लिए इंटरनेट अहम टूल है। अनिश्चितकाल के लिए इंटरनेट बंद करने का आदेश टेम्परेरी सस्पेंशन ऑफ टेलीकॉम सर्विसेज (पब्लिक सर्विसेज और पब्लिक सर्विस) रूल्स, 2017 के तहत अस्वीकार्य है। पाबंदी अनुच्छेद 19(2) में बताई शर्तों के अनुसार ही लग सकती है। सरकार आनुपातिकता के सिद्धांत का पालन करे। इंटरनेट के जरिए व्यापार करना भी मूल अधिकार है। जब भी कोई तनावपूर्ण, अराजक व हिंसक घटनाएं अंजाम लेती हैं, सबसे पहले सरकार नागरिकों की इंटरनेट सेवा को प्रतिबंधित करती है। सरकार का मानना भले यह हो कि इंटरनेट सेवा के प्रतिबंधित होने से राज्य में सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने, कानून व्यवस्था व शांतिपूर्ण माहौल बनाए रखने में मदद मिलती है, लेकिन दूसरी ओर इससे भारी मात्रा में आर्थिक-व्यापारिक हानि के अलावा नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी प्रभावित होती है।

लिहाजा आज इंटरनेट शटडाउन के मामले में भारत दुनिया की राजधानी बनता जा रहा है। पिछले साल दुनिया के सभी देशों के मुकाबले अकेले भारत में इंटरनेट बंद होने का आंकड़ा 67 प्रतिशत दर्ज किया गया है। अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले छह वर्षों में 2016 तक भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ता में 324 फीसदी की वृद्धि हुई है। ये आंकड़े 92 मिलियन से 390 मिलियन तक हुए हैं। वहीं, इसी अवधि के दौरान चीन में 60 फीसदी की वृद्धि होकर 750 मिलियन, जापान में 20 फीसदी से बढ़कर 120 मिलियन, अमेरिका में 14 फीसदी की वृद्धि से 250 मिलियन और ब्राजील में 63 फीसदी बढ़कर 130 मिलियन हुआ है। पिछले पांच वर्ष में 2017 तक जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट 60 बार बंद हुआ है, जोकि किसी भी अन्य राज्य की तुलना में सबसे ज्यादा है। 2012 की तुलना में साल 2017 में राज्य में मोबाइल और फिक्स्ड लाइन इंटरनेट शटडाउन 10 गुना बढ़कर 32 हुआ है। जबकि इसी अवधि के दौरान भारत भर में शटडाउन 22 गुना बढ़कर 70 हुआ है। इस अवधि के दौरान जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट शटडाउन 7,776 घंटों तक चला, जो पश्चिम बंगाल के लगभग तीन गुना ज्यादा है। पश्चिम बंगाल का स्थान दूसरा रहा है। कुल मिलाकर देश भर में इंटरनेट 1,67,315 घंटों के लिए बंद रहा है।

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दक्षिण एशियाई देशों के लोगों ने मई 2017 और अप्रैल 2018 के बीच कम से कम 97 इंटरनेट शटडाउन का अनुभव किया है। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, इस तरह के शटडाउन प्रेस स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति पर एक बैरोमीटर है। भारत में अकेले ऐसे 82 मामले हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारों ने इंटरनेट और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास का समर्थन किया है। लेकिन सेंसरशिप, अवरोध और शटडाउन इसके उपयोग में कठोर नीति है। जून 2018 को समाप्त होने वाले 18 महीनों में सोशल मीडिया पर 1,662 यूनिफॉर्म रिसोर्स लोकेटर या पोस्ट अवरुद्ध किए गए थे। रिपोर्ट कहती है, शटडाउन और जीवन और संपत्ति के नुकसान के बीच संबंधों का कोई मजबूत दस्तावेज प्रमाण नहीं है, लेकिन प्रबंधकों ने अजीब तरीके से साझा किया कि कैसे शटडाउन ने हिंसा और नागरिक संघर्षों को नियंत्रित करने में मदद की है। 7 फरवरी, 2018 को संसदीय प्रतिक्रिया में गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 2015 से 2017 तक पथराव की कम से कम 4,799 घटनाएं हुई हैं। 2016 से कश्मीर में और 2017 से पश्चिम बंगाल में शटडाउन की विस्तारित अवधि ने अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है। 

जम्मू-कश्मीर में 7,776 घंटे की तुलना में 2012-17 के बीच 10 मामलों में गुजरात को 724 घंटे के इंटरनेट शटडाउन का सामना करना पड़ा है। प्रधानमंत्री का यह गृह राज्य आर्थिक रूप से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। 2015 के मोबाइल शटडाउन से राज्य को करीब 1.12 बिलियन डॉलर (7,844 करोड़ रुपये) का नुकसान हुआ है। 18 अप्रैल, 2016 को नेटबैंकिंग लेनदेन 90 फीसदी से अधिक गिरा, 1,500 करोड़ रुपये से ज्यादा का घाटा गुजरात के बैंकों ने देखा, क्योंकि मोबाइल इंटरनेट और एसएमएस शटडाउन ने नेट और मोबाइल बैंकिंग जैसी कई सेवाओं को प्रभावित किया। रिपोर्ट के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में दूसरा सबसे ज्यादा आर्थिक प्रभाव पड़ा है- करीब 610.24 मिलियन डॉलर (4,273 करोड़ रुपये)। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो एक स्वस्थ, जीवंत और गतिशील समाज वहीं हो सकता है जहां अपने विचारों को रखने की पूरी आजादी हो। भारतीय परंपरा भी यही रही है कि हर नजरिए को परस्पर सम्मान दिया जाए क्योंकि कोई भी एक विचार या दृष्टिकोण पूर्ण सत्य नहीं होता। प्रगतिशील और स्वस्थ समाज का सबसे बड़ा दुश्मन विचारों पर पहरा ही है। इसके बावजूद छोटे मोटे विवादों से निपटने के लिए स्वतंत्रता का हनन यानी इंटरनेट पर पाबंदी का सहारा लिया जाना आम होता जा रहा है।

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सवाल यह है कि उपद्रव की स्थिति में प्रशासन द्वारा इंटरनेट सेवा पर रोक लगाना कहां तक उचित है? वह भी तब जब सरकार देश को डिजिटल इंडिया बनाने का सपना देख रही है। वास्तव में इस संबंध में कोई नीति या प्रावधान है ही नहीं, जिसके माध्यम से यह निर्धारित किया जा सके कि किन परिस्थितियों में इंटरनेट बंद किया जाना चाहिए। समझना होगा कि आज इंटरनेट भावनाओं को व्यक्त करने का साधन ही नहीं बल्कि जिंदगी की जरूरत बन चुका है। बेहतर तो यह होगा कि इंटरनेट बंद करने से पहले प्रशासन यह सोचे कि उपद्रव की स्थिति में उसका सही इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है। प्रशासन लोगों से बात करे, सही तथ्यों को उन तक पहुंचाए और इसके लिए जरूरी है कि इंटरनेट सेवा बंद न हो। ऐसा तरीका निकालना चाहिए कि सभी इंटरनेट उपभोक्ताओं को सामूहिक रूप से सूचना भेजी जा सके और यह तब तक संभव नहीं है जब तक कि इस संबंध में कोई नीति नहीं बनाई जाती।

-देवेन्द्रराज सुथार

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