2700 साल पुराने हैं पूर्वोत्‍तर के नवपाषाण अवशेष

Neolithic artefacts of Northeast are 2700 years old, Study

एक ताजा अध्‍ययन के बाद पता चला है कि करीब 2300 वर्ष पूर्व मेघालय के गारो हिल्‍स और 2700 वर्ष पूर्व असम के दीमा-हासो जिले में मिट्टी के बर्तन और पत्‍थरों के औजार बनाने में सक्षम मनुष्यों का बसेरा हुआ करता था।

उमाशंकर मिश्र। (इंडिया साइंस वायर): पूर्वोत्‍तर भारत में कई दशक पूर्व पाए गए नवपाषाण (नियोलिथिक) युग के पुरातत्‍व अवशेषों की उम्र के बारे में पहली बार खुलासा हुआ है। भारतीय वैज्ञानिकों ने एक खास तकनीक की मदद से डेटिंग किए जाने के बाद इन अवशेषों की उम्र का पता लगाया है। आईआईटी-गुवाहाटी के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक ताजा अध्‍ययन के बाद पता चला है कि करीब 2300 वर्ष पूर्व मेघालय के गारो हिल्‍स और 2700 वर्ष पूर्व असम के दीमा-हासो जिले में मिट्टी के बर्तन और पत्‍थरों के औजार बनाने में सक्षम मनुष्यों का बसेरा हुआ करता था। ऑप्टिक्ली सिम्यलैटिड लूमनेसन्स (ओएसएल) तकनीक से की गई डेटिंग के बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं। पूर्वोत्‍तर भारत में प्रागैतिहासिक स्‍थलों का सबसे अधिक घनत्‍व मेघालय के गारो हिल्‍स में मौजूद है। लेकिन इससे पहले यह पता नहीं था कि असम और मेघालय में मौजूद नवपाषाण युग की इन साइटों पर पाए गए अवशेष कितने पुराने हैं।

अध्‍ययन में शामिल आईआईटी-गुवाहाटी की वैज्ञानिक डॉ. सुकन्‍या शर्मा ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि ‘‘वर्ष 1961 में असम के दोजली हडिंग में इन पुरावशेषों के पाए जाने के बाद पूर्वोत्‍तर भारत को पहली बार नवपाषाण युग के वैश्विक मानचित्र में शामिल किया गया था। इनमें रस्सियों के निशान युक्‍त मिट्टी के बर्तन और तराशे हुए पत्‍थरों के औजार प्रमुख रूप से पाए गए थे। लेकिन इन पुरातत्‍व अवशेषों की उम्र के बारे में अब तक जानकारी नहीं थी। पहली बार असम और मेघालय में पाए में पाए गए इन अवशेषों की उम्र के बारे में पता चला है, जो 2700 वर्ष पहले पूर्वोत्‍तर भारत में नवपाषाण युग की मौजूदगी का स्‍पष्‍ट प्रमाण प्रस्‍तुत करता है।’’ 

दोजली हडिंग में खुदाई किए जाने से पहले नवपाषाण युग को दर्शाने वाली पत्‍थर से बनी खास प्रकार की कुल्‍हाड़ी और रस्सियों की छपाई वाले मिट्टी के बर्तनों का संबंध पूर्वी एशिया तक ही सीमित माना जाता है। दोजली हडिंग में इन पुरातात्विक अवशेषों के पाए जाने के बाद रस्सी की छाप वाले बर्तनों से संबंधित नवपाषाण संस्कृति का दायरा पूर्वोत्तर भारत तक विस्तृत माना जाने लगा। नवपाषाण अथवा 'उत्तर-पाषाण' युग मानव प्रौद्योगिकी के विकास की एक अवधि थी। इस काल की सभ्यता भारत में बड़े पैमाने पर फैली हुई थी। 

यह अध्‍ययन हाल में शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित किया गया है। अध्‍ययनकर्ताओं की टीम में शामिल डॉ. पंकज सिंह के अनुसार ‘पूर्वोत्तर भारत में पुरातत्व की दृष्टि से बहुत कम काम हुआ है। यहां विस्तृत पैमाने पर अध्ययन किया जाए तो कई नई जानकारियां मिल सकती हैं।’ (इंडिया साइंस वायर)

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