भारतीय वैज्ञानिकों ने घाव भरने के लिए बनाया नया जैल

Indian scientists develop wound healing ointment

दो पॉलिमर्स के मिश्रण से बने इस नए हाइड्रोजैल का लाभ यह है कि यह शरीर के ताप पर तेजी से गाढ़ा होकर जम जाता है और इससे घाव के आसपास तापमान नहीं बढ़ता।

भाव्या खुल्लर। (इंडिया साइंस वायर): भारतीय वैज्ञानिकों ने दो पॉलिमर का एक नया मिश्रण बनया है, जिसका उपयोग हाइड्रोजैल के रूप में तेजी से घाव भरने के लिए किया जा सकता है। दो पॉलिमर्स के मिश्रण से बने इस नए हाइड्रोजैल का लाभ यह है कि यह शरीर के ताप पर तेजी से गाढ़ा होकर जम जाता है और इससे घाव के आसपास तापमान नहीं बढ़ता। घाव पर दवा लगाने के बाद उसके गाढ़ा होने की प्रक्रिया के बीच तापमान बढ़ने से आसपास के ऊतकों के नष्‍ट होने का खतरा रहता है, जिससे अब बचा जा सकेगा। 

अध्‍ययनकर्ताओं की टीम में शामिल भावनगर स्थित केंद्रीय नमक व समुद्री रसायन संस्‍थान (सीएसएमसीआरआई) के वैज्ञानिक डॉ. सुरेश कुमार जेवरजका ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि ‘‘नया हाइड्रोजैल कोई सह-उत्पाद नहीं छोड़ता है। यह जैविक रूप से सुरक्षित है और आसानी से अपघटित भी हो सकता है। घाव भरने और ऊतकों के निर्माण के लिए हाइड्रोजैल पूरी तरह उपयुक्त है।’’  

वैज्ञानिकों द्वारा विकसित इस मिश्रण को पॉलीथीलीन ग्लाइकोल के एक संशोधित संस्करण और एक प्रतिक्रियाशील ब्लॉक को-पॉलीमर से बनाया गया है। ये दोनों- यौगिक प्रतिक्रिया करते हैं और चार मिनट से भी कम समय में हाइड्रोजैल का निर्माण कर सकते हैं। इस अध्‍ययन के नतीजे यूके की रॉयल सोसायटी द्वारा प्रकाशित मशहूर शोध पत्रिका ‘मैटेरियल्‍स कैमिस्‍ट्री बी’ में प्रकाशित किए गए हैं। 

हाइड्रोजैल की खासियत है कि यह पानी को सोख लेता है और शरीर के तापमान पर जैल में परिवर्तित हो जाता है। अपने इस गुण के कारण इसे शीशी में रखने या फिर चोट पर लगाने के बाद जमने में मदद मिलती है। अध्‍ययनकर्ताओं का कहना है कि घाव पर इसे लगाने के बाद चोट के आसपास इंजेक्‍शन लगाना भी आसान हो जाता है। 

कुछ ही मिनटों में तरल जैल में परिवर्तित हो जाता है, जो कि प्लेटलेट को जोड़ता है और रक्त के बहाव को रोकने में मदद करता है। इसमें एंटी-बायोटिक्स को शामिल करने की क्षमता भी है, जिससे चोट की जगह पर इसे लगाने से वहां निरंतर दवा मिलती रहती है।

सीएसएमसीआरआई के अरविंद सिंह चंदेल एवं नूतन भिंग‍रदिया के अलावा अध्‍ययनकर्ताओं की टीम में उत्‍तर प्रदेश की शिव नाडार यूनिवर्सिटी की शैलजा सिंह और दीपिका कन्‍नन भी शामिल थे। चूहे पर हाइड्रोजैल का परीक्षण करके शोधकर्ता अब इस शोध को आगे बढ़ाना चाहते हैं। 

वैज्ञानिकों ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि "नैदानिक ​​अनुप्रयोगों में इसकी उपयोगिता का परीक्षण करने के लिए व्यापक प्रयोग करने की आवश्यकता है।’’ उनके मुताबिक भविष्य में ये प्रयोग ऊतक पुनरुत्‍पादन के लिए लचीले एवं क्रिस्टलीय हाइड्रोगजैल बनाने में मददगार साबित हो सकते हैं। (इंडिया साइंस वायर)

भाषांतरण: उमाशंकर मिश्र

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