कालाजार से उबरने के बाद भी मरीजों से फैल सकता है संक्रमण

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शोधकर्ताओं ने पाया कि 47 रोगियों में से लगभग 60 प्रतिशत ने बालू मक्खियों में परजीवी को संचारित किया। इससे स्पष्ट है कि ये बालू मक्खियां बाद में किसी अन्य व्यक्ति को भी संक्रमित कर सकती हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि चमड़ी के कालाजार से ग्रस्त मरीजों के घावों में भी कालाजार फैलाने वाला परजीवी होता है।

नई दिल्ली।(इंडिया साइंस वायर): कालाजार से उबरने के बावजूद कई बार इसके मरीजों में त्वचा संबंधी लीश्मेनियेसिस रोग होने की आशंका रहती है, जिसे चमड़ी का कालाजार भी कहते हैं। ड्रग्स फॉर नेग्लेक्टेड डिजीजेज इनिशिएटिव (डीएनडीआई) और बांग्लादेश स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर डायरियल डिजीज रिसर्च के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में पता चला है कि कालाजार का उपचार पूरा होने के बाद चमड़ी के कालाजार से ग्रस्त मरीज भी इस बीमारी का संक्रमण फैला सकते हैं। इसी कारण शोधकर्ताओं का कहना है कि चमड़ी का कालाजार इस बीमारी के उन्मूलन में एक प्रमुख बाधा हो सकता है।

इस अध्ययन में संक्रमण मुक्त बालू मक्खियों से चमड़ी के कालाजार से ग्रस्त रोगियों को कटवाया गया और फिर उन मक्खियों में कालाजार के परजीवी लिश्मैनिया डोनोवानी की मौजूदगी का परीक्षण किया गया है। बांग्लादेश के मयमन्सिंह मेडिकल कॉलेज में किए गए इस परीक्षण के दौरान रोगियों के हाथों को 15 मिनट तक ऐसे पिंजरे में रखवाया गया था, जिसमें संक्रमण मुक्त नर और मादा बालू मक्खियां मौजूद थीं। इसके बाद, उन बालू मक्खियों का परीक्षण उनमें लिश्मैनिया डोनोवानी परजीवी को पहचानने के लिए किया गया, जिसके कारण कालाजार होता है। 

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शोधकर्ताओं ने पाया कि 47 रोगियों में से लगभग 60 प्रतिशत ने बालू मक्खियों में परजीवी को संचारित किया। इससे स्पष्ट है कि ये बालू मक्खियां बाद में किसी अन्य व्यक्ति को भी संक्रमित कर सकती हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि चमड़ी के कालाजार से ग्रस्त मरीजों के घावों में भी कालाजार फैलाने वाला परजीवी होता है। चमड़ी के कालाजार से ग्रस्त लोगों का कई बार लंबे समय तक उपचार नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में नियंत्रित कालाजार और रोगियों की छोटी संख्या होने के बावजूद बीमारी के संचरण का खतरा रहता है। यह अध्ययन शोध पत्रिका क्लिनिकल इन्फेक्शियस डिजीजेज में प्रकाशित किया गया है।

डीएनडीआई में वरिष्ठ लीश्मेनियेसिस सलाहकार और इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डॉ जॉर्ज अलवर ने बताया कि “अभी तक चमड़ी के कालाजार की भूमिका के बारे में जानकारी बहुत कम थी और दशकों से किए जा रहे वैज्ञानिक शोधों से मिली जानकारियां भी बिखरी हुई हैं। इस शोध के नतीजे दिखाते हैं कि कालाजार के उपचार के बाद होने वाला चमड़ी का कालाजार इस बीमारी के संचरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।”

कालाजार रोग लिश्मैनिया डोनोवानी परजीवी के कारण होता है और इसका संक्रमण बालू मक्खी के काटने से फैलता है। कालाजार से उबरने के बाद चमड़ी का कालाजार त्वचा पर घाव, चकत्ते अथवा पिंड के रूप में विकसित होने लगता है। ऐसा आमतौर पर कालाजार का उपचार पूरा होने के छह महीने से एक साल के भीतर हो सकता है। 

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अध्ययन से जुड़े इंटरनेशनल सेंटर फॉर डायरियल डिजीज रिसर्च, बांग्लादेश के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. दिनेश मंडल ने बताया कि “घातक रोग न होने के कारण चमड़ी के कालाजार को आमतौर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े प्रयासों नजरंदाज कर दिया जाता है। यही कारण है कि इससे जुड़े अन्य वैज्ञानिक प्रश्न भी अनुत्तरित रह जाते हैं।”

भारत में डीएनडीआई के क्षेत्रीय कार्यालय निदेशक, डॉ सुमन रीजाल का कहना है कि “इस शोध से स्पष्ट है कि चमड़ी के कालाजार के मामलों की पहचान और त्वरित उपचार को कालाजार नियंत्रण एवं उन्मूलन कार्यक्रमों का अभिन्न हिस्सा बनाना चाहिए अन्यथा इस दिशा में किए जा रहे प्रयास निष्प्रभावी साबित होते रहेंगे।” 

(इंडिया साइंस वायर)

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