क्या कश्मीर मसला हल कर पाएगा अमेरिकी फार्मूला
बताया जाता है कि कश्मीर समस्या के इस प्रकार के हल के लिए सभी पक्ष ‘राजी’ हैं। बस इसकी औपचारिकताएं पूरी की जानी हैं जिसके लिए सर्वदलीय हुर्रियत कांफ्रेंस के नेताओं की बातचीत भारतीय सरकार से होनी बाकी है।
जम्मू कश्मीर में एलओसी व सीमाओं पर 13 सालों से जारी युद्धविराम तथा संभावित वार्ता के दौर उस अमेरीकी योजना के हिस्सों के रूप में लिए जा सकते हैं जिसके अंतर्गत कश्मीर समस्या का हल सुझाया गया था। यह हल चिनाब दरिया को सीमा मानते हुए कश्मीर घाटी को एक अलग अर्द्ध स्वतंत्र देश मान लिए जाने के रूप में अमेरीका द्वारा दिया गया था। इस हल के अतंर्गत कश्मीर होगा तो अर्द्ध स्वतंत्र लेकिन उसकी सुरक्षा तथा वित्तीय समस्याओं का हल भारत तथा पाकिस्तान मिल कर किया करेंगे।
यह योजना जिसके अंतर्गत कश्मीर समस्या का हल अमेरीका समर्थक कश्मीर शोध दल द्वारा सुझाया गया था, को ‘चिनाब योजना’ का नाम भी दिया गया है। यह योजना जम्मू कश्मीर के तीनों भागों को क्षेत्रीय स्वायत्तता प्रदान करने के लिए जो रिपोर्ट राज्य सरकार ने तैयार की है उसमें भी देखी जा सकती है।
अंतर सिर्फ इतना है दोनों में कि राज्य सरकार की योजना के तहत कश्मीर घाटी पर भारत का ही अधिकार रहेगा और चिनाब योजना के तहत वह अर्द्ध स्वतंत्र मुस्लिम राज्य होगा जिसके लोगों को भारत और पाकिस्तान कहीं भी आने जाने की अनुमति होगी क्योंकि उनके पास दोनों ही देशों के पासपोर्ट होंगे।
हालांकि इस चिनाब योजना के प्रति तो कहा यह भी जाता रहा है कि इसे भारत सरकार तथा पाकिस्तानी सरकारों द्वारा मान्यता प्रदान करते हुए हरी झंडी दी जा चुकी है लेकिन कोई आधिकारिक वक्तव्य इसके प्रति अभी नहीं मिला है। मगर इतना अवश्य है कि 70 सालों से गले की हड्डी तथा विश्व के लिए परमाणु युद्ध के खतरे के रूप में खड़ी कश्मीर समस्या के हल के लिए अमेरीका ने जो दबाव डाला उसने चिनाब योजना को मान्यता भी प्रदान की।
इस योजना के अंतर्गत यह सुझाया गया था कि जम्मू कश्मीर का पुनर्गठन किया जाए। इस पुनर्गठन के अंतर्गत दरिया चिनाब को सीमा मानते हुए कश्मीर घाटी को एक अर्द्ध स्वतंत्र मुस्लिम राज्य या देश मान लिया जाए। हालांकि इतना अवश्य कहा गया है इस योजना में कि इस राज्य को अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त नहीं होगी क्योंकि उसके वित्तीय तथा रक्षा के मामले भारत और पाकिस्तान दोनों के पास रहने चाहिए। लेकिन इतना अवश्य योजना में कहा गया है कि इस राज्य का गठन अंतरराष्ट्रीय निगरानी के अंतर्गत होगा।
चिनाब योजना आगे कहती है कि अगर कश्मीर के लोगों, पाकिस्तान तथा भारत को मंजूर हो तो इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए सभी पक्षों के बीच एक ऐतिहासिक समझौते की आवश्यकता है तथा यह भी सुनिश्चित बनाने के लिए कहा गया है कि भारत, पाकिस्तान तथा अंतरराष्ट्रीय संगठनों को इसके प्रति गारंटी लेनी होगी कि नए राज्य की स्वतंत्रता बरकार रहे।
चौंकाने वाला तथ्य इस चिनाब योजना का यह है कि यह आरंभ में तो कहती है कि कश्मीर समस्या के हल के रूप में जिस मुस्लिम राज्य का गठन चिनाब दरिया को सीमा रेखा मानते हुए कश्मीर घाटी में, वर्तमान नियंत्रण रेखा के इस ओर, किया जाना है उसकी अपनी धर्मनिरपेक्षता लोकतांत्रिक संविधान, यहां तक कि अपनी नागरिकता, अपना झंडा, अपना विधान तक भी होगा सिवाय इसके कि विदेश तथा रक्षा के मामलों में उसका कोई योगदान नहीं होगा। वैसे यह याद रखने योग्य तथ्य है कि मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला जिस स्वायत्तता रिपोर्ट को पारित कर चुके हैं उसमें यह सब मांगा गया है सिवाय स्वतंत्रता के।
- सुरेश एस डुग्गर
अन्य न्यूज़