रात में बढ़े ट्रैफिक से बेअसर हुआ ऑड-ईवन ट्रायल

Odd Even trials ineffective due to increased night traffic

आईआईटी-दिल्ली, यूनिवर्सिटी ऑफ सरे और यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम के शोधकर्ताओं द्वारा ऑड-ईवन ट्रायल पर किए गए अध्‍ययन के मुताबिक ट्रायल के दौरान 24 घंटे के औसत पार्टीकुलेट मैटर (पीएम) के स्‍तर में बढ़ोतरी दर्ज की गई थी।

उमाशंकर मिश्र। (इंडिया साइंस वायर): पिछले साल ऑड-ईवन ट्रायल के दौरान दिल्‍ली की हवा की गुणवत्‍ता में दिन के अत्‍यधिक ट्रैफिक वाले घंटों में कुछ सुधार जरूर दर्ज किया गया, पर रात में भारी वाहनों एवं कारों का ट्रैफिक बढ़ने से प्रदूषण पर लगाम लगाने की कवायद पूरी नहीं हो सकी। आईआईटी-दिल्ली, यूनिवर्सिटी ऑफ सरे और यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम के शोधकर्ताओं द्वारा ऑड-ईवन ट्रायल पर किए गए अध्‍ययन के मुताबिक ट्रायल के दौरान 24 घंटे के औसत पार्टीकुलेट मैटर (पीएम) के स्‍तर में बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। इस‍के लिए ट्रायल के बाद रात में सड़कों पर वाहनों की संख्‍या बढ़ने और वाणिज्यिक वाहनों से होने वाले उत्‍सर्जन को जिम्‍मेदार माना जा रहा है।

दिल्‍ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा संचालित चार निगरानी केंद्रों से प्राप्‍त प्रदूषण के स्‍तर एवं मौसमी दशाओं जैसे नमी, तापमान, हवा की गति एवं दिशा संबंधी आंकड़ों का विश्‍लेषण करने के बाद अध्‍ययनकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं। आनंद विहार, मंदिर मार्ग, आरके पुरम और पंजाबी बाग स्थित इन चारों निगरानी केंद्रों को औद्योगिक, व्‍यावसायिक और रिहायशी क्षेत्रों की प्रतिनिधि इकाई के तौर पर अध्‍ययन में शामिल किया गया था। अध्‍ययन में जनवरी एवं अप्रैल, 2016 में ऑड-ईवन ट्रायल के दौरान उत्‍सर्जित पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) की तुलना वर्ष 2015 की समान तारीखों पर उत्‍सर्जित पीएम से की गई थी।

ट्रायल के दौरान शाम के अत्‍यधिक ट्रैफिक वाले कुछ घंटों में प्रतिघंटे के शुद्ध औसत पीएम2.5 एवं पीएम10 की मात्रा में 74 प्रतिशत तक कमी दर्ज की गई। जबकि, ट्रायल से पूर्व के दिनों से तुलना करने पर औसत पीएम2.5 एवं पीएम10 की मात्रा तीन गुना तक अधिक पाई गई। अध्‍ययनकर्ताओं के अनुसार ऑड-ईवन ट्रायल के दौरान सुबह ग्‍यारह बजे से रात आठ बजे तक दिल्‍ली की हवा की गुणवत्‍ता में सुधार देखा गया, पर रात आठ बजे से सुबह आठ बजे के दौरान भारी वाहनों एवं कारों के बढ़े हुए ट्रैफिक के कारण प्रदूषण पर लगाम नहीं लगाया जा सका।

शोधकर्ताओं के अनुसार अनुमानित उत्‍सर्जन स्रोतों के अतिरिक्‍त प्रदूषण का स्‍तर पहले से अधिक होना भी ऑड-ईवन ट्रायल के दौरान हुए सकारात्‍मक बदलाव को बेअसर करने में महत्‍वपूर्ण रहा है। इस अध्‍ययन के नतीजे एन्‍वायरमेंटल पॉल्‍यूशन जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं। शोधकर्ताओं की टीम में शामिल प्रोफेसर मुकेश कुमार खरे और डॉ. सुनील गुलिया के अनुसार ‘‘सड़कों पर प्रदूषण कम करने के लिए ऑड-ईवन जैसी योजनाएं लागू करते वक्त ट्रैफिक कम करने पर ध्‍यान केंद्रित करना ही काफी नहीं है। इसके लिए जिम्‍मेदार अन्‍य स्रोतों को नियंत्रित करने की जरूरत है। प्रोफेसर मुकेश कुमार खरे और डॉ. सुनील गुलिया के अलावा अध्‍ययनकर्ताओं की टीम में डॉ. प्रशांत कुमार और डॉ. रॉय एम. हैरीसन शामिल थे। (इंडिया साइंस वायर)

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